बीते कल की कड़वी यादों व बातों को दिल से लगाए रखने से न स़िर्फ आपका वर्तमान, बल्कि भविष्य भी प्रभावित हो सकता है. बेहतर होगा कि इन भावनाओं के बोझ को ढोने की बजाय बुरी यादों को भूल जाएं. इमोशन बैगेज यानी भावनाओं के भार से आप ख़ुद को ऐसे बचा सकते हैं.
नीरा का पति उसे छोडक़र चला गया और साथ मेंं उसके बेटे को भी ले गया. नीरा की क़ामयाबी और क़ाबिलियत ने उसके पति को हीनभावना से इस कदर भर दिया था कि उसे अपने सामने झुकाने के लिए उसने बेटे को भी नीरा के खिलाफ़ कर दिया और फिर उसे लेकर घर छोड़कर भाग गया. इस वाकये ने नीरा को इतना तोड़ दिया कि वो धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार हो गई. पति ने उसे जो आघात दिया था, उसे भुलाना और नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करना उसके लिए संभव नहीं था. वो पूरी ज़िंदगी एक डर के साए में जीने को विवश हो गई. एक ईमोशनल बैगेज वह पूरी ज़िंदगी ढोती रही. आप भी भावनाओं के भार तले दबकर अपना आज बर्बाद न करें, इसलिए हम बता रहे हैं इससे निपटने के कुछ आसान उपाय.
क्या होता है ईमोशनल बैगेज?
मशहूर चित्रकार विंसेंट वैन गो ने लिखा है कि ईमोशन हमारे जीवन के कप्तान होते हैं और अनजाने में ही हम उनकी बात मानते रहते हैं. माना जाता है कि ईमोशनल रिएक्शन पॉप-अप विंडो की तरह होते हैं, जब आप बटन दबाते हैं तो वे स्वत: ही उभर आते हैं, लेकिन गलत बटन दब जाए तो वे निगेटिव रिएक्शन देते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हम में से अधिकांश लोग अपने साथ कोई न कोई ईमोशनल बैगेज लेकर चल रहे होते हैं. ईमोशनल बैगेज को सरल शब्दों में अविश्वास, धोखा, किसी का चला जाना या ठुकराया जाने की तरह परिभाषित किया जा सकता है और यह सब अतीत में हुआ होता है. अतीत की घटनाओं का आपके वर्तमान रिश्ते पर गहरा असर पड़ता है. यदि पिछली बातों के बोझ को हम साथ लेकर चलते रहेंगे, तो न सिर्फ हमारी तरक्क़ी बाधित होगी, बल्कि उस बोझ को खींचते-खींचते हम थक भी जाएंगे.
बीते समय का आज पर असर
गुज़रे वक़्त के कुछ बुरे अनुभव व दुखद यादें कई तरह से हमें प्रभावित करते हैं. ये अनुभव व यादें तलाक़, शारीरिक यातना, मानसिक आघात, प्रेमी से मिला धोखा, उपेक्षा, गलतफ़हमी, ख़ुद से हुई कोई भूल या बचपन के कटु अनुभव से जुड़े हो सकते हैं. ऐसी यादों का बोझ आपको किसी पर विश्वास करने और बेहतरीन प्रोफेशनल व पर्सनल रिश्ता बनाने से रोक सकता है. जो पहले हुआ फिर वैसा ही कुछ न हो जाए इस डर के कारण आप कोई भी क़दम उठाने से हिचकिचाते हैं. आपका ख़ुद पर से भी विश्वास डगमगाने लगता है. जिससे आप में चुनौतियों का सामना करने का साहस नहीं रह जाता. आपको हमेशा यही लगता कि दूसरे आपकी हंसी उड़ाएंगे या फिर आपके दुखते दिल पर वार करेंगे. ऐसी सोच आपको ग़ुस्सैल, दूसरों की आलोचना करने वाला, दूसरों पर नियंत्रण रखने और उन पर अपनी इच्छाएं थोपने वाला बना सकती है.
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समझें इशारों को
जब ये बोझ थकाने लगते हैं तो अलग-अलग तरह से बाहर निकलते हैं, जैसे- कभी बहुत ज़ोर से रोना आ जाता है, किसी से बात करने का मन नहीं करता, आप अवसाद का शिकार और चिड़चिड़े हो जाते हैं. बार-बार सेहत ख़राब हो जाती है और या तो भूख बहुत लगती है या खाने की थोड़ी भी इच्छा नहीं होती. हमेशा अतीत की बातें करने का मन करता है या फिर अतीत की परछाइयां आंखों के सामने तैरती रहती है. लगता है कि फिर वही सब जीवन में घटने वाला है. इन सबसे कुछ लोग इतने आहत होते हैं कि उनके मन के इस बोझ का असर शरीर पर भी होने लगता है और वो फूलने लगता है.
जीते हैं डर के साए में
इन इशारों को समझें और पुरानी यादों के बोझ को उतार फेंके, नहीं तो ये आपकी पर्सनैलिटी और जीवन दोनों को खोखला कर देगा. कई बार हम पूरे आत्मविश्वास के साथ बिखरी कडियों को फिर से जोड़कर नए सिरे से जीने लगते हैं, पर अचानक कोई बात दिमाग़ में कौंध जाती है और चुपके से अतीत हम पर हावी हो जाता है और हमारे सारे प्रयासों पर पानी फेर देता है. साइकोलॉजिस्ट सीमा वोहरा कहती हैं, “कई बार तो हमें पता ही नहीं चलता कि हम किसी ईमोशनल बैगेज को ढो रहे हैं जब तक कि वह वर्तमान रिश्तों को आहत नहीं करने लगता या बीती घटनाएं साकार नहीं होने लगतीं. एक डर हमेशा बना रहता है कि कहीं दुबारा वैसा न हो जाए और फोबिया के शिकार होने के कारण हम वर्तमान रिश्ते को जी नहीं पाते. उस बोझ को हम अपने वर्तमान का ज़रूरी हिस्सा मानने की भूल कर बैठते हैं. नतीजतन हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों ही उस बोझ तले दबकर रह जाता है. किसी पुराने कपड़े की तरह इस बोझ को मन और शरीर दोनों से उतारकर ही आप जीवन में आगे बढ़ सकते हैं.”
ईमोशनल बैगेज से छुटकारा पाने के 10 कारगर उपाय
इमोशन बैगेज यानी भावनाओं के भार से आप ख़ुद को आसानी से बचा सकते हैं. इसके लिए आपको ये 10 उपाय करने होंगे.
1) ख़ुश/संतुष्ट रहें
आपके पास आज जो नहीं है उसके लिए दुखी होने की बजाय जो है उसपर फोकस करें, इससे गुज़रे वक़्त के बुरे अनुभवों का बोझ दिल से उतर जाएगा. बीती दुखद यादों को बुरा सपना समझकर भूल जाएं और ये सोचें कि आपका आज कितना सुखद है. क्योंकि आपको वो सब मिला जिसकी आपको चाह थी या जिसने आपकी ज़िंदगी में फिर से ख़ुशियों के रंग बिखेर दिए. ये खुशियां अब सदा आपके साथ रहेंगी. जैसे ही आपके मन में कृतज्ञता का भाव आएगा निगेटिव ईमोशंस और डर अपने आप दूर हो जाएंगे.
2) खुद को कोसें नहीं
कई बार ऐसा होता है कि बीती बातों के लिए स्वयं को ज़िमम्ेदार मानते हुए आप ख़ुद को ही धिक्कारने लगते हैं या घृणा करने लगते हैं. ऐसा होना स्वाभाविक है. जब भी ऐसी भावना मन में उपजे तो अपनी कुछ अच्छी चीज़ों को याद करके ख़ुद से प्यार करने की कोशिश करें.
3) रिश्तों को चुनें
एक बार रिश्ता टूट गया या ग़लत साथी ज़िंदगी में आ गया तो इसका ये मतलब नहीं है कि दोबारा भी वही होगा. ग़लती हर किसी से हो जाती है, ये बात मानकर चलें और अगली बार बहुत सावधानी से किसी साथी को चुनेेंं. बिना किसी पूर्व धारणा के नए रिश्तों को अपनाना चाहिए. जो हुआ, वह दोबारा क्यों होगा? स्वयं को आश्वस्त करें. ऐसे लोगों जिनमें दोस्त, रिश्तेदार या परिवार के लोग शामिल हैं, के संपर्क में रहें जो आपके ईमोशनल बैगेज को हल्का करने में आपकी मदद करें.
4) अपनी बुराई न करें
यदि आप ख़ुद ही हमेशा अपनी आलोचना करते रहेंगे और अतीत में जो कुछ बुरा हुआ उसके लिए ख़ुद को कसूरवार मानते रहेंगे, तो कभी उस बोझ से बाहर नहीं निकल पाएंगे और अन्य लोग भी आपको उससे बाहर निकलने नहीं देंगे. आख़िर दूसरे क्यों आपकी आलोचना करने में पीछे रहेंगे? स्वयं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहें, क्योंकि दूसरों से प्रोत्साहन पाने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है आपके अंदर प्रेरणा का भाव पैदा होना. ऐसा होने पर आप आसानी से ईमोशनल बैगेज को उतार फेकेंगी.
5) माफ़ कर दें और भूल जाएं
किसी ने आपके दिल को ठेस पहुंचाई, इस बात को च्यूईंगम की तरह खींचने की बजाय उस शख़्स को और ख़ुद को भी माफ़ कर दें. उन लोगों के लिए ये काम कठिन होता है जिन्हें लगता है कि वे कभी ग़लती कर ही नहीं सकतें. जब तक आप आपके दिल को चोट पहुंचाने वाले शख़्स को माफ़ नहीं करेंगे तब तक बीती बातों को भूल नहीं पाएंगे. अपनी ग़लतियों से सीखें और कोशिश करें के आप दोबारा इसे न दोहराएं. जीवन के सबक अमूल्य होते हैं- यह याद रखें.
6) शर्मिंदगी छोड़ दें
अधिकांश भावनात्मक बोझ हम शर्मिंदगी की वजह से ही ढोते हैं और ये बात हम जानते भी हैं. लोग क्या सोचेंगे या कहेंगे? इसकी परवाह न करें क्योंकि जो लोग आपसे प्यार करते हैं वे आपके अतीत के अधार पर आपका मूल्यांकन नहीं करेंगे, और जो ऐसा करते हैं उन्हें अपनी ज़िंदगी से निकाल दें. आपको घुट-घुटकर नहीं, सिर उठाकर जीना होगा.
7) डरें या घबराएं नहीं
मन पर जब अनगिनत बोझ होते हैं तो कई तरह की आशंकाओं के साथ जीना स्वाभाविक ही है. हर पल डर लगा रहता है कि फिर कोई चूक न हो जाए, कहीं फिर कोई धोखा न दे दे. कई बार तो ख़ुश होने से भी डर लगता है, खुलकर सांस लेते हुए भी डर लगता है. हंसना तो तब हम भूल ही जाते हैं. यह भय हमें हमेशा आगे बढ़ने से रोकता है, हमें एहसास कराता है कि हमें अब जीने का हक़ नहीं है. इस डर के कारण स्वयं को सीमित न करें, क्योंकि एक घटना आपके पूरे जीवन को बिखेर नहीं सकती. आपसे अतीत में कोई ग़लती हुई थी, तो अब उसे सुधार लें, उससे डरें नहीं और न ही गिल्टी फील करें.
8) दूसरों को ख़ुश करने की कोशिश न करें
हम इसलिए ज़्यादा दुखी रहते हैं, क्योंकि अपराधबोध से ग्रसित होने के कारण अक्सर हम दूसरों को ख़ुश करने में लगे रहते हैं. कोई हमारे बारे में बुरा न सोचे, कोई हमें दोष न दे, इसलिए उन्हें किसी न किसी तरह से ख़ुश करने की कोशिश करतेे रहते हैं. ख़ुद की बजाय हमारा फोकस दूसरों पर रहता है. अतः ख़ुद को बदलें, स्वयं को ख़ुश रखें और अपना जीवन सुधारने के बारे में सोचें.
9) अपना व्यवहार सुधारें
अगर आप मानती हैं कि अतीत में जो हुआ उसकी ज़िम्मेदार आप थीं तो बेझिझक उसकी ज़िम्मेदारी लें और अपने व्यवहार में सुधार लाएं. दया का पात्र न बनें कि लोग आपसे सहानूभूति रखें या आपके आंसू पोंछते रहें. याद रखें कि अगर नाव में बैठने से पहले आप अतिरिक्त सामान को नहीं छोड़ेंगी तो आप डूब जाएंगी. अपने व्यवहार में सुधार करना कठिन काम ज़रूर हो सकता है, मगर नामुमक़िन नहीं, और ये सुधार आपकी ज़िंदगी बदल सकता है.
10) प्रोफेशनल की मदद लें
अगर आपको लगता है कि आप अपने ईमोशनल बैगेज को उतार फेंकने में असमर्थ हैं तो किसी प्रोफेशनल की मदद ले सकती हैं. वह आपके पॉज़िटिव ईमोशंस को बाहर लाने में मदद करेगा. आप मेडीटेशन करके भी अपने भय और ग्लानि से बाहर निकलकर भावनात्मक बोझ से मुक्त हो सकती हैं.