Close

कहीं आपका बच्चा मानसिक शोषण का शिकार तो नहीं? (Is Your Child A Victim To Mental Abuse?)

“तुम बहुत ही बेवकूफ़ हो...” “तुम ज़िंदगी में कुछ नहीं कर सकते...” “मैं तुमसे इसलिए प्यार नहीं करती, क्योंकि तुम इस लायक ही नहीं हो....” “तुमसे कोई काम सही नहीं होता, जो करते हो ग़लत ही करते हो....” देखने या सुनने में ये वाक्य भले ही आम लगे, लेकिन जब ये वाक्य बार-बार, हर बार दोहराए जाते हैं तो सुननेवाले के दिलो-दिमाग़ में यह बात घर करने लगती है. धीरे-धीरे उसके मन में यह बात बैठ जाती है कि अब वह किसी लायक नहीं है. व्यक्ति का पूरा व्यक्तित्व ही ख़त्म हो जाता है, यही है मेंटल एब्यूज़िंग या मानसिक शोषण.  कहीं आप भी अपने बच्चे के साथ ऐसा ही तो नहीं कर रहे! माना कि माता-पिता बच्चों के दुश्मन नहीं होते, लेकिन बच्चों पर किस बात का क्या असर होगा, इसका फैसला आप स्वयं तो नहीं कर सकते. अक्सर कई माता-पिता कभी ज्ञान के अभाव में, तो कभी जान-बूझकर अपने बच्चों में कमियां निकाला करते हैं. उन्हें लगता है कि शायद इस बात से बच्चा अपनी ग़लती सुधारे और ज़िंदगी में क़ामयाब हो, लेकिन वे यह नहीं जानते कि वे अनजाने में अपने बच्चे के साथ कितना ज़ुल्म कर रहे हैं. इस तरी़के से वे अपने बच्चे को ज़िंदगी की दौड़ में और पीछे कर रहे हैं. इसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं मुंबई के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. समीर दलवाई. क्या है मानसिक शोषण? साधारण शब्दों में यदि इसे परिभाषित किया जाए तो कहा जा सकता है कि बच्चों के प्रति किया गया ऐसा व्यवहार जो उसके लिए मानसिक रूप से ठीक न हो या उसके विकास में बाधा डाले, उसे मानसिक शोषण कहा जाता है. बच्चों के शारीरिक पीड़ा से कहीं ज़्यादा तकलीफ़देह है मानसिक पीड़ा, क्योंकि शरीर के ज़ख़्म तो भर जाते हैं पर ज़ुबां से निकले शब्द सीधे दिल पर लगते हैं और दिमाग़ को प्रभावित करते हैं. इसीलिए यह शारीरिक व यौन शोषण से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है. इसका असर कभी ख़त्म न होनेवाला होता है. यह भी पढ़े: बच्चों से जुड़ी मनोवैज्ञानिक समस्याएं  मानसिक शोषण के लिए ज़िम्मेदार लोग 1. सबसे पहले ज़िम्मेदार होते हैं माता-पिता या गार्जियन (जिनकी देखरेख में बच्चे  पल-बढ़ रहे हों). 2. बहन-भाई 3. शिक्षक या कोच (जो किसी खेल का प्रशिक्षण दे रहे हों). 4. सहपाठी (बुलिंग करना). कौन-कौन-सी बातें आती हैं? मानसिक शोषण में कई बातें आती हैं, जैसे- 1. बच्चे को बार-बार सज़ा देना- अंधेरे कमरे में ज़्यादा समय तक बंद करना या हाथ-पैर बांध कर बैठाना. 2. उस पर हर बार ग़ुस्सा करना, गालियां देना,  चीखना-चिल्लाना, डराना-धमकाना. 3. दूसरों के सामने मज़ाक उड़ाना, किसी ख़ास तरह के नाम से बुलाना. 4. नज़रअंदाज़ करना- बच्चे पर ध्यान न देना. उसकी ज़रूरत के अनुसार चीज़ें उपलब्ध न कराना. उसकी भावनाओं व मानसिकता को न समझना. 5. किसी और के सामने शर्मिंदा या अपमानित करना. 6. दूसरे बच्चों या भाई-बहनों से उसकी तुलना करना. 7. प्यार में कमी - बच्चे को चुंबन या आलिंगन न करना या ऐसी बातें न कहना, जिससे ज़ाहिर  होता हो कि माता-पिता उन्हें प्यार करते       हैं. स्पर्श का एहसास बच्चों में प्यार की भावना जगाता है. बच्चे स्पर्श की भाषा ख़ूब समझते हैं और इसी की अपनों से अपेक्षा करते हैं. 8. आरोपित करना- बार-बार यह कहना कि सब तुम्हारी ग़लती है. यदि तुम ऐसा न करते तो ये न होता. [amazon_link asins='B00IFWDRAA,B00350F55M,B015ZKZUH2,B015E3ASYK' template='ProductCarousel' store='pbc02-21' marketplace='IN' link_id='f8fcb8f6-c083-11e7-a447-e7878d9e58d0'] यह भी पढ़े: टीनएजर्स की मानसिक-सामाजिक व पारिवारिक समस्याएं  मानसिक शोषण का बच्चों पर प्रभाव भावनात्मक प्रभाव * इस तरह के बच्चे आत्मकेंद्रित हो जाते हैं. * व्यवहारिक नहीं होते. * संकोची व डरपोक क़िस्म के होते हैं. * ज़िंदगी में रिस्क लेने से डरते हैं. चुनौतियों से घबराते हैं. * मन से विद्रोही हो जाते हैं. * उत्साह की कमी होती है. * उनमें उदासीनता आ जाती है. ऐसे बच्चे जल्दी ही डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. * इन्हें हर जगह प्यार की तलाश होती है, जल्दी से संतुष्ट नहीं होते. * इनमें असुरक्षा की भावना बहुत ज़्यादा होती है. * एकाग्रता की कमी होती है, एक जगह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. * रिश्ते बनाने में मुश्किलें आती हैं.श्र व्यक्तित्व उभर कर नहीं आता. * ऐसे बच्चे जल्दी गुमराह हो जाते हैं. * ऐसी लड़कियां अक्सर कम उम्र में कुंआरापन खो देती हैं. * शादीशुदा और सेक्स जीवन पर भी प्रभाव पड़ सकता है. * यदि समस्या ज़्यादा बढ़ जाए तो मानसिक रूप से स्थिर नहीं रहता. शारीरिक प्रभाव स्वस्थ नहीं रहते. ताउम्र स्वास्थ्य संबंधी परेशानी चलती रहती है.बच्चों का मानसिक शोषण चाहे माता-पिता द्वारा हो या फिर किसी और द्वारा, यह उसके बचपन पर भी असर डालता है और बड़े होने पर उसके व्यक्तित्व के साथ उसकी ज़िंदगी को भी प्रभावित करता है. यदि बच्चे को परिवार और स्कूल दोनों ओर से अच्छा माहौल मिले तो उसका विकास अच्छा होता है, व्यक्तित्व उभरकर आता है. कई केस में यह भी देखने में आया है कि बच्चे को घर में इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा है, लेकिन बाहर दोस्तों व शिक्षकों के सहयोग से वे अपने व्यक्तित्व को संतुलित करने में क़ामयाब भी हुए हैं. यह भी पढ़े: पैरेंट्स के लिए गाइड  [amazon_link asins='B002QWKJFG,B01K6URY8Y,1556434774' template='ProductCarousel' store='pbc02-21' marketplace='IN' link_id='0ede392e-c084-11e7-a648-fb38a1769df8'] माता-पिता बनें जागरुक 
  • कई माता-पिता को तो इस बात का एहसास भी नहीं होता कि वे कुछ ग़लत कर रहे हैं.
  • उन्हें लगता है कि बार-बार बच्चे को डांटने से उसमें आगे बढ़ने की इच्छा पैदा होगी.
  • ज़िंदगी की कठिन चुनौतियों के लिए वे अपने बच्चे को तैयार करना चाहते हैं, इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं. लेकिन वे नहीं जानते कि अपनी अज्ञानता के चलते वे अपने बच्चे को अंदर से ख़त्म करते जा रहे हैं.
  • इस तरह का व्यवहार करके उससे उसकी ख़ुशहाल ज़िंदगी छीन रहे हैं.
  • उसकी क़ामयाबी पर रोक लगा रहे हैं.
  • इस तरह आप उन्हें अपने आप से भी दूर करते हैं और साथ ही दुनिया से भी.
  • यदि घर पर आपके बच्चे को माहौल अच्छा मिल रहा है, तो स्कूल में शिक्षक व दोस्तों का ध्यान ज़रूर रखें कि कहीं बच्चा वहां से प्रताड़ित तो नहीं है.
  • बच्चे को स्कूल भेजकर निश्‍चिंत न हो जाएं.
  • बच्चों के प्रति माता-पिता की ज़िम्मेदारी कभी ख़त्म नहीं होती.
  • बच्चों की ज़रूरतें और शौक़ पूरे कर देने को परवरिश नहीं कहते, इसके लिए ज़रूरी है  बच्चों के दिमाग़ को समझना.
  • उनके मनोविज्ञान को समझें.
  • एक बच्चे के पूर्ण विकास के लिए शारीरिक विकास जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है मानसिक विकास.
  • जिस तरह एक पौधे को पनपने के लिए खाद, धूप और पानी की ज़रूरत होती है, वैसे ही बच्चों के सही विकास के लिए लाड़-प्यार के साथ अच्छे संस्कार, शुद्ध विचार, प्रोत्साहन, ज़िंदगी की प्रेरणा, ख़ुशी व उत्साह का माहौल ज़रूरी है.
                                                                                                                                                            - सुमन शर्मा
अधिक पैरेंटिंग टिप्स के लिए यहां क्लिक करेंः Parenting Guide 
 

Share this article