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हेल्थ अलर्ट- आयरन की कमी और एनीमिया की चुनौती… (Iron Deficiency Anaemia- A Clinical Challenge…)

आयरन की कमी से होनेवाला एनीमिया दुनियाभर में ख़तरनाक रूप से चिंता का विषय बनता जा रहा है. आमतौर पर ज्यादातर बीमारियों की जड़ें भोजन की मात्रा या उनमें आवश्यक पोषक तत्वों की कमी से जुड़ी होती हैं. विकासशील दुनिया में खानपान में अनियमितता काफ़ी देखने को मिलती है. इस संबंध में भारत में 52 फीसदी गर्भवती महिलाएं आयरन की कमी से पीड़ित हैं. यह संख्या भारत जैसे देश के लिए बहुत ज्यादा है.

आयरन की कमी और एनीमिया पर कई गायनाकोलॉजिस्‍ट, ऑब्‍सटेट्रिशियन, इंफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने महत्वपूर्ण जानकारियां दीं.
डॉ. शिल्पी सूद का कहना है कि जितनी बड़ी संख्या में आयरन की कमी से जूझ रही गर्भवती महिलाएं मेरे पास इलाज के लिए आती हैं, यह वाकई अफ़सोसजनक है. लेकिन इससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात यह है कि इस संख्या में पिछले दो दशकों से कोई भी सुधार नहीं हुआ है. अब समय आ गया है, जब बड़े पैमाने पर फैलते जा रहे इस मुद्दे के समाधान के लिए एक निर्णायक जन स्वास्थ्य नीति बनाई जाए. कई दशकों से सरकारें इस संबंध में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए कई अभियान चलाने और इस समस्या पर शुरुआत से ही लगाम लगाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन अभी तक इस दिशा में पर्याप्त सफलता नहीं मिल पाई है. जब हम आयरन की कमी से निपटने के नज़रिए की जांच करें, तो इस कार्यक्रम के मुख्य केंद्रबिंदुओं में से एक लक्षणों की जल्दी पहचान होना चाहिए. आयरन की कमी के लक्षणों को पहचानना अक्सर काफ़ी मुश्किल होता है, क्योंकि यह दूसरी बीमारियों के भेष में छिपकर सामने आ सकता है. आयरन की कमी से होनेवाली बीमारी सामान्य रोग के लक्षणों में मिल सकती है.

थकान और भूख ना लगना…
डॉ. राजुल त्यागी का भी मानना है कि शरीर में लौह तत्व की कमी आमतौर पर सबसे अधिक देखे जानेवाला लक्षण बहुत ज़्यादा थकान होना और कमज़ोरी है. मरीज़ों को अक्सर यह शिकायत रहती है कि लंबे समय से रहनेवाली थकान की वजह से उन्हें नियमित दिनचर्या का पालन करने में भी परेशानी होती है. हालांकि लोग इसे सहज रूप से गर्भावस्था से जोड़ देते हैं. इसे अक्सर एनीमिया का लक्षण माना जाता है.
थकान के अलावा एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं की त्वचा का रंग पीला हो जाता है.
वह अक्सर सीने में दर्द या सांस लेने में तकलीफ़ होने की शिकायत करती हैं.
इसके अलावा पुराना सिरदर्द, चक्कर आना और बेहोशी आना है.
मरीज़ को महसूस हो सकता है कि उसके सिर में पर्याप्त रक्त का प्रवाह नहीं हो रहा है.
जब ये सभी लक्षण एक समूह में पाए जाते हैं, तो सबसे पहला कदम मरीज़ का हीमोग्लोबिन लेवल चेक करने के लिए हीमोग्लोबिन (एचबी) टेस्ट करना होता है. जब एनीमिया के अन्य बीमारियों के लक्षणों से मिलने की पुष्टि होती है, तो एनीमिया की जांच अलग से की जा सकती है. हमने यह भी पाया है कि सूजन, जीभ में दर्द और नाजुक होकर नाख़ूनों का टूटना भी आयरन की कमी से होनेवाले एनीमिया रोग के लक्षण है.
थकान के साथ एनीमिया का दूसरा लक्षण, जो आमतौर पर सभी मरीज़ों में पाया जाता है, वह है उनकी भूख में कमी.

डॉ. माधुरी पटेल के अनुसार, आयरन की कमी से जूझ रहे मरीज़ों में यह देखा गया है कि उनकी भूख काफ़ी कम हो जाती है. यह काफ़ी ख़तरनाक संकेत है. इस स्थिति से निपटने के लिए हमें तुरंत कदम उठाने चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन मरीज़ों में आयरन की कमी हो जाती है, उनका हीमोग्लोबिन लेवल बढ़ाने में हम मदद करते हैं. इसके लिए ज़रूरी है कि वह पौष्टिक भोजन करें, क्योंकि उन्हें कुछ निश्चित मात्रा में ही सप्लिमेंट्स दिए जा सकते हैं. लेकिन यहां यह बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब गर्भवती महिलाओं को भूख कम लगती है, तो वे पर्याप्त मात्रा में आवश्यकतानुसार पौष्टिक भोजन नहीं कर पातीं, जो आयरन की कमी को दूर करने के लिए ज़रूरी है. तब यह और गंभीर चिंता का विषय बन जाता है कि गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी का उनके भ्रूण में पल रहे शिशु पर हानिकारक प्रभाव हो सकता है. सबसे ख़राब स्थिति यह भी हो सकती है कि नवजात शिशु भी एनीमिया से पीड़ित हो.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍लूएचओ) ने हीमोग्‍लोबिन के स्‍वस्‍थ स्‍तर के लिए बेंचमार्क के तौर पर 12 ग्राम रहने की अनुशंसा की है.

एहतियात व उपाय…
डॉ. मीना सामंत का मानना है कि जब आयरन की कमी से निपटने की बात आती है, तो भारत को एक साथ कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हालांकि इस संबंध में नीति निर्धारित करने के लिए पहला कदम यह होगा कि लोगों में हरी पत्तेदार सब्ज़ियों, चुकंदर और गाजर जैसे शरीर में ख़ून बनानेवाली लाल सब्ज़ियों से भरपूर संतुलित भोजन करने की ज़रूरत के संबंध में जागरूकता फैलाई जाए. यहां यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारत में उन मुद्दों से भी निपटना पड़ता है, जो ख़ासतौर पर यहीं पाए जाते हैं. इसका एक प्रमुख उदाहरण यह है कि हमें गर्भवती महिलाओं की आंतों को कीड़ों के संक्रमण से बचाने के लिए भी सक्रिय रहने की ज़रूरत है. यह भारत में आयरन की कमी का सामान्य कारण है. बड़े पैमाने पर पर्याप्त एहतियात व उपाय अपनाना ही आयरन की कमी को दूर करने का एकमात्र रास्ता है. जब कभी किसी को अपने शरीर में आयरन की कमी से जुड़ा कोई सामान्य लक्षण महसूस हो, तो ऐसी स्थिति में तुरंत डॉक्टर की सलाह लें, क्योंकि जल्दी जांच से हमेशा बेहतर इलाज का रास्ता खुलता है.

हालांकि यह स्थिति डरानेवाली प्रतीत होती है, लेकिन एनीमिया पर जीत हासिल करना संभव है. हमें मज़बूती से इस चुनौती का मुक़ाबला करना चाहिए. एनीमियामुक्त भारत बनाने की दिशा में महिलाओं को इस दिशा में पहला कदम उठाना याद रखना चाहिए. उन्हें अपना हीमोग्लोबिन टेस्ट कराना चाहिए और अपना हीमोग्लोबिन लेवल 12 ग्राम से ज़्यादा बरक़रार रखना चाहिए.

- ऊषा गुप्ता

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Iron Deficiency Anaemia

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