आधुनिक होने का दावा करनेवाले और महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले हमारे देश में बेशक पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की स्थिति में बहुत बदलाव आया है, लेकिन कुछ बातें हैं, जो आज भी नहीं बदलीं. क्या बदला और क्या नहीं, आइए जानते हैं.
बदलाव जो महिलाओं की ज़िंदगी में आए
- बदलते समय के साथ रिश्तों में अधिक खुलापन आ गया है. रिश्ते प्रैक्टिकल बन गए हैं. कहीं किसी दबाव, बंधन की गुंजाइश नहीं, ख़ासकर महिलाएं तो अब रिश्तों में कोई घुटन बर्दाश्त नहीं करतीं.
- माता-पिता अब दोस्त बन गए हैं, जिनके साथ बेटियां अपने मन की हर बात बांट सकती हैं.
- इसी तरह पति-पत्नी के बीच रिश्ता भी अब फ्रेंड जैसा ज़्यादा हो गया है. अब पत्नियों को पति के हुक्म पर उनके आगे-पीछे नहीं घूमना पड़ता और पति भी ऐसा करने से बचते हैं, जिससे उनके रिश्तों में अंडरस्टैंडिंग बढी है.
- शिक्षा ने उसे रिश्तों की नई समझ दी है और रिश्तों को पूरी समझदारी के साथ निभा पा रही है.
- होममेकर, करियर वूमन, मां, पत्नी, बेटी, बहू हर भूमिका वो बेहतर ढंग से निभा रही है, हर रिश्ते का निर्वाह कर रही है.
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- विवाह के मायने बदल गए हैं. विवाह को पहले दो इंसानों और परिवारों के बीच रिश्ते का बंधन जाता था, पति-पत्नी एक-दूसरे के सुख-दुख में ही अपना सुख-दुख तलाशते थे. अब वैसा नहीं रह गया है. अब शादी दो परिवारों का नहीं, दो इंसानों का रिश्ता बन गया है और महिलाएं भी इस नए बदलाव से ख़ुश हैं.
- पति के लिए हर वक़्त उपलब्ध रहने की मजबूरी भी अब महिलाओं के लिए नहीं रह गई है, न सेक्स में न उनके हर छोटे-बड़े काम करने के लिए और पतियों ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है.
- हर बात पति से पूछकर ही करनी है, पति से पूछे बिना अपनी मर्ज़ी से कहीं आ-जा नहीं सकती, पैसे नहीं खर्च सकती, कोई फैसला नहीं कर सकती, ये मजबूरियां भी महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता ने दूर कर दी हैं.
- पहले तलाक़ की बात ज़बान पर लाना भी अपराध समझा जाता था.बड़ी-बड़ी समस्याएं होने पर भी महिलाओं को रिश्ता निभाना पड़ता था, लेकिन अब पति या ससुरालवालों का अत्याचार सहना उसकी मजबूरी नहीं रह गई है. अगर बात नहीं बनी तो महिलाएं तलाक़ का फैसला लेने से भी पीछे नहीं हटतीं.
- विवाह जो पहले सिर्फ समझौते पर टिके होते थे, वे अब ख़ुशियों के संबंध में परिवर्तित हो गए हैं, क्योंकि पति अब पत्नियों के जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करते, उन्हें स्पेस और आज़ादी देते हैं.
- व़क़्त बदल गया है और अब शादी का मतलब वह नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था. जब ये सीख देकर बेटी को बिदा किया जाता था कि इस घर से डोली उठी है, अर्थी ससुराल से ही उठनी चाहिए. अब तो जब लड़की को लगता है कि वैवाहिक रिश्ते में उसका सांस लेना मुश्किल लग रहा है तो ऐसे रिश्ते को तोड़ने में वो बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाती.
- अब ये उम्मीद नहीं की जाती कि महिलाओं को सीता जैसा होना चाहिए. जो हर हाल में पति का साथ निभाने को तैयार हो…पति की आज्ञाकारी हो, कभी कोई शिकायत न करे, अब महिलाओं को बराबरी का दर्जा प्राप्त है.
- अब बेटी होने पर उसे ताने नहीं सुनने पड़ते, न घर में भेदभाव सहना पड़ता है.
- अब परंपराओं के नाम घर की चारदीवारी में बंद रहने की मजबूरी भी नहीं रही.
- उसे समान शिक्षा का अधिकार मिल गया है.
- नौकरी करने की, करियर में आगे बढने की, अपनी पसंद का करियर चुनने की आज़ादी मिल गई है.
- उसके लिए भी बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होने लगी हैं.
- अब शिक्षा और करियर के लिए उसे शहर से बाहर भेजने में परिवारवाले नहीं हिचकिचाते.
- बड़े शहरों में तो महिलाओं को नाइट शिफ्ट में काम करने की भी छूट मिल गई है.
- विवाह अब घर के बड़े-बुजुर्गों की पसंद से नहीं होता. अब लड़कियों से उनकी पसंद पूछकर ही शादी तय की जाती है. इतना ही नहीं, शादी की उम्र भी बदल गई है और लड़कियों की शिक्षा पूरी होने के बाद ही शादी के बारे में सोचा जाता है.
- विवाह अब ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत नहीं गया है. महिलाओं के लिए विवाह से कहीं ज़्यादा ज़रूरी करियर हो गया है.
- बच्चों के लिए गार्जियन अब स़िर्फ पिता नहीं रह गए हैं. उनकी पढाई-लिखाई से संबंधित सभी फैसले अब पिता नहीं लेते, बल्कि मांएं भी उसमें शामिल होती हैं, बल्कि कई परिवारों में तो ये निर्णय मां ही लेती है.
- कम बच्चे पैदा करने के निर्णय का अधिकार मिल गया है.
- महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं और ज़रूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाती. ़
- महिलाओं के हित को ध्यान में रखकर कई कानून भी बनाए गए हैं, महिलाओं के विकास और समाज में उनकी स्थिति में सुधार के लिए उन्हें कई अधिकार भी दिए गए हैं.
कानून ने क्या सहूलियतें दी हें - अब पति पत्नी के साथ यौन संबंधों के लिए ज़बरदस्ती नहीं कर सकता. इस संबंध में मौखिक या भावनात्मक प्रताड़ना नहीं कर सकता.
- अब पति अपनी पत्नी के चरित्र पर उंगली नहीं उठा सकता.
- पुत्र पैदा न करने या दहेज न लाने पर उसे अपमानित नहीं कर सकता.
- वह उसके स्त्रीधन, गहने, कपड़े आदि का उसकी मर्जी के बिना इस्तेमाल नहीं कर सकता.
- संभोग, पोर्नोग्राफी या अन्य आपत्तिजनक स्थितियों के लिए उसे मजबूर नहीं कर सकता.
- जहां वह रह रही है, उस घर को वह बेच नहीं सकता. खुद का घर न होने पर उसे किराए के घर की व्यवस्था करनी होगी.
- उसकी संपत्ति में पत्नी भी हिस्सेदार होगी.
- अब पत्नी को नौकरी करने या नौकरी छोड़ने के लिए विवश नहीं कर सकता.
- पैतृक संपत्ति में उसे समान अधिकार प्राप्त है.
- वह हर अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा सकती है, चाहे सेक्सुअल हरेसमेंट की बात हो या किसी भी असमानता की.
- महिलाओं को मिलनेवाली कानूनी सहूलियतों की लिस्ट लंबी है, जिससे बेशक महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर हुई है.
- चाहे सोशल फील्ड हो, राजनीति हो, बिज़नेस या खेल का मैदान- महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है और पूरे आत्मविश्वास के साथ क़ामयाबी की राह पर आगे बढ रही हैं.
- महिलाएं मल्टी टास्किंग हो गई हैं और घर-ऑफिस को साथ-साथ बख़ूबी मैनेज कर रही हैं.
- महिलाओं की शिक्षा, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता ने उनकी ही नहीं, बल्कि परिवार के हर सदस्य के जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल दी है.
- महिलाएं टेक्नो स्मार्ट हो गई हैं- चाहे स्मार्ट मोबाइल हो या इंटरनेट, ड्राइविंग की बात हो या किसी और टेक्नोलॉजी की, महिलाएं सब कुछ स्मार्टली हैंडल कर रही हैं.
- निवेश का गणित वे अब समझने लगी हैं. फाइनेंस को बेहतर ढंग से हैंडल करना उन्होंने सीख लिया है. आज महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में इंवेस्ट कर रही हैं, जिसकी पहले उन्हें जानकारी भी नहीं थी.
- आज महिलाओं का अपना सामाजिक स्तर है, अपनी पहचान है, जिसने उन्हें नया आत्मविश्वास दिया है, नया जज़्बा दिया है.
25 सालों में क्या नहीं बदला
- हम लाख कह लें कि महिलाओं की समाज में स्थिति बेहतर हुई है, पर कई मामलों में आज भी कमोबेश उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.
- आज भी उनके साथ मार-पीट की जाती है, आज भी वो घरेलू हिंसा की शिकार हैं. पढी-लिखी, उच्च पदों पर काम करनेवाली महिलाओं से लेकर आम महिलाएं भी चुपचाप हिंसा सहने को मजबूर हैं.
- और हद तो ये है कि महिलाएं पति-परिवार के ख़िलाफ़ क़ानून का दरवाज़ा खटखटाने में आज भी झिझकती हैं. जब तक पानी सिर तक नहीं आ जाता, वे चुपचाप जुल्म सहती जाती हैं.
- घर में खाना बनाने, सफाई और सभी घरेलू काम करने से लेकर बच्चे संभालने तक की ज़िम्मेदारी आज भी उसी की है.
- शादी करके दूसरे घर-परिवार में जाकर निभाना उसी को पड़ता है. ससुराल में जाकर नए परिवार के सामंजस्य वही बिठाती है.
- बच्चा न होने पर महिलाओं को ही दोषी ठहराया जाता है और उन्हें ही ताने सुनने पड़ते हैं, भले ही दोष पति में क्यों न हो.
- बेटे की चाह में आज भी उसे कई बार गर्भपात करवाने को मजबूर होना पड़ता है. बेटे न हों तो उसके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, जबकि बेटेवाली महिलाओं को प्यार और सम्मान मिलता है.
- सारे रिश्ते-नाते निभाने की ज़िम्मेदारी उसी की है. परिवार या आस-पड़ोस में कोई शादी-ब्याह हो या कोई सुख-दुख का मौका- उसे ही सब निभाना पड़ता है.
- तीज-त्योहार मनाने, सारे परंपराओं-संस्कारों का पालन भी वही करती है.
- शादीशुदा ज़िंदगी में समझौते ज़्यादातर उसी को करने पड़ते हैं. पूरी अंडरस्टैंडिंग उसी को दिखानी पड़ती है. जहां वो ऐसा नहीं कर पाती, वहां रिश्ता टूटने में देर नहीं लगती.
- आज भी महिलाएं दहेज जैसी कुप्रथा झेलने को मजबूर हैं. उच्च शिक्षित होने के बावजूद बिना दहेज उनकी शादी की कोई गारंटी नहीं है. उल्टे ज़्यादा पढी-लिखी लड़कियों को उच्च शिक्षित वर ढूंढने के लिए मोटी रकम दहेज के रूप में देनी पड़ती है.
- बहू और पत्नी के रूप में सुंदर लड़कियों की चाहत आज भी नहीं बदली है.
- उसे उपभोग की वस्तु समझा जाता है. ज़्यादातर पुरुष उसे सेक्स ऑब्जेक्ट के तौर पर ही देखते हैं. दिनोंदिन बढते रेप के केसेस पुरुषों की इसी मानसिकता का नतीज़ा हैं.
- नज़रें नीची करके चलना, घर- परिवार की इज़्ज़त पर कभी आंच आने न देना, कम बोलना, धीरे हंसना, सलीके के कपड़े पहनना जैसी तमाम हिदायतें आज भी महिलाओं के लिए ही हैं. हां, शहरों में अब स्थितियां बदल गई हैं.
- रिश्तों में समझौता करने और पति की हर ग़लती को माफ करके परिवार को जोड़े रखने की उम्मीद आज भी उसी से की जाती है.
- अगर पति-पत्नी में तलाक़ की नौबत आती है तो भी दोष पत्नी पर ही मढा जाता है कि ज़रूर इसमें ही कोई कमी रही होगी या यही रिश्तों को संभाल नहीं पाई.
- बच्चे कुछ बन जाएं तो पिता का नाम रोशन होता है और अगर बिगड़ जाएं तो सारा दोष मां के सिर मढ दिया जाता है.
- भले ही वो करियर की किसी भी ऊंचाई पर पहुंच गई हो, क़ामयाबी की मिसाल कायम की हो, फिर भी उससे परफेक्ट होममेकर बनने की उम्मीद अब भी बरकरार है.
- आज भी अगर वो देर रात घर लौटती है भले ही ऑफिस से लौट रही हो या किसी रिश्तेदार के यहां से, तो लोगों की भौंहें तन जाती हैं और उस पर उंगलियां उठते देर नहीं लगती. यानी उसका देर रात घर लौटना अब भी समाज ने स्वीकार नहीं किया है.
- भले ही उसे क़ानून ने तमाम अधिकार दे दिए हों, लेकिन आज भी अपने अधिकारों का इस्तेमाल कम ही करती है. उसे लगता है कि अपनों से क्या क़ानूनी बात करनी. उसे जो मिल जाता है, उसी में संतोष कर लेती है.
- वो आज भी बेहद इमोशनल है. रिश्तों से जुड़ी हर बात, हर फैसले वो दिमाग से नहीं, दिल से करती है. इमोशन उसके लिए मुहब्बत का ही एक हिस्सा है, लेकिन उसके इमोशनल होने का कई बार पुरुष ग़लत फायदा उठाते हैं.
- यहां तक कि तलाक़ की स्थिति में भी उसे ज़्यादा तकलीफ़ होती है. वहीं ज़्यादा टूटती है, क्योंकि आज भी उसे रिश्ते निभाने में ज़्यादा ख़ुशी मिलती है और रिश्ते टूटने पर दुख.
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