मां बनना हर महिला के जीवन का ख़ूबसूरत एहसास होता है, लेकिन कई बार ये जर्नी आसान नहीं होती. कई बार प्रेग्नेंसी में कई तरह की प्रॉब्लम्स आ जाती हैं, जिसे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी कहते हैं. हाई रिस्क प्रेग्नेंसी क्या और क्यों होती है और इस स्थिति में क्या एहतियात बरतना चाहिए, बता रही हैं लीलावती अस्पताल, मुंबई की सीनियर गायनाकोलॉजिस्ट, इनफर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ. नंदिता पालशेतकर.

हाई रिस्क प्रेग्नेंसी क्या होती है?
मां बनने के लिए 18-35 साल तक की उम्र सही होती है, लेकिन जो महिलाएं 35 साल के बाद मां बनती हैं, उनमें हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की संभावना होती है. इस स्थिति में महिला को अपना ख़ास ध्यान रखना होता है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ जटिलाएं होने की संभावना अधिक होती है.
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के क्या कारण है?
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के कई कारण हैं, जैसे
- 18 साल से पहले मां बनना
- टाइप 1 डायबिटीज़
- हाई ब्लडप्रेशर
- मल्टीपल प्रेग्नेंसी
- पहले महिला का अबॉर्शन हुआ हो या फिर 9 महीने से पहले डिलीवरी हुई हो
- सही समय पर चेकअप न कराना
- एक्स्ट्रा वेट/ओबेसिटी
- स्मोकिंग, ड्रग्स और अल्कोहल की लत
हसबैंड को बचपन से ही डायबिटीज़ है, तो क्या वाइफ को हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की प्रॉब्लम हो सकती है? क्या भविष्य में बच्चे को डायबिटीज़ होने की संभावना हो सकती है?
बच्चा होने के लिए पति-पत्नी दोनों का स्वस्थ होना ज़रूरी है. यदि कपल की लाइफस्टाइल अनहेल्दी है, तो दोनों को अपना लाइफस्टाइल बदलने की ज़रूरत है. यदि पिता को बचपन से ही डायबिटीज़ है, तो ज़रूरी नहीं कि वाइफ को हाई रिस्क
प्रेग्नेंसी की प्रॉब्लम हो. टाइप 1 डायबिटीज़ की स्थिति में प्रेग्नेंसी के दौरान कभी- कभी पुरुष के शुक्राणु में डिफेक्ट हो जाता है. यदि उस वजह से बच्चा नहीं हो पा रहा है, तो पति के शुगर को कंट्रोल किया जाता है. अगर शुगर कंट्रोल नहीं करेंगे,
तो बच्चे को भविष्य में डायबिटीज़ होने की संभावना हो सकती है.
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के क्या लक्षण होते हैं?
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के लक्षण कुछ ख़ास नहीं हैं, पर यदि बीपी बढ़ने पर सिरदर्द, धुंधलापन और उल्टी हो रही है, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं. इसके अलावा डॉक्टर से रेगुलर चेकअप कराएं. कई बार प्रेग्नेंसी में बीपी, शुगर और सूजन की वजह से वज़न बढ़ जाता है, ये सब चेकअप से ही पता चलता है. रूमेटाइड अर्थराइटिस की वजह से भी हाई रिस्क प्रेग्नेंसी हो सकती है. चेकअप में सभी चीज़ों का रिकॉर्ड रखा जाता है.
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में क्या खाएं और क्या नहीं?
- प्रोटीन रिच डायट, जैसे- पनीर, स्प्राउट्स, चीज़, दालें खाएं. अगर नॉन वेजिटेरियन हैं, तो अंडा, चिकन और फिश खाएं.
- हाइड्रेटेड रहें. खूब पानी पीएं.
- खाने में गुड फैट्स लें.
- डॉक्टर की सलाह के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान सप्लीमेंट्स ज़रूर लें.
- कैफीन का सेवन कम कर दें. चाय कम पीएं.
- फ्रूट जूस की बजाय ताज़े फल खाएं.
- घर का बना हुआ खाना खाएं. फास्टफूड खाने से बचें. पिज़्ज़ा, बर्गर खाने का ही मन हो, तो घर पर बनाकर खाएं.

क्या महिलाओं को प्रेग्नेंसीे से पहले प्री कन्सेप्शन काउंसलिंग करानी चाहिए?
जी हां, ज़रूर करानी चाहिए. प्री कन्सेप्शन काउंसलिंग के दौरान महिलाएं गायनाकोलॉजिस्ट से पूछें कि मैं प्रेग्नेंसी प्लान कर रही हूं और मुझे क्या करना चाहिए. गायनाकोलॉजिस्ट उन्हें गाइड करेंगे कि क्या-क्या सप्लीमेंट्स लें, कैसी डायट लें, कौन-सी एक्सरसाइज़ करें, तनाव से कैसे बचें. मेंटल हेल्थ का ख़्याल कैसे रखें?
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में कौन-कौन सी एक्सरसाइज़ करनी चाहिए?
- असल में प्रेग्नेंट महिला की कंडीशन के अनुसार उन्हें एक्सरसाइज़ बताई जाती है. बेहतर होगा कि अपनी डॉक्टर की सलाहानुसार एक्सरसाइज़ करें.
- प्रेग्नेंसी से पहले बीपी या शुगर की जो मेडिसिन खाई जाती है, क्या प्रेग्नेंसी के दौरान भी वही मेडिसिन कंटीन्यू रखी जाती है?
- बीपी या शुगर की कुछ मेडिसन प्रेग्नेंसी में सेफ नहीं होती है. इसलिए प्रेग्नेंट होने से पहले या फिर प्रेग्नेंसी पीरियड में बीपी या शुगर की दवाएं डॉक्टर की सलाह से ही लें.

लेट मैरिज होने पर हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की संभावना कितनी बढ़ जाती है?
35-40 के बाद महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या होती है. इसके अलावा 40 प्लस में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की संभावना काफी बढ़ जाती है. 40 प्लस में बीपी, शुगर, थाइरॉइड, किडनी प्रॉब्लम, आर्थराइटिस, हार्ट डिसीज़ हो सकती है, जिसके कारण प्रेग्नेंसी में जटिलाएं आ सकती हैं. इसलिए प्रेग्नेंसी पीरियड में कुछ टेस्ट कराए जाते हैं, जिनसे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का कारण पता चल सके.
- नागेश शर्मा
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी पर विस्तृत जानकारी के लिए मेरी सहेली के यूटयूब चैनल पर डॉ. नंदिता पालशेतकर के पॉडकास्ट को अवश्य सुनें.