कोविड महामारी ने हमारे जीवन को काफ़ी बदल दिया है. भले ही लॉकडाउन के कई सकारात्मक पहलू हैं, जैसे- परिवारों को एक साथ समय बिताने का मौक़ा मिला और हम अपने दोस्तों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ सामाजिक रूप से अधिक सक्रिय हुए. हमें प्रकृति का सबसे अच्छा दृश्य भी देखने मिला, हमने इनडोर शौक का भरपूर आनंद लिया. लेकिन दूसरी तरफ़ स्कूलों के बंद होने, क्लासमेट से आमने-सामने बातचीत न कर पाने, डिजिटल क्लासेस शुरू होने और नए वर्चुअल स्कूल के मापदंडों को अपनाने के भार की वजह से बच्चों की पढ़ाई का भी बेहद नुक़सान हुआ. यह बच्चों के लिए कई चुनौतियां लेकर आया, जिसकी वजह से कुछ बच्चों में अचानक एग्रेसिवनेस और ग़ुस्सा आना एक आम भावनात्मक प्रतिक्रिया यूं कहें समस्या सी बन गई. आइए, इस विषय पर डॉ. विक्रम गगनेजा, जो नई दिल्ली के एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट पीडियाट्रिक्स हैं, से मिली महत्वपूर्ण जानकारियां द्वारा इसे समझें.
यह हम सभी जानते हैं कि कोविड-19 ने दुनियाभर में खलबली मचा दी है. साथ ही इसने बच्चों और परिवारों के जीवन को भी काफ़ी हद तक बदल दिया है. यदि बच्चों के माता-पिता घर से काम कर रहे हैं या वे आवश्यक सेवा या फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, तो दोनों ही स्थितियों में वे ज़्यादातर समय अपने काम में व्यस्त रहते हैं. इससे बच्चे के जीवन में अधिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं. बच्चों सहित हम सभी के लिए यह चिंताजनक स्थिति है, जिसका सामना हमने पहले कभी नहीं किया था.
घर पर बच्चों को मीडिया के माध्यम से सभी प्रकार की जानकारियां मिल रही हैं. बच्चों ने अपने दैनिक जीवन में वायरस के व्यापक असर को महसूस किया है. कोविड-19 से प्रेरित इस नई जीवनशैली में बच्चों का ग़ुस्सा होना स्वाभाविक है. लेकिन यह भी सच है कि ग़ुस्सा केवल स्वाभाविक नहीं, बल्कि स्वस्थ प्रतिक्रिया है, पर यह लंबे समय तक रहे और मन शांत न हो, तो यह एक गंभीर समस्या बन सकती है.
बच्चों के ग़ुस्से, चिड़चिड़ापन और आक्रामकता के कई कारण होते हैं…
निराशा एक प्रमुख कारण है. जब बच्चे को वह नहीं मिलता है, जो वह चाहता है, तो उसके व्यवहार में बदलाव आने लगता है.
एक अनुमान के अनुसार, जेनेटिक्स और अन्य जैविक कारक ग़ुस्से/आक्रामकता में अहम भूमिका निभाते हैं. इसमें माहौल का भी योगदान है.
बच्चों में ग़ुस्से की समस्याओं को संभालने के लिए माता-पिता को पहले ग़ुस्से की वजह को समझना होगा. इसके लिए उन्हें बच्चों को धैर्यपूर्वक सुनना बेहद ज़रूरी है.
बच्चे अपनी परेशानियों को कैसे व्यक्त करते हैं?
इस सन्दर्भ में प्रख्यात मनोचिकित्सक एलिसाबेथ कुब्लर-रॉस ने एक मॉडल विकसित किया है, जो बच्चों की मानसिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है. इसमें परेशानी या दुख के पांच सामान्य अवस्थाओं के बारे में बताया गया है. ये कोविड-19 के दरमियान हमारे लिए उपयोगी मार्गदर्शक का काम कर सकता है. इन्हें समझकर बच्चों की चिंता और क्रोध की समस्या का सामना करने में मदद मिल सकती है.
इंकार…
इसकी शुरुआत इन्कार के साथ होती है, जिसे नज़रअंदाज़ करने, भ्रम, सदमे और डर जैसी प्रतिक्रियाओं से समझा जा सकता है.
बच्चे स्कूल बंद होने और नई जीवनशैली में ऑनलाइन कक्षाओं के कारण परेशान और भ्रमित हो सकते हैं.
सोशल डिस्टैंसिंग उन्हें दोस्तों से मिलने और उनके साथ खेलने से वंचित करता है.
ऐसे में इस वायरस को दोष देकर बच्चों को मना लेना, पैरेंट्स के लिए मुश्किलभरा होता है.
ग़ुस्सा करना…
यह दूसरा चरण है. इसे निराशा और चिंता से समझा जा सकता है. इस अवस्था में अब तक दबी हुई भावनाएं बाहर आती हैं.
कोविड-19 के परिणामस्वरूप बच्चे अपने दोस्तों और शिक्षकों से उपेक्षित महसूस कर सकते हैं.
उन्हें अपनी ज़िंदगी में सुरक्षा और नियंत्रण का अभाव महसूस हो सकता है.
घर या परिवार में ठीक से समर्थन न मिलने से बच्चे कमज़ोर पड़ सकते है, क्योंकि वे स्कूलों और दोस्तों को अधिक सहायक पाते हैं.
बच्चों के पास बड़ों की तुलना में ज़िंदगी में कठिन परिस्थितियों से निपटने का अनुभव नहीं होता है, इसलिए वे अपने मानसिक तनाव को अक्सर अकड़न, बिस्तर गीला करने, सोने में कठिनाई, अंगूठा चूसने, ग़ुस्सा दिखाने, नखरे करने और ध्यान केंद्रित करने में व्यक्त करते हैं.
सौदेबाज़ी…
बच्चे इस नई परिस्थिति जिसने उनकी ज़िंदगी को कई तरीक़ों से प्रभावित करना शुरू कर दिया है को लेकर अपने माता-पिता से सौदेबाज़ी करने की कोशिश करते हैं.
उदाहरण के लिए वे ब्लैकमेल करते हैं कि यदि आप उन्हें अपने दोस्तों के साथ खेलने की अनुमति देते हैं, तो ही वे अपने हाथ सैनिटाइज़ करेंगे या अपने हाथों को बार-बार धोएंगे.
डिप्रेशन…
यह एक गंभीर स्थिति है और यह चौथी अवस्था है. यह बेबसी की भावना है.
हमें इस स्थिति पर काफ़ी कड़ी नज़र रखनी होगी. इस स्तिथि में बच्चा अपने माता-पिता या भाई-बहनों के साथ घुलने-मिलने से बचने की, मनोरंजन या खेल खेलने से बचने और हमेशा दूर भागने की कोशिश कर सकता है.
सुरक्षा…
पांचवीं स्थिति को सुरक्षा की भावना से समझा जा सकता है. इसके साथ बच्चों को नई दिनचर्या, सच्चाई और जीवन की स्थिति के महत्व का एहसास होता है.
पैरेंट्स के लिए गाइडलाइंस
- बच्चों को समझाएं कि ग़ुस्से पर काबू न कर पाने कारण उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से नुक़सान पहुंच सकता है.
- यदि ज़रूरत पड़े, तो बच्चों के साथ उनकी चिंता और नाराज़गी दूर करने के लिए प्लानिंग करें.
- माता-पिता को सहानुभूति भी विकसित करनी होगी, जिसका अर्थ है बच्चों के हालात समझने की क्षमता.
- तर्कसंगत सोच के साथ सहानुभूति, सहिष्णुता और धैर्य विकसित करें और साथ ही ग़ुस्से को नियंत्रित करके संयम के साथ यह स्वीकारें कि सभी समस्याओं को तुरंत हल नहीं किया जा सकता है.
- इससे पहले चरण में ग़ुस्से की बारंबारता और तीव्रता को कम करने में मदद मिलती है.
- उन चीज़ों की लिस्ट बनाएं, जिससे बच्चे को ग़ुस्सा आता है.
- फिर बच्चे को इसका रिकॉर्ड रखते हुए साप्ताहिक प्रदर्शन का विश्लेषण करने के लिए कहें.
- समय-समय पर बच्चे के प्रशंसनीय प्रदर्शन के लिए इनाम भी दें. इससे उनका प्रोत्साहन बना रहेगा.
- विभिन्न तरीक़ों से भी बच्चे को शांत किया जा सकता है, जैसे- अपने ग़ुस्से से ध्यान हटाकर रचनात्मक चीज़ों में ध्यान लगाना, शारीरिक गतिविधियां, योगाभ्यास, 10-100 तक की गिनती या अपने सकारात्मक पहलुओं के बारे में सोचना आदि.
- बच्चों को इस कोरोना महामारी और लोगों पर इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में सही जानकारी दें. इससे उन्हें ग़लत सूचना और बढ़ती चिंताओं की वजह से होनेवाली समस्याओं से बचने में मदद मिलेगी.
- दरअसल, बच्चों की दैनिक दिनचर्या में अप्रत्याशित रूप से रुकावट आने से वे ख़ुद को ठगा-सा महसूस करते हैं. इसी मानसिकता के कारण उनके व्यवहार में बदलाव आता है.
- बच्चों को उनके कुछ रोज़मर्रा के कार्य ख़ुद करने दें. इससे उन्हें तनाव का सामना करने में भी मदद मिलेगी.
- बच्चों से बहुत ज़्यादा अपेक्षाएं न रखें.
- बच्चों का दिमाग़ बहुत फ्लेक्सिबल होता है और प्रियजन के समर्थन से वे किसी भी मुश्किल हालात और जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना आसानी से कर सकते हैं
- हमें उन्हें साथ देने और जब भी वे मदद मांगे, तो उनका मार्गदर्शन करने के लिए तैयार रहना है.
- उनके आसपास प्यार, केयर और सुखद माहौल बनाने की ज़रूरत है.
- उन्हें सुरक्षित महसूस कराना चाहिए.
- अगर हम उन्हें अपनी भावनाओं को सहजता से व्यक्त करने की सहूलियत देते हैं, तो उनका तनाव, चिंता और ग़ुस्सा दूर हो जाएगा.
- उन्हें रचनात्मक गतिविधियों, जैसे- ड्राॅइंग, पत्रिका में लिखना, गाने, डांस करने, क्राफ्ट या फोटोग्राफी के माध्यम से ख़ुद को व्यक्त करने की सुविधा दें.
माता-पिता सदा यह याद रखें कि आप मुस्कुराएंगे, तो आपके बच्चे आपके साथ मुस्कुराएंगे… और अगर आप उन्हें ग़ुस्सा दिखाएंगे, तो यही आपको अनजाने में ही प्रतिउत्तर में मिलेगा.
- ऊषा गुप्ता
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