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Birthday Special: मोहम्मद रफ़ी साहब को यूं भुला ना पाओगे (Happy Birthday Rafi Sahab)

Mohammed Rafi
वाकई, आज भी कोई नहीं भुला पाया है गायिकी के सम्राट मोहम्मद रफ़ी साहब को. रफ़ी साहब के गीत आज भी सभी के ज़ेहन में ताज़ा हैं. आज गायिकी के सरताज मोहम्मद रफ़ी साहब का जन्मदिन है. रफ़ी साहब के सुरीले गानों का नशा चार दशकों तक लोगों के दिलो-दिमाग पर छाया रहा है और आज भी वो सुरूर कायम है.  
Mohammed Rafi
२४ दिसंबर १९२४ को अमृतसर के नज़दीक, कोटला सुल्तान सिंह में जन्में रफ़ी साहब ने बंटवारे के वक़्त हिन्दुस्तान में रहना पसंद किया.  तेरह साल की उम्र में के. एल. सहगल के गानों के एक कॉन्सर्ट में उन्होंने पहली बार गाना गाया, जिसके बाद उनके करियर की पहली फिल्म रही पंजाबी फिल्म गुल बलोच.  इस फिल्म के बाद रफ़ी साहब को 'ऑल इंडिया रेडियो - लाहोर' की ओर से गाने का न्योता मिला और साल १९४४ में रफ़ी साहब मुंबई आ गए. मुंबई में  उनकी पहली मुलाक़ात हुई संगीतकार नौशाद से और आपको सुनकर ताज्जुब होगा कि नौशाद जी ने रफ़ी साहब को पहले कोरस में गवाया था,  गाना था हिन्दुस्तान के हैं हम.... बतौर गायक रफ़ी जी की पहली हिंदी फिल्म रही गाँव की गोरी... 
नौशाद के साथ रफ़ी जी की जोड़ी ख़ूब जमी और १९५२ में रिलीज़ हुई फिल्म बैजू बावरा ने रफ़ी साहब को एक अलग मुकाम दिया. तलत महमूद को   पसंद करने वाले नौशाद की पहली पसंद बन चुके थे रफ़ी साहब. सिर्फ नौशाद ही नहीं, बल्कि 50 और 60 के दशक में रफ़ी साहब - संगीतकार ओ.पी. नैय्यर, शंकर जयकिशन,  एस. डी. बर्मन जैसे म्यूज़िक डायरेक्टर के भी पसंदीदा गायक बन गए थे. ओ. पी. नैय्यर तो रफ़ी जी की आवाज़ से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने फिल्म रागिनी में किशोर कुमार पर फिल्माए गए गाने भी रफ़ी साहब से ही गवाए. इसके बाद रफ़ी जी ने किशोर कुमार के कई गाने गाए.  किशोर दा से पहले yodelling की शुरुआत रफ़ी साहब ने ही थी. 
Song : दिन ढल जाए... (गाइड)
एस. डी. बर्मन के साथ रफ़ी जी ने देव आनंद के लिए ढेरों गाने गाये...
https://www.youtube.com/watch?v=nVWU-cNSgDw Song : जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा...(ताजमहल) https://www.youtube.com/watch?v=u-ioONenaAQ शंकर जयकिशन के साथ रफ़ी जी ने शम्मी कपूर और राजेंद्र कुमार के लिए भी बेहतरीन गाने गाए. शम्मी कपूर की मानो आवाज़ ही बन गए थे रफ़ी साहब. रफ़ी जी के इंतकाल पर शम्मी जी ने कहा था कि उनकी आवाज़ आज उनका साथ छोड़ गयी. Song : इस रंग बदलती दुनिया में... (राजकुमार) https://www.youtube.com/watch?v=TMbHY5S7WUs रफ़ी साहब का आखरी गाना रिकॉर्ड करनेवाले लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपने करियर की शुरुआत भी उन्हीं के गाने से की थी... Song : वो जब याद आए... (पारसमणि) https://www.youtube.com/watch?v=lJti8tOpG0o
दिल के नेक रफ़ी साहब उन संगीतकारों के लिए भी मसीहा थे, जिनके पास रफ़ी साहब की फीस देने के लिए पैसे नहीं थे.  निसार बज्मी के लिए तो रफ़ी साहब ने सिर्फ एक रुपये में गाना गाया था. उन दिनों रफ़ी साहब के साथी रॉयल्टी की लड़ाई लड़ रहे थे. मगर उदार रफ़ी साहब का नज़रिया उन सब से जुदा था, इसी बात से नाराज़ होकर लताजी ने उनके साथ कुछ अरसे के लिए गाना ही बंद कर दिया था. नतीजा यह हुआ कि रफ़ी जी और आशा जी ने उन दिनों कई गाने साथ गाए.
Song: अच्छा जी मैं हारी पिया... (काला पानी)
https://www.youtube.com/watch?v=bv7z4FA3lqg
 रफ़ी साहब की आवाज़ हर अभिनेता पर ख़ूब जंचती थी, चाहे वो  देव आनंद हों या   दिलीप कुमार.
 
Song: तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करूं... (लीडर)
https://www.youtube.com/watch?v=SibBHZkNlOY
धर्मेन्द्र, जीतेंद्र, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, हर दौर के हीरो की आवाज़ बने रफ़ी साहब. राजेश खन्ना जिनके लिए आमतौर पर किशोर दा की आवाज़ इस्तेमाल की जाती थी, उनके लिए रफ़ी साहब ने कई गाने गाए.
 
Song: बागों में बहार है... (आराधना)
https://www.youtube.com/watch?v=78JhA_TJvBI
 रफ़ी जी ने अपनी उम्र में आधे कलाकारों के लिए भी सुपरहिट गाने गाए. वो कई सालों तक ऋषि कपूर की आवाज़ भी बने रहे.
Song : दर्द-ऐ-दिल... (क़र्ज़)
https://www.youtube.com/watch?v=hYNi_T848Y0
रफ़ी साहब जैसा वर्सिटाइल गायक शायद कोई रहा हो. वो हर तरह का गाना बहुत ही सरलता से गा लेते थे. उन्होंने हिंदी के अलावा कई भाषाओं में गाने गाए हैं. ये रफ़ी साहब की गायिकी का ही जादू था कि उन्हें भारतीय सरकार की तरफ से पद्मश्री से सम्मानित किया गया. रफ़ी साहब को पांच बार नेशनल अवार्ड्स और ६ बार फिल्मफेयर अवार्ड से नवाज़ा गया. पहला नेशनल अवार्ड रफ़ी साहब को मिला था फिल्म नीलकमल के गाने के लिए. रफ़ी साहब बाबुल की दुआएं गाने को गाते वक़्त रो दिए थे, क्योंकि अगले दिन उनकी बेटी की शादी थी.
Song : बाबुल की दुआएं... (नीलकमल)
https://www.youtube.com/watch?v=hbL9Gh7Ygj0 साल १९५०-१९७० तक रफ़ी जी का ही राज रहा. रमज़ान के मुबारक महीने में वो सभी को अलविदा कह गए और छोड़ गए अपनी दर्द भरी आवाज़ और अपने दिलकश गाने. रफ़ी साहब तो नहीं रहे, मगर उनकी पुर नूर आवाज़ उनके लाखों चाहने वालों को सुकून पहुंचाती रहेगी.

- प्रियंका सिंह

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