आजकल अधिकांश पैरेंट्स की यही शिकायत रहती है कि उनके बच्चे उनकी सुनते ही नहीं, दोस्तों में ज़्यादा रहते हैं और रिश्तेदारों से कतराते हैं. वो समझ नहीं पाते कि आजकल की जेनरेशन को कैसे हैंडल करें? दरअसल वो बच्चों को तो दोष देते हैं, लेकिन अपने पैरेंटिंग के तरीक़ों की ओर उनका कभी ध्यान ही नहीं जाता. तो आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि आख़िर कैसे अपने बच्चों को मूल संस्कार दें और उनको टॉक्सिक विचारों से किस तरह से बचाएं.
अनुशासन के महत्व को समझें और अपने व्यवहार व आचरण को बेहतर बनाएं: बच्चे आपसे ही सीखते हैं और ज़ुबानी ज्ञान की अपेक्षा वो आपके व्यवहार व आचरण को देखकर अधिक प्रभावित होते हैं. इसे एक उदाहरण से समझते हैं- रीना अपनी पांच साल की बेटी निशा के साथ अपनी सहेली विनीता के घर गई थी. निशा बेहद शरारती थी. वो विनीता के घर में रखे हर सामान को छेड़ रही थी. उनकी आलमारी खोल-खोल के देख रही थी. उनके बेड और सोफा पर कूद-फांद रही थी. लेकिन रीना ने एक बार भी अपनी बेटी को नहीं टोका. ऐसे में विनीता को ही समझाना पड़ा कि इस तरह सामान नहीं छेड़ा करते. इस पर निशा ने विनीता को ही उल्टा जवाब दिया कि मैं तो छेडूंगी. ये सुनकर रीना ने हंसते हुए कहा, ये सुनती ही नहीं कुछ. हमसे भी ऐसे ही बात करती है. बच्चे तो ऐसे ही होते हैं. इसी बीच निशा बोल उठी, आप भी तो पापा से ऐसे ही बात करती हो न मम्मी.
रीना थोड़ा झेंप गई और फिर बोली, मेरे पैरेंट्स ने मुझे इतने अनुशासन में रखा था, इसलिए मैंने यही सोचा कि मैं अपने बच्चों को इतने कठोर अनुशासन में नहीं रखनेवाली, इसलिए ये थोड़ी शरारती हो गई. ये सुनकर विनीता हैरान हो गई. उसने रीना को समझाया कि शरारत और बदतमीज़ी में फ़र्क़ होता है. आज तुम हंसकर उसकी बदतमीज़ियों को नज़रअंदाज़ कर रही हो, कल तुम्हें ही ये भारी पड़ेगा. अनुशासन कोई बुरी चीज़ नहीं है, वो हमारे बच्चों के उज्जवल भविष्य की नींव है. इसके अलावा बच्चों के आगे अपने पार्टनर या रिश्तेदारों से सम्मान के साथ बात करनी ज़रूरी है, वरना वो भी ऐसे ही बात करेंगे.
इतने में ही विनीता की चार साल की बेटी मुस्कान बेडरूम से बाहर आई. आकर उसने रीना को नमस्ते करके पैर छूए और पूछा, आंटी मैं निशा के साथ खेल लूं थोड़ी देर? छोटी सी मुस्कान में ये बेसिक संस्कार देख रीना को शर्मिंदगी महसूस हुई और अपनी ग़लती का एहसास भी. लाड़-प्यार अपनी जगह है, लेकिन अनुशासन भी ज़रूरी है.
बच्चों के सामने रिश्तेदारों या दोस्तों की निंदा न करें: बच्चे हमारी सभी बातों को बड़े ध्यान से सुनते हैं. जब वो देखते हैं कि पीठ पीछे आप ख़ुद अपनों की ही निंदा कर रहे हो, तो वो भी इन बातों को सच मानने लगते हैं. ऐसे में जब आप उसी रिश्तेदार के घर किसी फंक्शन में बच्चों को साथ चलने को कहते हो, तो वो कन्फ्यूज़ हो जाते हैं कि सामने तो इतना हंस-हंसकर गले मिलते हैं और पीछे से इतनी बुराई करते हैं.
लाड़-प्यार के चक्कर में बच्चों को न बनाएं लापरवाह और ग़ैरज़िम्मेदार, दें उन्हें सही संस्कार: आजकल के पैरेंट्स इसी सोच के साथ अपने बच्चों की परवरिश करते हैं कि हमें अपने बचपन में जिन अभावों से गुज़रना पड़ा, हमारे बच्चे उससे नहीं गुज़रेंगे, हम उनकी हर ख़्वाहिश पूरी करेंगे. इसी चक्कर में वो ज़रूरत से ज़्यादा लाड़ करके बच्चों को गैरज़िम्मेदार भी बना रहे होते हैं. इसे भी एक घटना के ज़रिए बेहतर समझने की कोशिश करते हैं- रूही सिंगल मदर है और उसकी 18 साल की बेटी है ख़ुशी. रूही अच्छे पद पर काम करती है, लेकिन अक्सर वो अपने कलीग्स से यही कहती रहती है कि ख़ुशी आजकल खाने-पीने में बहुत नखरे करती है, उसकी जो डिमांड होती है, मुझे वही बनाना पड़ता है, इसी चक्कर में थक जाती हूं बहुत.
एक रोज़ की बात है रूही की तबीयत थोड़ी ख़राब थी और वो फोन पर बेटी से बात करते हुए कह रही थी कि आज थोड़ा एडजस्ट कर लो बेटा, मेरी तबीयत ठीक नहीं, कल पक्का तुम्हारी पसंद का ही खाना बनाऊंगी. फोन रखने के बाद रूही ने अपनी कलीग से कहा कि देखो ना ख़ुशी मान ही नहीं रही, उसको मेरे हाथ के बने खस्ता समोसे और जलेबी खानी है, जबकि मेरी आज हिम्मत ही नहीं इतना सब बनाने की. लेकिन नहीं बनाऊंगी तो वो दोस्तों के साथ बाहर पिज़्ज़ा खाने चली जाएगी. इस पर रूही की कलीग ने कहा कि अब तो ख़ुशी एडल्ट हो चुकी है, उसे ख़ुद भी कुछ बनाना चाहिए और तुम्हारी ख़राब तबीयत के दौरान तुम्हारी केयर करनी चाहिए. इस पर रूही ने कहा, अरे वो नहीं करती और मैं ख़ुद भी नहीं चाहती कि वो किचन में जाए, क्योंकि हमारे पैरेंट्स ने बहुत कम उम्र से ही हम दोनों बहनों को किचन में झोंक दिया था, इसलिए मैं अपनी बेटी के साथ ऐसा नहीं करना चाहती. ये सुनकर रूही की कलीग काफ़ी हैरान हुई और उसने समझाने की कोशिश की कि बच्चों को ज़िम्मेदार बनाने में कोई बुराई नहीं, लेकिन रूही को ये बात कुछ ज़्यादा पसंद नहीं आई.
बच्चों से घर व बाहर के कामों में लें मदद: घर के काम बच्चों को ज़िम्मेदार तो बनाते ही हैं, साथ ही रिसर्च भी कहते हैं कि घरेलू काम करने से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है. इसी तरह बच्चों से बाहर के भी छोटे-मोटे काम करवाएं और इसके बदले उनकी तारीफ़ करें और कभी कुछ रिवॉर्ड भी दें.
बच्चों को हमारे बेसिक संस्कारों का महत्व समझाएं: बड़ों के पैर छूने से लेकर उनके आशीर्वाद का महत्व बताएं और उनके पीछे के वैज्ञानिक महत्व को भी समझाएं. बच्चों को हमेशा अपनी संस्कृति के बारे में जानकारी देते रहें. हमारे त्योहारों में छिपे सामाजिक और वैज्ञानिक महत्व को बताएं. बच्चों के मन में अपने धर्म, देश और संस्कारों के प्रति गर्व की भावना विकसित करें. आजकल सोशल मीडिया पर अलग-अलग तरह के लोगों और विचारों से बच्चे जुड़ते हैं, वो उनसे अधिक प्रभावित न हों, इसका ध्यान रखें.
बच्चों को कैसे सही-ग़लत का फ़र्क़ समझाएं?
- बच्चों को अगर आप सीधे-सीधे ज्ञान दोगे, तो वो बात नहीं समझ पाएंगे. उन्हें उदाहरण देकर और कहानियों के ज़रिए बातें समझाएं.
- रिश्तेदारों, पड़ोसियों से कनेक्टेड रहना कितना और क्यों ज़रूरी है, ये बताएं.
- बांटने और शेयर करने की भावना जगाएं, वरना लोग आपको स्वार्थी समझेंगे. स्वार्थ एक टॉक्सिक भाव है, ये बच्चों को समझाना ज़रूरी है.
- बच्चों पर अपनी बात और विचार थोपने की बजाय उनकी बातें भी सुनें और प्यार से समझाएं.
- छोटे बच्चों को खेल या कार्टून के ज़रिए सरल तरी़के से बातें समझाएं, जैसे- उनके फेवरेट कार्टून करैक्टर के ज़रिए आप समझा सकते हैं कि शक्तिमान इतना बलवान इसलिए है कि वो दूध पीता है और सबकी मदद करता है, इसलिए तुमको भी दूध पीना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए.
- इसी तरह टीनएज बच्चों से एक दोस्त की तरह बात करें. उनसे ज़्यादा सख़्ती करेंगे, तो वो बाग़ी हो जाएंगे. उनको कुछ उदाहरण और रियल केसेज बताकर सोशल मीडिया के फ़ायदे-नुक़सान और सतर्कता की एहमियत समझाएं. उनसे कहें कि वैसे तो तुम काफ़ी समझदार हो, लेकिन फिर भी अलर्ट रहना ज़रूरी है.
- बच्चों के मन में अपने प्रति विश्वास की भावना जगाएं. आप उन पर भरोसा करते हैं, ये भी अपने व्यवहार और बातों में दर्शाएं.
- रिश्तेदार बोरिंग नहीं होते और उनसे बॉन्डिंग कितनी ज़रूरी है, ये इस तरह बताएं कि आपके बुरे वक़्त में कैसे उन्होंने मदद की या वो हमेशा आपके साथ खड़े रहे, इसलिए हमको भी उनसे जुड़ाव-लगाव रखना चाहिए, क्योंकि ज़रूरत पड़ने पर यही पहले मदद करते हैं.
- उनके फ्रेंड सर्कल को जानें और उनके दोस्तों से भी दोस्ती रखें. उन्हें घर पर पार्टी करने के लिए बुलाएं, उनके परिवारजनों से भी कनेक्टेड रहें.
- गीता शर्मा
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