पहला अफेयर- गुलाबी लिफ़ाफ़ा
फूल लाया हूं कमल के, क्या करूं इनका? पसारे आप आंचल, छोड़ दूं, हो जाए जी हल्का. - तुम्हारा जुनैद
क़िताबों की आलमारी साफ़ कर रही थी, तभी एक पुरानी क़िताब से गुलाबी रंग का लिफ़ाफ़ा फर्श पर गिरा. धड़कते दिल से उसे उठाया. खोलकर देखा, तो एक काग़ज़ पर छोटी, मगर दिल में उतर जानेवाली कुछ लाइनें थीं. आंखों के सामने दस वर्ष पहले की घटना किसी चलचित्र की भांति आने लगी.
बड़ी दीदी नाज़िया एमए कर रही थी. उसकी क़रीबी सहेली उषा दीदी घर से थोड़ी ही दूरी पर रहती ती. मैं और दीदी अक्सर उषा दीदी के घर आती-जाती थीं. वहीं मेरी मुलाक़ात जुनैद से हुई. जुनैद उषा दीदी के भाई का दोस्त था. मैं सबसे छोटी थी, इसलिए जब भी मौक़ा मिलता सब मिलकर मेरी खिंचाई करते थे. जुनैद डीज़ल रेलवे कारखाना (लोको मोटिव) में जॉब करता था. उषा दीदी हिंदू और हम मुसलमान थे, मगर हमारे बीच इतनी घनिष्ठता थी कि क्या होली-दिवाली और क्या ईद... हम साथ-साथ मिलकर ही ख़ुशियां मनाते थे.
जुनैद फैज़ाबाद का था. जॉब बनारस में करता था. छुट्टी के दिनों में प्राय: उषा दीदी के यहां आता था और वहीं हमारी मुलाक़ात होती थी. कई बार हम सब बाहर घूमने या मूवी देखने भी गए. धीरे-धीरे कब मेरी भावनाएं जुनैद के प्रति बदल गईं, पता ही नहीं चला. मैं उससे प्यार करने लगी थी.
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: प्यार को मिला रिश्ते का नाम… यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: एहसासजुनैद मुझसे 8-10 साल बड़ा था और वो भी जल्द ही मेरी भावनाएं समझ गया था, जिस वजह से वो मुझसे दूर-दूर रहने लगा था. उसकी बेरुखी मेरे लिए असहनीय थी. एक दिन मौक़ा पाकर मैंने उससे अपने दिल की बात कह दी. पर वो बिना जवाब दिए ही उठकर चला गया. मुझे लगा शायद वो भी मुझसे प्यार करता है, लेकिन फ़िलहाल हिचकिचा रहा है. मैंने उषा दीदी को अपने दिल की बात बताई, वो सुनकर सन्न रह गई. इसी तरह व़क्त बीतता रहा. एक दिन नाज़िया आपी को देखने लड़केवाले आए, पर बाद में पता चला कि लड़का उम्र में छोटा है, इसलिए घरवालों ने मेरा रिश्ता पक्का कर दिया. मैंने सबसे कहा कि अभी निकाह नहीं करना चाहती, पर किसी ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया. लड़का दुबई में नौकरी करता था, इसलिए जल्द ही निकाह करना चाहता था.
मैंने किसी तरह उषा दीदी से मिन्नत करके उन्हें राज़ी कर लिया कि निकाह से पहले एक बार जुनैद से मेरी मुलाक़ात करवा दें. जुनैदे से मैंने कहा कि अब भी व़क्त है, अगर वो हां कह दे, तो मैं घरवालों को मना लुंगी हम दोनों के निकाह के लिए. पर जुनैद ने अपनी बेबसी बयां करते हुए कहा कि उसके अब्बा का इंतकाल तीन साल पहले हुआ था और घर में एक छोटी बहन और दो छोटे भाइयों की ज़िम्मेदारी उसी पर है. घर की सारी ज़िम्मेदारियां पूरी करने के बाद ही वो अपने बारे में सोच सकता है.
मैं विवश होकर वापस चली आई. मन मसोसकर निकाह भी कर लिया. जुनैद भी आया था निकाह में. तोह़फे में बनारसी साड़ी और गुलाबी रंग का लिफ़ाफ़ा दिया था. लिफ़ा़फे के अंदर यही पंक्तियां अंकित थीं, जो सीधे दिल में उतर गईं.
निकाह के बाद धीरे-धीरे मैं अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई. दो साल बाद शौहर के साथ दुबई आ गई. मैं एक बेटी और एक बेटे की अम्मी बन गई. मेरी आपी का भी निकाह हो गया था. उषा दीदी भी सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर बन गई थीं. पर जुनैद कहां गया, पता नहीं. मेरे और जुनैद के प्यार के बारे में स़िर्फ उषा दीदी ही जानती हैं. प्यार की पहली अनुभूति मुझे जुनैद के साथ ही हुई, इस सच्चाई को कैसे झुठला सकती हूं. ऊपरवाले से यही दुआ करती हूं कि जुनैद जहां कहीं भी हो, ख़ैरियत से हो.
- राजकुमारी रानी