रेटिंग: ***
ऐसा क्यों होता है कि जिस रिश्ते में हमें सबसे ज़्यादा जुड़ाव और गहराई की ज़रूरत होती है, वहीं पर हम चूक जाते हैं… आख़िर क्यों बरसों से चला आ रहा पति-पत्नी का रिश्ता एक पड़ाव पर आकर उदासीन हो जाता है?.. ऐसे कैसे होता है कि प्रेम विवाह किया हुआ बंधन भी एक वक़्त आने पर दम तोड़ने लगता है… और रिश्तो में ठंडापन और बाहरी रिश्तों में गर्माहट आ जाती है… इस तरह के तमाम सवालों से उलझती, पर कुछ सुलझती सी कहानी है फिल्म 'दो और दो प्यार'.
विद्या बालन और प्रतीक गांधी पति-पत्नी के रूप में अपने अपने रिश्ते के ठहराव को तोड़ने की कोशिश नहीं करते, लेकिन हालात और वक़्त ऐसे हो जाते हैं कि रिश्ते में जितनी दूरियां थीं, वो फिर से नज़दीकियों में तब्दील होती जाती है. काव्य गणेशन और अनिरुद्ध बनर्जी के रूप में दोनों ने लाजवाब पति-पत्नी की भूमिका निभाई है. फिल्म देखते-देखते एक पड़ाव पर ऐसे लगने लगता है कि वाकई में दोनों कोई दो कलाकार नहीं, बल्कि एक आम पति-पत्नी कैसे दुखी, नाराज़गी, जलन के साथ-साथ एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते हैं उसकी ख़ूबसूरत परछाई देखने मिलती है दोनों के रिश्ते में.
अरसे बाद विद्या बालन की फिल्म आई है, जिसमें वो पहले की तरह हंसती-मुस्कुराती, चुलबुली और कहीं बोल्ड अंदाज़ में भी नज़र आई हैं काव्या गणेशन के रूप में. एक बेटी, पत्नी और प्रेमिका की भूमिका को उन्होंने शिद्दत से जिया है. विद्या पूरी फिल्म में अपने ख़ास अंदाज़ में छाई रहती हैं और कभी वो हंसाती हैं, तो कभी गुदगुदाती हैं, तो कभी ग़मगीन भी कर देती हैं.
प्रतीक गांधी एक मंजे हुए कलाकार है इसमें कोई दो राय नहीं. विद्या बालन के पति अनिरुद्ध के रूप में उन्होंने गज़ब का अभिनय किया है. वही प्रेमिका बनी रोजी-नोरा इलियाना डिक्रूज़ के साथ के अपने रिश्तों को भी उन्होंने कई जगह पर जस्टिफाई करने की कोशिश की है और वे इसमें कामयाब भी रहे हैं. एक पुरुष कैसे प्रेमिका और पत्नी के बीच उलझ कर रह जाता है और उसकी मनोदशा क्या होती है इसे बख़ूबी निभाया है प्रतीक ने.
पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के साथ वफ़ादार होने के बाद कब दोनों बेईमान हो जाते हैं कि विद्या बालन प्रेमी विक्रम, सेंथिल राममूर्ति में अपनी ख़ुशियां तलाशने लगती है, तो वहीं प्रतीक गांधी प्रेमिका नोरा में अपने नए रिश्ते को खोजने लगते हैं. दोनों ही सब कुछ करने के बावजूद एक ऐसा मोड़ आता है, जब दोनों 12 साल की अपनी नीरस हो चुकी शादीशुदा ज़िंदगी को फिर से नए सिरे से जीने की कोशिश करने लगते हैं.
इलियाना डिक्रूज़ प्रेमिका के रूप में ख़ूबसूरत लगी हैं. अपनी ईर्ष्या, दर्द, प्यार को लेकर उनकी कशमकश और पजेसिवनेस दिल को कभी हंसाती है, तो कभी नाराज़गी भी पैदा करती है कि आख़िर क्यों?
विद्या के प्रेमी के रूप में विक्रम सेंथिल, जो हॉलीवुड की मूवी में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं, ने दो और दो प्यार में भी संयमित प्रेमी के रूप में ख़ूब जंचे हैं. एक ऐसा फोटोग्राफर जो दुनियाभर में घूम-घूम के फोटो खींचता है, मगर घर और ठहराव विद्या के रूप में ही मिलती है. लेकिन क्या उनके रिश्तों को नाम मिल पाता है, यह तो फिल्म देखने पर ही आप जान पाएंगे.
निर्देशक शीर्षा गुहा ठाकुरती की यह पहली फिल्म है, लेकिन उन्होंने अपने पहले ही फिल्म में सुलझे हुए एक उत्कृष्ट निर्देशिका की भूमिका को अंजाम दिया है. उन्होंने ऐसे कई छोटे-छोटे दृश्य को दिलचस्प रूप से फिल्माया है, जो आम पति-पत्नी के रिश्तों को ख़ास बना देती है. उन्होंने यह सोचने पर मजबूर किया है कि आख़िर वर्षों का रिश्ता चाहे एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर हो जाने के बावजूद अगर उसमें रिश्तों में सच्चाई है, तो पति-पत्नी दोबारा जुड़ते हैं, करीब आते ही हैं. उन्होंने विज्ञापन की दुनिया में तो ख़ूब धूम मचाया है, लेकिन पहली बार फिल्म के निर्देशन में भी उन्होंने अपनी गहरी छाप छोड़ी है.
फिल्म के संवाद और कलाकारों का अभिनय उम्दा है. कैसे एक बेटी को जब एक सख्त अनुशासित पिता से बचपन में प्यार नहीं मिलता, तो वह बाहर तलाशने की कोशिश करती है, इसके दर्द को विद्या बालन ने लाजवाब दिखाया है. पिता के रूप में थलाइवासल विजय भी प्रभावशाली रहे और मां के रूप में रेखा कुडलिगी ने भी प्रभावित किया है. अन्य साथी कलाकारों ने भी अपने अभिनय से मुस्कुराने के पल जुटाए हैं.
'द लवर्स' फिल्म पर आधारित 'दो और दो प्यार' की कहानी को अमृता बागची, सुप्रितम सेनगुप्ता और एशा चोपड़ा ने भारतीय रंग में रंगते हुए बढ़िया तरीक़े से लिखा है. कार्तिक विजय की सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है, ख़ासकर मुंबई-ऊटी के लोकेशन को ख़ूबसूरती से फिल्माया है उन्होंने. गीत-संगीत भी लुभाते हैं, विशेषकर पुराने गीत बिन तेरे सनम मर मिटेंगे हम… पर फिल्माया गया विद्या-प्रतीक का डांस मज़ेदार है. लकी अली, सभाजीत मुखर्जी, अभिषेक अनन्या के गाए गीत उत्सुकता पैदा करते हैं. अपलोज एंटरटेनमेंट, एलिप्सिस एंटरटेनमेंट, स्वाति अय्यर चावला, समीर नायर, तनुज गर्ग, अतुल कस्बेकर व दीपक सहगल निर्माता के रूप में जुड़े हुए हैं.
अमेरिकन लेखक अभिनेता ग्राउचो मार्क्स का कोट- Marriage is an institution, but who wants to live in an institution यानी विवाह एक सामाजिक संस्था कहे या व्यवस्था है, पर इस व्यवस्था में रहना कौन चाहता है… में पूरी फिल्म का सार समाया हुआ है.
प्यार रिश्ते और अपनेपन के उलझन को किस तरह से समझाया जा सकता है इसे बख़ूबी बताने की कोशिश की गई है फिल्म में और अपने मक़सद में खरी उतरती भी है.
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