रिश्तों में हो रही है खींच-तान
हमारी सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक संरचना में आए बदलाव इसके लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं. परिवार के एक छोर पर वे लोग खड़े हैं, जो परिवार को पुरानी व्यवस्था से चलाना चाहते हैं और दूसरी ओर वे लोग खड़े हैं, जो अपनी व्यस्त जीवनशैली की वजह से परिवार में आधुनिक बदलाव करना चाहते हैं. यहां पर हम उन रिश्तों की बात कर रहे हैं, जिनसे परिवार बनता है, जैसे- सास-ससुर, देवर-देवरानी या जेठ-जेठानी. इस तरह की खींच-तान से ही हमारे संयुक्त परिवार एकल परिवारों में तब्दील हो गए हैं. आइए, उन सभी कारणों को जानने की कोशिश करते हैं, जिनसे रिश्तों से हम जूझ रहे हैं. व्यस्तताः यह कारण तो आपने कई बार सुना होगा कि समय की कमी के कारण हम रिश्तों को उतना समय नहीं दे पाते, जितना शायद हमें देना चाहिए. लेकिन इससे कभी-कभी होता यह है कि हमारे परिवारजन उपेक्षित महसूस करते हैं. आजकल पति-पत्नी दोनों ही कामकाजी होते हैं और अगर नहीं भी हैं, तो पत्नी का सारा समय बच्चे, पति और घर की देखभाल में निकल जाता है. वीक डेज़ में तो ये किसी रिश्ते को तो छोड़िए, एक-दूसरे को भी समय नहीं दे पाते. फिर शनिवार व रविवार या स़िर्फ रविवार के छुट्टीवाले दिन हमें या तो अपने निजी काम करने होते हैं या फिर हम अपनी छुट्टी को अपने हिसाब से बिताना चाहते हैं. स्वतंत्रताः शिक्षा की वजह से या आर्थिक आत्मनिर्भरता की वजह से, पर आज हम सभी स्वतंत्रता चाहते हैं. यह स्वतंत्रता बोलने की, ज़िंदगी जीने की, उन्मुक्त रहने की है. हम चाहते हैं कि हम से कोई सवाल ना करे. हम अपने ़फैसले ख़ुद लें. यदि संक्षिप्त में कहा जाए, तो हम किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं चाहते. आर्थिक बोझः हम सभी जानते हैं कि आजकल महंगाई कितनी बढ़ गई है. ऐसे में हममें से कई लोग अपने परिवार में कम से कम लोग चाहते हैं, जिससे उनकी आर्थिक ज़िम्मेदारी कम रहे. यह बोझ कभी-कभी रिश्तों के बीच तनाव भी उत्पन्न करता है. अक्सर परिवार में इस बात के लिए मन-मुटाव होते देखा गया है कि आर्थिक ज़िम्मेदारी कौन व कितनी उठाएगा. यदि आप अलग भी रहते हैं, तो भी परिवार तो एक ही रहता है, तो अक्सर माता-पिता के ख़र्चे, किसी पारिवारिक समारोह की ज़िम्मेदारी आदि को लेकर रिश्ते उलझ पड़ते हैं. करियर से बढ़ी दूरियांः पुरानी पारिवारिक व्यवस्था के अनुसार कभी कोई कमाने के लिए या अपने करियर के लिए अपना घर या परिवार नहीं छोड़ता था. लेकिन आज बहुत एक्सपोज़र है. आज हर कोई अपना करियर बनाना चाहता है. इसलिए या तो पढ़ने के लिए या फिर नौकरी के बेहतर विकल्पों के लिए लोग अपने घर-परिवार के बाहर क़दम रखते हैं. और फिर परिवार से दूरी बढ़ती ही जाती है. प्राइवसीः यह एक नया जुमला हमारे आधुनिक समाज में प्रचलित हुआ है. हर किसी को अपने निजी जीवन को सबसे छिपा के रखना है. पर अपनी प्राइवसी को संभालने के प्रयत्नों में हम अक्सर अपने रिश्तों को सूली पर चढ़ा देते हैं. अपने जीवन में किसी की भी भागीदारी को हम दख़लअंदाज़ी समझते हैं. हम अपने जीवन को सेल्फी स्टिक पर ही निर्भर करना चाहते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि ख़ुद के अलावा हम किसी और पर निर्भर नहीं रहना चाहते. स्वास्थ्यः यह बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है. हम हमेशा कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है और जब हमारा मन अच्छा होगा, तब हम अपने आसपास के लोगों को ख़ुश रख पाएंगे. लेकिन हम आजकल की दिनचर्या को जानते हैं. हममें से ज़्यादातर लोग किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे हैं. ऐसे में जो काम या ज़िम्मेदारियां हमारी शारीरिक शक्ति के परे होती हैं, उनसे हम कतराते हैं. रेड एफएम, पूना की आरजे सोनिया बताती हैं, “यह चिंता का विषय है. हम रिश्तों और परिवारों से दूर भाग रहे हैं, क्योंकि हम में धैर्य की कमी आई है. हम हमेशा असुरक्षा से ग्रस्त हैं. रिश्तों व लोगों को लेकर जजमेंटल होते जा रहे हैं. परिस्थिति के अनुसार ख़ुद को ढालते नहीं हैं. धीरे-धीरे हमें एकांत अच्छा लगने लगता है. आधुनिक बनने के नाम पर हम अपने परिवार व रिश्तों को ही छोड़ने लगे हैं. मैं यूएस गई थी, तब मैंने देखा कि वहां के लोग हमें हमारे कल्चर से पहचानते हैं. वे लोग हमारे पारिवारिक व सामाजिक व्यवस्था का आदर करते हैं, तो हमें यह सोचना होगा कि क्या हम अपनी पहचान को ही छोड़ना चाहते हैं. हम अपने परिवारों से दूर होकर ख़ुुश नहीं रह सकते. मेरे हिसाब से परिवार तो रोज़ मनाए जानेवाले उत्सव का नाम है. इस उत्सव में ख़ुशी-हंसी है, तो मतभेद और नोक-झोंक भी है, पर हर इमोशन का अपना अलग मज़ा है.”![Families dealing with relationships](https://www.merisaheli.com/wp-content/uploads/2016/03/Aditya-Shraddha-1-248x250.jpg)
- विजया कठाले निबंधे
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