आंखों में पति के जाने का दर्द और चेहरे पर शहीद की पत्नी कहलाने का रौब, ये कॉम्बिनेशन सिर्फ़ शहीद जवान की पत्नी के चेहरे पर ही नज़र आ सकता है. नम आंखों और मुस्कुराते चेहरे के साथ पति को अंतिम विदाई देना बहुत हिम्मत का काम है और ये हौसला सिर्फ़ फौजी की पत्नी के पास होता है. हंदवाड़ा के शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा की पत्नी पल्लवी शर्मा से जब हमने बात की, तो जाना देश के लिए मर-मिटना क्या होता है. पल्लवी शर्मा ने हमें शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा की जांबाज़ी के जो तमाम क़िस्से बताए, वो आपको भी ज़रूर जानने चाहिए. हम अपने घरों में चैन से इसलिए सो पाते हैं, क्योंकि देश का जवान सरहद पर जागकर हमारी रक्षा कर रहा होता है. पढ़िए, देश पर मर-मिटने वाले शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा की कहानी, उनकी पत्नी पल्लवी शर्मा की ज़ुबानी.
एक फौजी की बीवी होना कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी होती है?
मैं एक शब्द भी न बोलूं, फिर भी आप मेरी बॉडी लैंग्वेज से समझ जाएंगे कि ये पक्का किसी फौजी की बीवी होगी. आर्मी हमें वो कॉन्फिडेंस देती है, ज़िंदगी जीने का हौसला देती है. मैं अकेले 30 लोगों का पार्टी का खाना बना सकती हूं, मैं अकेले अपनी बेटी की हर ज़िम्मेदारी पूरी कर सकती हूं. आर्मी हमें हर अच्छे-बुरे वक़्त के लिए तैयार कर देती है. हम अपने सीनियर्स को देखकर अपने आप इंप्रूव होते चले जाते हैं, कभी उनसे सीखकर, कभी उनकी डांट खाकर. एक फौजी की बीवी कभी ऑर्डिनरी नहीं हो सकती. ऐसी ज़िंदगी और ऐसी मौत आम आदमी को नसीब नहीं होती. फौज की वर्दी फौजी के साथ-साथ उसके परिवार को भी बहुत स्ट्रॉन्ग बना देती है. फौजी वर्दी पहनकर अपना जज़्बा दिखाता है और उसका परिवार उसकी वर्दी का सम्मान करके अपना जज़्बा दिखाता है. एक फौजी जंग के लिए बेफिक्र होकर घर से इसलिए निकल पाता है, क्योंकि उसे पता होता है कि घर पर उसकी कमांडर बीवी सबकुछ अकेले संभाल लेगी. आर्मी हमें इतना आत्मनिर्भर बना देती है कि फौजी का परिवार बड़ी से बड़ी तकलीफ़ हंसते-हंसते झेल जाता है.
जब आपको कर्नल आशुतोष शर्मा की शहादत की ख़बर मिली, तो ये बात आपने अपनी बेटी को कैसे बताई?
हम सब में से किसी से भी आशु की बात नहीं हो पा रही थी. मुझे आशंका होने लगी थी कि अब मुझे किसी भी तरह की ख़बर के लिए तैयार रहना होगा. मैंने रात में कुहू (आशुतोष और पल्लवी की 11 साल की बेटी) के सोने से पहले उसे बताया कि बेटा, पापा से किसी की बात नहीं हो पा रही है, हमें बुरी घटना के लिए भी तैयार रहना होगा. फिर सुबह जब मुझे इस बात की ख़बर मिली, तो मैंने कुहू को उठाया और कहा, "बेटा, पापा इज़ नो मोर, उनकी डेथ हो गई है." मेरी बात सुनकर वो रोने लगी, तो मैंने उससे कहा, "बेटा, जी भरकर रो लो, ये तुम्हारा हक़ है, तुम्हारा नुक़सान हुआ है." आशु को लंबे बाल बहुत पसंद थे इसलिए जब हमें उन्हें लेने जाना था, तो मैंने कुहू से कहा कि तुम अपने बाल वॉश कर लो, मैं पापा को तुम्हारे बाल दिखाऊंगी, उनसे कहूंगी कि तुम्हारी हाइट थोड़ी और बढ़ गई है. जब हमें आशु को एयरपोर्ट रिसीव करने जाना था, तब भी मैं कुहू को अपने साथ ले गई. मैंने उससे कहा, "देखो, हर बार पापा को रिसीव करने हम इसी एयरपोर्ट पर आते थे और आज भी हम उन्हें लेने यहीं आए हैं." एयरपोर्ट से लेकर आशु की अंतिम विदाई तक मैंने हर पल कुहू को अपने साथ रखा. मैं उसे स्ट्रॉन्ग बना रही थी, उसका सच्चाई से सामना करा रही थी. आशु की अंतिम विदाई के समय मैंने ऑफिसर्स से इजाज़त मांगी और कुछ समय आशु के साथ अकेले बिताया. उस वक़्त मैंने आशु से ढेर सारी बातें की, जैसे मैं हमेशा उनके घर लौटने पर किया करती थी. मैंने आशु से कहा, "देखो, कुहू की हाइट थोड़ी और बढ़ गई है ना? मैं तुम्हारी बेटी के बाल हमेशा लंबे रखूंगी, लेकिन बीच-बीच में जब मैं उसके बाल ट्रिम करवाऊंगी, तो प्लीज़ मुझसे झगड़ना मत."
जब हम एयरपोर्ट से निकले, तो मैं जानती थी कि जवानों के हाथ में जो कार्टन है, उसमें क्या है, उसमें आशु की खून से सनी यूनिफॉर्म थी, उनके शूज़, उनके सॉक्स थे. मैंने उनसे कहा, "प्लीज़, आप ये कार्टन मुझे दे दीजिए. एयरपोर्ट से लेकर श्मशान पहुंचने तक पूरे 45 मिनट मैंने वो कार्टन अपनी गोद में रखा. उस वक़्त भी कुहू मेरे पास बैठी थी. रास्तेभर मैं वो गाना गा रही थी, जो मैं अक्सर आशु के लिए गाया करती थी-
एक दिन आप यूं हमको मिल जाएंगे,
फूल ही फूल राहों में खिल जाएंगे,
मैंने सोचा न था
एक दिन ज़िंदगी होगी इतनी हंसी,
गाएगा आसमां झूमेगी ये ज़मीं,
मैंने सोचा न था
आशु हमेशा कहते थे, ज़िंदगी एक बार ही मिलती है पल्लवी, कफ़न में चले जाना है, इसलिए ज़िंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए. वो किंग साइज़ लाइफ में विश्वास करते थे, उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक-एक पल खुलकर जीया और मौत भी आलीशान पाई. अब आप ही बताइए, ऐसे जवान, ऐसे शहीद की बीवी होने पर किसे गर्व नहीं होगा.
क्या आपको पहले ही अंदेशा हो गया था कि कुछ ग़लत होने वाला है?
मैंने आशु के साथ 20 ख़ूबसूरत साल बिताए हैं. आशु के साथ रहकर मैंने जाना कि देश के लिए मर-मिटना क्या होता है. हम आज स्मार्ट कम्युनिकेशन के युग में जी रहे हैं. मेरी तो आशु से काफी समय से बात नहीं हुई थी, लेकिन जब मुझे ये पता चला कि किसी से भी कम्युनिकेशन नहीं हो पाया है, तो मैं समझ गई थी कि कुछ गड़बड़ होने वाला है. उम्मीद पर तो दुनिया क़ायम है, लेकिन हमारा मन जान लेता है कि जो हो रहा है, वो सही नहीं है.
शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा को खोने के बाद परिवार में कैसा माहौल है?
आर्मी ही हमारा परिवार है और हमारा आर्मी परिवार हमें कभी अकेला नहीं रहने देता. आर्मी ऑफिसर्स की बीवियों की आपस में बहुत अच्छी बॉन्डिंग होती है. यहां पर भी सीनियर्स अपने जूनियर्स को ट्रेंड करते हैं. बहुत प्यार देते हैं, कई बार हक़ से डांट भी देते हैं. अगर हम कहीं बाहर गए हैं, तो ये चिंता नहीं होती कि परिवार की देखभाल कौन करेगा, उनके लिए खाना कौन बनाएगा, बिना कुछ कहे ही सब मिलकर आपका काम कर देते हैं. मेस है, फिर भी सब एक-दूसरे के लिए खाना बनाते हैं, एक-दूसरे का पूरा ध्यान रखते हैं. बर्थडे, एनीवर्सरी, त्योहार, शादी-ब्याह... हम अपना हर सुख-दुख अपनी आर्मी फैमिली के साथ शेयर करते हैं इसलिए हम कभी अकेले नहीं होते. ऐसा प्यार तो नॉर्मल परिवारों में भी नहीं होता. आर्मी परिवार का हिस्सा होना एक अलग ही अनुभव है, इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. हां, लेकिन आर्मी परिवार का प्यार पाने के लिए आपको भी आर्मी के प्रति पूरी तरह समर्पित होना पड़ता है. पति वर्दी पहनकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाता है और आपको बिना वर्दी पहने अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होती है.
क्या आप कर्नल आशुतोष शर्मा की यूनिट में जाती थीं?
मैं आशु की यूनिट में 13 बार जा चुकी हूं. 21-राष्ट्रीय राइफल्स हंदवाड़ा में जहां आशु पोस्टेड थे, उस यूनिट के चप्पे-चप्पे में आशु के निशां हैं. वहां की हर चीज़ आशु ने बहुत प्यार से बनवाई है. उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर शहीद स्मारक से लेकर खरगोशों के लिए घरौंदा तक बनवाया है. मैंने खुद वहां के मेस में साथ के ऑफिसर्स के लिए खाना बनाया है. उनके लिए मेनू तैयार किया है. मैं क्या, आशु से जुड़ा कोई भी शख्स उन्हें कभी भूल नहीं सकता.
बहादुरी का दूसरा नाम थे शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा, मिल चुके हैं दो वीरता मेडल
21-राष्ट्रीय राइफल्स यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर रहे शहीद कर्नल आशुतोष जम्मू-कश्मीर में कई मिशन का हिस्सा रहे. 3 मई को 2020 को उन्होंने हंदवाड़ा में मुठभेड़ के दौरान 2 आतंकियों को मार गिराया, लेकिन इस दौरान कर्नल आशुतोष समेत 5 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए.
कर्नल आशुतोष को दो बार वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. शहीद आशुतोष पिछले पांच सालों में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में अपनी जान गंवाने वाले कर्नल रैंक के पहले कमांडिंग ऑफिसर थे. इससे पहले साल 2015 के जनवरी में कश्मीर घाटी में कर्नल एमएन राय शहीद हुए थे.
कर्नल आशुतोष शर्मा काफी लंबे समय से गार्ड रेजिमेंट में थे. गार्ड रेजिमेंट लंबे समय से घाटी में सेवा दे रही है. कर्नल आशुतोष इकलौते कर्नल थे, जिन्हें कश्मीर में दो बार वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जिसमें एक कमांडिंग ऑफिसर के रूप में उनकी बहादुरी के लिए शामिल है.
शहीद आशुतोष शर्मा को कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर अपने कपड़ों में ग्रेनेड छिपाए हुए आतंकी से जवानों की जिंदगी बचाने के लिए वीरता मेडल से सम्मानित किया जा चुका है. दरअसल, एक आतंकी उनके जवानों की ओर अपने कपड़ों में ग्रेनेड लेकर बढ़ रहा था, तब शर्मा ने बहादुरी का परिचय देते हुए आतंकी को गोली मारकर अपने जवानों की जान बचाई थी.
एनकाउंटर में शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा के परिवार को उनकी शहादत पर गर्व है. उनकी छोटी-सी बेटी कुहू भी आर्मी जॉइन करना चाहती है. कर्नल शर्मा के बड़े भाई का कहना है कि उनमें देश सेवा का अटूट जज़्बा था.
आर्मी पर आधारित बॉलीवुड की कौन सी फिल्म आपको सबसे ज़्यादा पसंद है?
आशु के साथ हमने आख़िरी फिल्म 'केसरी' देखी थी. ये फिल्म आशु के दिल के बहुत क़रीब है, क्योंकि इसमें देश के लिए मर-मिटने का वो जज़्बा है, जो किसी साधारण इंसान में नहीं हो सकता. हंदवाड़ा एनकाउंटर के बाद मैं 'केसरी' फिल्म से अपने आशु की बहादुरी को जोड़कर देख पा रही हूं. और ये कहते हुए पल्लवी अपने आशु को याद करते हुए 'केसरी' फिल्म का ये गाना गाने लगी-
ओ हीर मेरी, तू हंसती रहे
तेरी आंख घड़ी भर नम ना हो
मैं मरता था जिस मुखड़े पे,
कभी उसका उजाला कम ना हो
कर्नल आशुतोष शर्मा से आपकी मुलाक़ात कब हुई थी?
इसके लिए आपको मेरे साथ बीस साल पीछे चलना पड़ेगा. ये उन दिनों की बात है जब मैंने आर्मी के लिए अप्लाई किया था और मेरा सलेक्शन भी हो गया था. जब मैं आर्मी की कोचिंग के लिए गई, वहां मेरी आशु से पहली मुलाक़ात हुई थी. मुझे आज भी याद है 2 जून 2000 की वो तारीख, जब मुझे देखते ही आशु ने अपने साथ वाले लड़के से कहा था, देख, तेरी भाभी आ गई (मैंने तो ये सुना नहीं, बाद में आशु ने मुझे इसके बारे में बताया था). फिर धीरे-धीरे दोस्ती बढ़ी, लंच शेयर होने लगा और हम एक-दूसरे के करीब आने लगे. जब हमने शादी का फैसला किया, तो हम दोनों ने मिलकर ये तय किया कि आशु आर्मी ज्वाइन करेंगे और मैं हमारा घर संभालूंगी. आशु के लिए मैंने अपने बचपन के सपने को छोड़ दिया और अपने प्यार को हमेशा के लिए अपना लिया. आशु और मैं शायद इसलिए मिले, क्योंकि हम एक जैसे हैं. मैं ऐसे परिवार से हूं, जहां घर का कोई सदस्य आर्मी में नहीं है. आज से 42 साल पहले जब मेरा और मेरी जुड़वां बहन का जन्म हुआ, तब बेटियों के जन्म पर खुशियां नहीं मनाई जाती थी. लेकिन मेरे पापा ने न सिर्फ हमारे जन्म का जश्न मनाया, बल्कि हमें बेटों जैसी परवरिश भी दी. एनसीसी, माउंटेनियरिंग से लेकर आर्मी के लिए अप्लाई करने तक मैंने सिर्फ़ आर्मी ऑफिसर बनने का सपना देखा था, लेकिन आशु से मिलने के बाद मुझे आशु के अलावा कुछ नज़र नहीं आया. आज भी मैं आशु के साथ ही जी रही हूं, वो मुझसे कभी दूर हो ही नहीं सकते. पहले तो मुझे और बेटी को आशु से बात करने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था कि कब बात करें, शायद बिज़ी होंगे, सो रहे होंगे, लेकिन अब तो हम उनसे हर समय बात कर सकते हैं, क्योंकि अब वो हर समय हमारे साथ रहते हैं.
मैं तिरंगा फहराकर वापस आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन मैं वापस आऊंगा ज़रूर... तिरंगे पर मर-मिटने वाले वीर जवान कर्नल आशुतोष शर्मा को शत-शत नमन!
आओ झुक कर सलाम करें उनको
जिनके हिस्से में ये मुक़ाम आता है
ख़ुशनसीब होता है वो खून
जो देश के काम आता है
ये देश आपका और आपकी शहादत का हमेशा कर्ज़दार रहेगा कर्नल आशुतोष शर्मा, आप हमारे दिल में हमेशा ज़िंदा रहेंगे देश का गौरव बनकर!
- कमला बडोनी