महिलाएं जानें अपने अधिकार (Every Woman Should Know These Rights)
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वो आधी आबादी है, वो जीवनदायिनी है, वो सबला है, वो घर का मान-सम्मान है, वो कर्त्तव्य की देवी है... सदियों से महिलाओं के उत्तरदायित्वों को इतना गौरवान्वित किया गया कि वो अपने अधिकारों से अनजान ही रहीं या यूं कहें कि उन्हें जानबूझकर अनजान रखा गया, ताकि वे आवाज़ न उठा सकें. आज भी हमारे देश में महिलाओं का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो अपने अधिकारों से अनजान है. इस 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' पर हमारी यही कोशिश है कि हम जागरूकता की वो मशाल जलाएं कि हर महिला का जीवन रौशन हो सके.
क्यों नहीं है अधिकारों के प्रति जागरूकता?
* अशिक्षा इसका सबसे बड़ा कारण है.
* पर जो शिक्षित भी हैं, उन्हें भी अपने अधिकारों के बारे में तब तक पता नहीं चलता, जब तक कि ख़ुद उनके साथ कोई घटना नहीं घटती.
* महिलाओं की सोच भी कहीं न कहीं इसके लिए ज़िम्मेदार है. आज भी बहुत-सी महिलाएं यही मानती हैं कि उनके लिए स़िर्फ कर्त्तव्य हैं, जबकि सारे अधिकार पुरुषों के लिए हैं.
* बहुत-से मामलों में जानबूझकर महिलाओं से उनके अधिकार छुपाए जाते हैं, ताकि वो अपना हक़ न जताने लगें.
* जिन महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी है, वो भी रिश्तों में मनमुटाव न हो, यह सोचकर जानबूझकर अपने अधिकारों से वंचित रहती हैं.
* कुछ तो कोर्ट-कचहरी के चक्करों से बचने के लिए अपने अधिकारों की बात नहीं करतीं.
* कॉम्प्रोमाइज़ करने और सहते रहने की आदत भी कहीं न कहीं इस बात के लिए ज़िम्मेदार है.
विवाह से जुड़े अधिकार
शादी के बाद महिलाओं को कुछ ख़ास अधिकार मिलते हैं, जो हर शादीशुदा महिला को ज़रूर पता होने चाहिए. क्या आपको पता है कि-
* शादी के बाद हर महिला को कंजूगल राइट्स मिलते हैं यानी शादी के बाद पत्नी होने के नाते आपको अपने पति पर सभी अधिकार मिलते हैं.
* पति के साथ उसके घर में रहने का अधिकार हर पत्नी को है. चाहे वो संयुक्त परिवार में रहे, एकल परिवार में या फिर किराए के घर में रहे.
* अगर आप शादी के बाद अपना सरनेम नहीं बदलना चाहतीं, तो कोई बात नहीं. आपको शादी के पहलेवाला सरनेम बनाए रखने की पूरी आज़ादी और हक़ है.
ससुराल में क़ानूनी अधिकार
* पति और ससुरालवालों का जो लिविंग स्टैंडर्ड है, उसी मान-सम्मान और लिविंग स्टैंडर्ड से रहने का अधिकार हर पत्नी को है.
* बहुत-से मामलों में महज़ दहेज के लालच में लोग शादी कर लेते हैं, जबकि लड़की में उन्हें रुचि नहीं होती. ऐसे में अगर शादी के बाद पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने यानी आपकी शादी कंज़्युमेट नहीं हुई, तो आप हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 12 (1) के तहत शादी को अमान्य या निरस्त करवाने के लिए कोर्ट में मामला दाख़िल कर सकती हैं.
* साथ ही दहेज विरोधी क़ानून का इस्तेमाल कर सकती हैं.
* शादी से पहले या शादी के बाद मिले सभी स्त्री-धन पर स़िर्फ और स़िर्फ महिला का अधिकार होता है. भले ही वह धन उसके पति या सास-ससुर के पास क्यों न रखा हो. आपकी मर्ज़ी के बिना कोई आपके स्त्री-धन को न किसी को दे सकता है और न ही बेच सकता है.
यह भी पढ़ें: ख़ुद अपना ही सम्मान क्यों नहीं करतीं महिलाएंतलाक़ लेने का हक़
नाकाम शादी से निकलना किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होता, पर ऐसे किसी रिश्ते में बंधकर रहना, जहां आपकी कोई अहमियत नहीं, से अच्छा होगा कि आप उस बंधन से ख़ुद को आज़ाद कर दें. अगर आप भी ऐसी नाकाम शादी में फंस गई हैं, तो निम्नलिखित परिस्थितियों में आप अपने पति से तलाक़ लेने का हक़ रखती हैं-
* अगर कोई पति बेवजह अपनी पत्नी को दो साल तक छोड़ देता है, तो पत्नी को पूरा अधिकार है कि वह तलाक़ ले सके.
* पति से तलाक़ के बाद अगर पत्नी दूसरी शादी नहीं करती, तो उसे अपने पूर्व पति से एलीमनी और मेंटेनेंस (गुज़ारा भत्ता) पाने का पूर्ण अधिकार है.
* शादी के बाद हर पत्नी को एक समर्पित पति व दांपत्य जीवन का पूरा अधिकार है. अगर पति के किसी अन्य महिला से विवाहेतर संबंध हैं, तो पत्नी उस आधार पर तलाक़ लेने का अधिकार रखती है.
* अगर कोई व्यक्ति पत्नी की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ धर्म परिवर्तन कर लेता है, तो पत्नी को पूरा अधिकार है कि वह अपने पति को तलाक़ दे दे.
* अगर किसी व्यक्ति को पागलपन के दौरे पड़ते हैं या उसे कोढ़ रोग या फिर छुआछूत की कोई ऐसी बीमारी हो, जिसका इलाज संभव न हो, तो ऐसे मामले में पत्नी को क़ानूनन तलाक़ लेने का हक़ है.
* अगर पति अपनी पत्नी को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है, तो ऐसे रिश्ते को निभाने का कोई मतलब नहीं. ऐसे में अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर आप ऐसे रिश्ते से छुटकारा पा सकती हैं.
घरेलू हिंसा से सुरक्षा
हर रोज़ न जाने कितनी ही महिलाएं अपने ही घर की चारदिवारी में घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं. अपने ही घर में वो डर-दबकर और घुट-घुटकर जीती हैं. घरेलू हिंसा क़ानून की जानकारी हर महिला को होनी चाहिए, ताकि कोई भी आपके ख़िलाफ़ कुछ भी ग़लत करने से पहले कई बार सोचे और चाहकर भी आपके अधिकारों का हनन न कर पाए. इसके लिए आपको अपनी सुरक्षा ख़ुद करनी होगी और उसकी शुरुआत अभी करें, घरेलू हिंसा क़ानून के बारे में जानकारी हासिल कर.
* आंकड़ों के मुताबिक़ आज भी हमारे देश में क़रीब 70% महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं.
* घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना. अगर महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर मानसिक रूप से उसे प्रताड़ित किया गया हो, तो वह भी घरेलू हिंसा के तहत दंडनीय है.
* मानसिक हिंसा के तहत महिला को गाली-गलौज देना, ताना मारना और भावनात्मक रूप से ठेस पहुंचाना आदि शामिल है.
* इसमें आर्थिक हिंसा पर भी ज़ोर दिया गया है, जिसके तहत महिला को ख़र्च के लिए पैसे न देना और उसके पैसे छीन लेना आदि शामिल है.
* महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते घरेलू हिंसा के मामलों को देखते हुए साल 2005 में इस क़ानून को लाया गया था.
* इस क़ानून के तहत न स़िर्फ शादीशुदा महिलाएं, बल्कि लिव-इन में रहनेवाली महिलाएं भी अपने पति, ससुरालवालों या पार्टनर के ख़िलाफ़ शिकायत करने का हक़ रखती हैं.
* इस क़ानून में हिंसा को किसी लिंगभेद से परे रखा गया है, क्योंकि ज़रूरी नहीं कि घरेलू हिंसा पति द्वारा ही हो, किसी महिला के द्वारा हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ भी शिकायत करने का आपको पूरा हक़ है.
* घरेलू हिंसा के ज़्यादातर मामलों में पति पत्नी को घर से निकाल देता है, जिसके डर से बहुत-सी महिलाएं घरेलू हिंसा का विरोध नहीं कर पाती थीं. इस बात को ख़ास तवज्जो देते हुए क़ानून में यह प्रावधान रखा गया है कि विवाद के दौरान भी पत्नी को उसी घर में रहने का पूरा अधिकार है. पति उसे घर से नहीं निकाल सकता. अगर उसने ऐसा किया, तो यह क़ानूनन जुर्म होगा, जिसके लिए उसे सज़ा मिल सकती है.
* अगर महिला उस घर में नहीं रहना चाहती और कोर्ट से सुरक्षित स्थान की मांग करती है, तो कोर्ट पति या पार्टनर को महिला के लिए अलग निवास और मेंटेनेंस की सुविधा का आदेश दे सकता है.
* घरेलू हिंसा की शिकार महिला की सुरक्षा के लिए कोर्ट स्थानीय पुलिस स्टेशन को आदेश जारी कर सकता है यानी इन मामलों में महिलाओं की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है.
* घरेलू हिंसा के मामलों में ज़रूरी नहीं कि सिर्फ़ पत्नी या लिव इन पार्टनर ही शिकायत करे, बल्कि बेटी या मां भी अपने ख़िलाफ़ हो रही शारीरिक या मानसिक हिंसा और प्रताड़ना की शिकायत कर सकती है.
* घरेलू हिंसा का अर्थ केवल शारीरिक या मानसिक शोषण ही नहीं, बल्कि किसी को नौकरी करने से रोकना या ज़बर्दस्ती नौकरी करवाना या फिर कमाई छीन लेना भी हिंसा के दायरे में आता है. किसी को उसके अधिकारों से वंचित करना भी हिंसा है. इसके लिए आप घरेलू हिंसा क़ानून के तहत शिकायत दर्ज करा सकती हैं.
* इस क़ानून के तहत दोषी पाए जाने पर दोषी को 1 साल की सज़ा और 20 हज़ार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है.
* घरेलू हिंसा के मामलों में 60 दिनों के भीतर ़फैसला देने का प्रावधान है, ताकि जल्द से जल्द पीड़िता को इंसाफ़ और सुरक्षा मिल सके.
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महिलाओं के ख़िलाफ़ छेड़छाड़, यौन शोषण, यौन उत्पीड़न, जैसी बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए कई नियम व क़ानून हैं.
* सार्वजनिक स्थान पर किसी महिला को देखकर अश्लील गाने गाना सेक्सुअल हरासमेंट माना जाता है, जिसके लिए आईपीसी के सेक्शन 294 के तहत शिकायत करने पर दोषी को 3 महीने तक की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकता है.
* अगर कोई व्यक्ति किसी महिला का लगातार पीछा करता है, तो उसे स्टॉकिंग कहते हैं. यह भी एक तरह का सेक्सुअल हरासमेंट है, जिसके लिए दोषी को 3-5 साल तक की सज़ा और जुर्माना हो सकता है.
* अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के इंकार करने पर भी उसे शारीरिक रूप से पीड़ित करता है, मानसिक रूप से परेशान करता है या फिर उसे समाज में बदनाम करने की कोशिश करता है, तो आईपीसी की धारा 503 के तहत उसे दो साल तक की सज़ा या जुर्माना हो सकता है.
* किसी महिला की सहमति या इजाज़त के बिना उसकी फोटो खींचना या शेयर करना अपराध है, जिसके लिए दोषी को 1-3 साल तक की सज़ा या जुर्माना हो सकता है.
* किसी महिला की फोटो को कंप्यूटर के ज़रिए बिगाड़कर, उस महिला को परेशान करने या बदनाम करने के लिए इस्तेमाल करना दंडनीय अपराध है. इसके लिए दोषी को 2 साल की सज़ा हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ सकता है.
वर्कप्लेस पर सेक्सुअल हरासमेंट से सुरक्षा
राजस्थान की सोशल वर्कर भंवरी देवी के बलात्कार के बाद लड़ी क़ानूनी लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में विशाखा गाइडलाइन्स के नाम से सभी एम्प्लॉयर्स को 13 गाइडलाइन्स फॉलो करने का आदेश जारी किया था. वर्ष 2012 में ङ्गसेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेसफ एक्ट पारित हुआ.
* वर्कप्लेस पर महिलाओं को सेक्सुअल हरासमेंट से बचाने के लिए ख़ासतौर से यह क़ानून लाया गया.
* इसके तहत कोई भी महिला चाहे वो फुल टाइम, पार्ट टाइम या बतौर वॉलिंटियर काम करती हो और वह किसी भी उम्र की हो, उसे सुरक्षा का अधिकार है.
* अगर वर्कप्लेस पर कोई आपके साथ बदतमीज़ी से बात करता है, आपको ग़लत चीज़ें दिखाने की कोशिश करता या फिर ग़लत हरकतें करता या फिर जॉब में प्रमोशन का झांसा देकर किसी भी तरह के शारीरिक फेवर की मांग करता हो, तो इसकी शिकायत तुरंत अपने ऑफिस की कंप्लेट कमिटी में करें.
* हर महिला का यह अधिकार है कि उसे सुरक्षित काम का माहौल मिले और ऐसा करना आपके एम्प्लॉयर की ज़िम्मेदारी है.
* विशाखा गाइडलाइन्स के मुताबिक़, जिस भी ऑर्गेनाइज़ेशन में महिलाएं काम करती हैं, वहां कंप्लेंट कमिटी बनाना अनिवार्य है.
* अगर आपके ऑफिस में 10 लोग काम करते हैं और वहां कंप्लेंट कमिटी नहीं है, तो आप अपने उच्च अधिकारी से इस संबंध में बात करके कमिटी बनवा सकती हैं.
* कंप्लेंट कमिटी की हेड एक महिला ही होनी चाहिए और उस कमिटी में 50% सदस्य महिलाएं होनी चाहिए.
* महिलाएं ख़ासतौर से इस बात का ध्यान रखें कि सेक्सुअल हरासमेंट एक्ट के मुताबिक़ घटना के 3 महीने के भीतर आपको शिकायत दर्ज करने का हक़ है. अगर आप भी पीड़ित हैं, तो शिकायत दर्ज करने में ज़्यादा देर न करें.
* नियमों के तहत अगर किसी कारणवश पीड़िता शिकायत दर्ज करने में ख़ुद असमर्थ है, तो वो अपने किसी सगे-संबंधी (लीगल हेयर) के ज़रिए आवेदन देकर भी शिकायत दर्ज करवा सकती है.
* यह महिलाओं की ज़िम्मेदारी है कि बिना किसी डर और संकोच के वो अपने साथ हो रहे शोषण का विरोध करें और उसकी शिकायत दर्ज करें.
* सेक्सुअल हरासमेंट के ज़्यादातर मामलों में लड़कियों या महिलाओं को एक ही आसान उपाय नज़र आता है, नौकरी छोड़ देना. पर क्या यह सही होगा? किसी और की ग़लती के लिए आप अपनी नौकरी क्यों छोड़ें?
* दोषी को सज़ा दिलाना बहुत ज़रूरी हो जाता है, वरना जो आज आपके साथ हो रहा है, कल किसी और के साथ भी होगा. अगर आप चाहती हैं कि दोषी को उसकी सज़ा मिले, तो शिकायत करें.
* 'सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस' एक्ट के तहत शिकायत पर जांच 90 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए. साथ ही दोषी को 1-3 साल तक की सज़ा का प्रावधान है.
पुलिस संबंधी कुछ ख़ास अधिकार
* पुलिस और कोर्ट-कचहरी का नाम सुनते ही बेकसूर होते हुए भी बहुत-सी महिलाएं घबरा जाती हैं.
* अगर आपने कुछ ग़लत नहीं किया है, तो आपको पुलिस या किसी से भी डरने की कोई ज़रूरत नहीं.
* अपने अधिकारों से अंजान महिलाओं के लिए पुलिस से संबंधित मामलों में कुछ ख़ास अधिकार दिए गए हैं.
* अगर किसी मामले में किसी महिला से पुलिस को पूछताछ करनी है, तो उस महिला को पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया जा सकता, बल्कि पुलिस ख़ुद महिला के घर जाकर पूछताछ करती है.
* हर महिला को यह क़ानूनी अधिकार है कि बेव़क्त आई पुलिस को वो अपने घर में न आने दे और पूछताछ के लिए अगले दिन आने को कहे.
* पुलिस से हो रही पूछताछ के दौरान अगर महिला चाहे, तो अपने वकील या किसी क़रीबी दोस्त या रिश्तेदार को अपने साथ रख सकती है.
* सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किसी भी महिला की गिरफ़्तारी नहीं की जा सकती.
* अगर कोई महिला पुलिस में शिकायत करना चाहती है, पर पुलिस स्टेशन जाने में असमर्थ है या नहीं जाना चाहती, तो पोस्ट या ईमेल के ज़रिए अपनी शिकायत को हेड पुलिस इंस्पेक्टर को लिखकर भेज सकती है. उसकी शिकायत पर छानबीन कर एफआईआर दर्ज करना पुलिस की ज़िम्मेदारी हो जाती है.
यह भी पढ़ें: क्यों आज भी बेटियां वारिस नहीं?एबॉर्शन से जुड़े अधिकार
* आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में हर दो घंटे में असुरक्षित गर्भपात के कारण एक महिला की मौत हो जाती है.
* असुरक्षित गर्भपात और गर्भवती महिलाओं की मृत्यु के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए वर्ष 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट पारित किया गया.
* इस एक्ट के मुताबिक़, हर महिला का उसके शरीर व उससे जुड़ी गतिविधियों पर पूर्ण अधिकार है. प्रेग्नेंसी और एबॉर्शन जैसे मामलों में महिला का अपना अधिकार है, क्योंकि यह उसके शरीर से जुड़ा बहुत ही अहम् फैसला है.
* कोई महिला एबॉर्शन कराना चाहती है या नहीं, यह उसका अधिकार क्षेत्र है, कोई ज़बर्दस्ती उसका एबॉर्शन नहीं
करवा सकता.
* अगर प्रेग्नेंसी के कारण गर्भवती महिला की जान को ख़तरा हो सकता है, तो उसे पूरा हक़ है कि वह भ्रूण को एबॉर्ट करवा दे.
* अगर सोनोग्राफी की रिपोर्ट में यह बात सामने आए कि भ्रूण में किसी तरह की शारीरिक या मानसिक विकलांगता हो सकती है, तो भी महिला को एबॉर्शन कराने का हक़ है.
* अब तक हमारे देश में विवाहित महिलाओं को ही एबॉर्शन का हक़ था, पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ मामलों में अविवाहित लड़कियों को भी यह अधिकार मिल गया है.
फ्री लीगल एड (मुफ़्त क़ानूनी सहायता)
* हमारे देश में सभी महिलाओं को फ्री लीगल एड का अधिकार है. इसके लिए उनकी आमदनी कितनी है या फिर मामला कितना बड़ा है या छोटा है, इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
* महिलाएं किसी भी तरह के मामले के लिए फ्री लीगल एड की मांग कर सकती हैं.
* हमारे देश में महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मानव तस्करी से पीड़ित व्यक्ति, स्वतंत्रता सेनानी, प्राकृतिक आपदा से पीड़ित व्यक्ति और 18 साल से कम उम्र के बच्चों को भी फ्री लीगल एड का अधिकार है.
* सामान्य श्रेणी के लोगों के लिए इन्कम का दायरा रखा गया है. हाईकोर्ट के मामलों में जहां उनकी सालाना इन्कम 30 हज़ार रुपए से कम होनी चाहिए, वहीं सुप्रीम कोर्ट के मामलों में वह 50 हज़ार से कम हो.
मैरिटल रेप से सुरक्षा
* हमारे देश में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है, पर यह पवित्र बंधन तब अपवित्र हो जाता है, जब पत्नी की भावनाओं को नज़रअंदाज़ कर पति उसके साथ न सिर्फ़ ज़बर्दस्ती करता है, बल्कि बलात्कार भी करता है.
* हमारे समाज में ऐसे पतियों की कमी नहीं, जो पत्नी को महज़ अपनी ज़रूरत की वस्तु समझते हैं. पत्नी के शारीरिक शोषण वो अपना मालिकाना हक़ मानते हैं.
* महिलाओं के लिए यह मुद्दा जितना संवेदनशील है, पुरुषों के लिए शायद उतना ही असंवेदनशील, इसीलिए आज़ादी के इतने सालों बाद भी पत्नी को इतनी स्वतंत्रता नहीं कि शारीरिक संबंधों के लिए वह पति को ङ्गनाफ कह सके.
* 21वीं शताब्दी में दुनिया के कई देशों ने मैरिटल रेप को अपराध करार दे दिया गया है, पर भारत में आज भी यह बहस का विषय बना हुआ है.
* देश में इसके लिए भले ही अभी तक अलग से कोई क़ानून न बना हो, पर पीड़िता घरेलू हिंसा क़ानून के तहत अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है.
11 क़ानूनी अधिकार जो हर महिला को पता होने चाहिए
1. बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार: बेटियों को पिता की प्रॉपर्टी में समान अधिकार है. वर्ष 2005 मेें हिंदू सक्सेशन एक्ट में बदलाव कर बेटियों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार दिया गया.
- हालांकि वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकार में एक और ़फैसला जोड़ दिया. इसके मुताबिक बेटी को पिता की संपत्ति में समान अधिकार तभी मिल पाएगा, अगर उसके पिता 9 सितंबर, 2005 में जिस दिन हिंदू सक्सेशन (अमेंडमेंट) एक्ट पारित हुआ, उस दिन तक जीवित थे.
- अगर पिता की मृत्यु 9 सितंबर, 2005 के पहले हो चुकी है, तो बेटी इस हक़ से वंचित रह जाएगी.
2. ज़ीरो एफआईआर का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, अगर किसी महिला के साथ कोई घटना घटती है या वो किसी शोषण का शिकार होती है, तो ज़ीरो एफआईआर रूलिंग के तहत वो किसी भी पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है. उसे उसी इलाके के पुलिस स्टेशन में जाने की ज़रूरत नहीं, जहां घटना घटी है. उसकी शिकायत के बाद यह पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि वो उसकी शिकायत को सही स्थान पर पहुंचाकर कार्रवाई शुरू करे.
3. एलीमनी और मेंटेनेंस का अधिकार: हर महिला को आर्थिक सहायता का अधिकार मिला है. जहां पति से अलग रहनेवाली महिला को एलीमनी और मेंटेनेंस का अधिकार है, वहीं बुज़ुर्ग मां को अपने बेटे से मेंटेनेंस का पूरा अधिकार मिला है.
4. बुज़ुर्ग महिलाओं का अधिकार: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम् ़फैसला सुनाया, जिसके मुताबिक़ माता-पिता के घर में बच्चे उनकी मर्ज़ी से रह सकते हैं, लेकिन अगर बच्चे माता-पिता का ख़्याल नहीं रखते, तो वो उन्हें अपने घर से निकाल सकते हैं. बुज़ुर्ग महिलाओं के साथ होनेवाले तिरस्कार को देखते हुए यह ़फैसला लिया गया.
5. 6 महीने की मैटर्निटी लीव का हक़: हाल ही में महिलाओं के अधिकार में एक और इज़ाफ़ा करते हुए सरकार ने प्राइवेट सेक्टर में काम करनेवाली महिलाओं की मैटर्निटी लीव को 3 महीने से बढ़ाकर 6 महीने कर दिया है.
6. पति की रिहायशी संपत्ति में समान अधिकार: हर महिला का अपने पति की संपत्ति पर समान अधिकार है. तलाक़ के बाद पत्नी पति की रिहायशी संपत्ति में भी आधे की हक़दार है, इसलिए पति पत्नी को अपने घर से निकाल नहीं सकता.
7. समान वेतन का हक़: सरकारी या ग़ैैरसरकारी संस्थान में काम करनेवाली महिलाओं को वहां पर काम करनेवाले पुरुष सहकर्मियों के बराबर सैलरी पाने का हक़ है. अगर किसी संस्थान में ऐसा नहीं हो रहा, तो महिला अपने हक़ के लिए आवाज़ उठा सकती है.
8. संपत्ति अपने नाम रखने का अधिकार: फाइनेंशियल जानकारी के अभाव में अक्सर महिलाएं अपनी संपत्ति पति या बेटे के नाम कर देती हैं, जिसके लिए बाद में वो पछताती भी हैं. संपत्ति पुरुष के नाम ही हो, ज़रूरी नहीं. हर महिला को अधिकार है कि वो अपनी संपत्ति अपने नाम पर रख सके.
9. लोकल सेल्फ गवर्नमेंट में अधिकार: पंचायत और म्यूनिसिपल गवर्नमेंट में महिलाओं को 50 फ़ीसदी सहभागिता का अधिकार है.
10. पहचान गोपनीय रखने का हक़: कुछ मामलों में महिलाओं को अपनी पहचान गुप्त या गोपनीय रखने का अधिकार है. अगर कोई उनकी पहचान को जगज़ाहिर करता है, तो उसके ख़िलाफ़ सज़ा का प्रावधान है. उसे दो साल की सज़ा और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है.
11. आत्मरक्षा का अधिकार: बलात्कार से ख़ुद को बचाने के लिए अगर आत्मरक्षा में कोई महिला किसी की जान भी ले लेती है, तो इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 100 के तहत उस पर मर्डर का चार्ज नहीं लगेगा.
प आत्मरक्षा के इस क़ानून से बहुत-सी महिलाएं अंजान हैं. ऐसे में यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम सभी महिलाओं को इस क़ानून की जानकारी दें कि उन्हें अपनी रक्षा का पूरा अधिकार है.
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* हमारे देश में महिलाओं को अपने पिता की पैतृक संपत्ति में भाई के समान अधिकार हैं, फिर भी बहुत-सी महिलाएं यह हक़ नहीं लेतीं. इस विषय पर भारत में यूएन वुमन एंड लेंडिसा स्टडी द्वारा महिलाओं को अपने अधिकारों की कितनी जानकारी है, इस विषय पर किए गए सर्वे में ये बातें सामने आई हैं-
* यह सर्वे ग्रामीण भारत की महिलाओं पर किया गया था.
* इस सर्वे में 44% महिलाओं ने माना कि भले ही संपत्ति में उनका बराबर का अधिकार हो, फिर भी उनके माता-पिता पैतृक संपत्ति में अधिकार देने के लिए कभी राज़ी नहीं होंगे. चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो.
* वहीं 53% महिलाओं का मानना है कि उनके भाई इस बात का विरोध करेंगे, जिससे उनके रिश्तों में हमेशा के लिए दरार आ जाएगी, इसलिए किसी भी तरह की आर्थिक परिस्थिति का वो सामना कर लेंगी, पर परिवार से अलग नहीं हो पाएंगी.
ज़रूरी है क़ानूनी शिक्षा
* हमारे देश में क़ानूनी शिक्षा का उतना प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता, जितना अन्य देशों में. क़ानूनी शिक्षा का मतलब सभी लोग वकालत की पढ़ाई ही मानते हैं, जबकि अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता व जानकारी क़ानूनी शिक्षा है.
* 18 साल के ऊपर के पाठ्यक्रम में महिलाओं के अधिकारों का एक अध्याय रखकर इस मकसद को जल्द पूरा किया जा सकता है.
* गर्ल्स स्कूल या कॉलेज में लड़कियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए ख़ास वर्कशॉप्स व प्रोग्राम्स रखे जाने चाहिए.