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लड़के क्यों चाहने लगे हैं हाउसवाइफ? (Do Guys These Days Want A Housewife?)

रिश्ते जब जुड़ते हैं, तो अपने साथ कई अपेक्षाएं भी लाते हैं, जिनमें एक-दूसरे का साथ, प्यार, लगाव ख़ास होता है. एक वक़्त था जब लड़के वर्किंग वाइफ की ही इच्छा रखते थे, जिसकी कई वजहें थीं. उनकी सोच थी कि जीवनसाथी नौकरीपेशा होगी, तो आर्थिक रूप से उन्हें मदद मिलेगी. लेकिन जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया, चीज़ें बदलती गईं. परिस्थितियां-स्थितियां कुछ अच्छी, तो कुछ जटिल भी होती गईं. अब लड़कों की पार्टनर को लेकर सोच बदल रही है. आजकल के लड़के वर्किंग पार्टनर नहीं, बल्कि हाउसवाइफ की ख़्वाहिश करने लगे हैं.

होममेकर पार्टनर की ख़्वाहिश
हाल ही में युवाओं पर हुए एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि अब अधिकतर लड़के एक घरेलू होममेकर पार्टनर की ख़्वाहिश रखने लगे हैं. इसकी अपनी वजह भी है. मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले विशाल श्रीवास्तव का कहना है कि दिनभर काम से उलझा हुआ जब थका-हारा मैं घर आता हूं, तो मेरी इच्छा होती है कि मेरी पार्टनर मेरे साथ कुछ वक़्त बिताए. हम गरम-गरम चाय का लुत्फ़ उठाएं. मैं दिनभर की अपनी परेशानियों को उससे शेयर कर सकूं. उससे हल्की-फुल्की बातें करके अपना मन हल्का कर सकूं. और आज मैं इस बात से बेहद ख़ुश हूं कि पैरेंट्स के कहने और अपनी इच्छा के चलते मैंने रंजना से अरेंज मैरिज की और वह एक समझदार हाउसवाइफ साबित हुई. आज वह ना केवल मेरा, माता-पिता और घर का ख़्याल रखती है, बल्कि रिश्तेदारी भी बख़ूबी संभालती है.

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विशाल जैसे ऐसे कई युवा हैं, जो अच्छे पद पर हैं और जिनकी यह ख़्वाहिश है कि जब वे घर पहुंचें, तो कोई इंतज़ार करता मिले, प्यार से उनका स्वागत करे, दो पल पास बैठकर हंसे-बोले. ऐसा नहीं है कि यह काम कोई वर्किंग वाइफ नहीं कर सकती. लेकिन उसकी भी अपनी मजबूरियां होती हैं. वह ख़ुद ऑफिस से थकी-हारी आती है. तब बैठकर दो घड़ी बात करने की जगह वह चाहती है कि थोड़ा आराम कर ले और फिर खाने-पीने और अन्य चीज़ों की व्यवस्था देखे.

दोनों में बैलेंस बना रहता था…
बिज़नेसमैन सुनील साहू का कहना है, पहले के ज़माने का जो हिसाब था, वही बढ़िया और सही था. पुरुष कमाने जाते थे और बाहर के काम देखते थे. वहीं स्त्रियां घर के काम देखती थीं. दोनों में बैलेंस बना रहता था. घर-गृहस्थी अच्छी तरह से पटरी पर चलती रहती थी. अब यदि मैं किसी वर्किंग लड़की को अपना जीवनसाथी बनाता हूं, तो वह मुझसे अपेक्षा कर सकती है कि मैं भी उसका अतिरिक्त ध्यान रखूं. शाम को काम से आने पर उसकी ज़रूरत और ज़िम्मेदारियों में हाथ बंटा सकूं. जबकि अगर बीवी हाउसवाइफ रहती है, तो कम से कम इस बात की तो राहत रहती है कि घर पहुंचने पर हमें साथ के साथ न केवल बढ़िया चाय-नाश्ता मिल जाएगा, बल्कि स्वादिष्ट भोजन भी तैयार होगा.

रिश्तों के इंवेस्टमेंट

  • ऐसा नहीं है कि आजकल के लड़के उपरोक्त वजह से ही हाउसवाइफ लड़की की ज़रूरत महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि जितनी ख़ूबसूरती से गृहिणी पत्नी घर-परिवार, रिश्तेदार, बच्चों को संभालती है, वह अपने आपमें काबिल-ए-तारीफ़ है. लड़के कहीं ना कहीं अपने कंफर्ट जोन के अलावा रिश्तों के होनेवाले इंवेस्टमेंट के लिए भी हाउसवाइफ का होना ज़रूरी समझने लगे हैं.
  • युवा वर्ग के एक तबके का मानना है कि घर के ऐसे छोटे-मोटे तमाम काम रहते हैं, जो घर पर रहकर ही अच्छी तरह से निभाए और किए जा सकते हैं, विशेषकर रिश्तों में तालमेल.


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  • इंजीनियर अमन के अनुसार, मेरी पत्नी हाउसवाइफ है. वह मेरे माता-पिता का ख़्याल रखने के साथ-साथ घर में आनेवाले रिश्तेदार-मेहमानों का भी उतना ही वॉर्म वेलकम करती है और ध्यान रखती है. ऐसे में मुझे इस बात की संतुष्टि और ख़ुशी रहती कि मुझे एक्स्ट्रा एफर्ट्स लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती रिश्तों को संभालने में. वह डिपार्टमेंट मेरी पत्नी गुंजा बख़ूबी हैंडल कर लेती है. और मैं एक तरह से निश्‍चिंत होकर अपने काम को अच्छी तरह से कर पाता हूं.
  • मनोवैज्ञानिक संगीता दीपक का मानना है कि कहीं ना कहीं युवाओं को यह लगने लगा है कि उनके काम की क्वालिटी तब और भी अच्छी हो जाती है, जब वह घर-परिवार से निश्‍चिंत हो जाते हैं. उन्हें यह निश्‍चिंतता वर्किंग की बजाय एक हाउसवाइफ अच्छी तरह से दे सकती है. इन सबके अलावा आपसी प्यार के लिए समय भी भरपूर मिल जाता है. एक सुखी वैवाहिक जीवन में आपसी समझ के साथ प्यार की गर्माहट भी आवश्यक होती है.

वक़्त भी मायने रखता है…
शादी के शुरुआती कुछ साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. तब हर छोटी सी छोटी चीज़ बड़ी खूबसूरत लगती है और महत्व रखती है. कपल्स की ख़्वाहिश भी रहती है कि उस हर पल को उमंग-उत्साह से भरपूर जीने की. फिर चाहे वह हनीमून हो, पहले त्योहार हों या प्रिय का जन्मदिन. ख़ास मौक़ों पर रिश्तों का भरपूर साथ दिलों को लुभाता है और लम्हों को यादगार बनाता है.

यदि वर्किंग पत्नी होगी, तो न जाने कितनी बातों में समझौते करने पड़ते हैं, ख़ासकर वक़्त और छुट्टियों को लेकर. ये अब चुभने लगा है पुरुषों को. उनकी यही तमन्ना रहती है कि अगर कोई प्लानिंग हो, कुछ ख़ास करने का मौक़ा हो, तो पत्नी का पूरा सहयोग मिले, जो वर्किंग साथी में बहुत कम गुंजाइश रहती है. जबकि हाउसवाइफ एक समर्पित जीवन जीती है. वह छोटी-छोटी हर ख़ुशियों में शामिल रहती है और उन पलों को ख़ास बनाती है.

छोटी-छोटी बातों से…
न जाने हमने कब यह तय कर लिया कि नाम, पैसा, शौहरत से सब कुछ पाया जा सकता है. जबकि हक़ीक़त की धरातल पर ऐसा नहीं है. ख़ुशियां व सुकून छोटी-छोटी चीज़ों और साथ से ही मिलता है. आज हम भले ही क्वालिटी टाइम की बात करें, लेकिन कई रिश्तों में, ख़ासकर पति-पत्नी के रिश्तों में भरपूर साथ को अधिक तवज्जो दिया जाता है. यदि रिश्तों के समीकरण बदल रहे हैं, तो इसमें कुछ हैरान करनेवाली बात नहीं है. कहीं ना कहीं टर्निंग पॉइंट आता ही है. अब यह और बात है कि युवा हाउसवाइफ पसंद करने लगा है.


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लड़कों की नज़र में हाउसवाइफ होने के फ़ायदे

  • अधिक समझदार और सुलझी हुई होती हैं.
  • घर-परिवार से जुड़ी अपनी ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी निभाती हैं.
  • ज़िंदगी के ज़रूरी समझौते आसानी से कर सकती हैं.
  • इनमें बेहतरीन जीवनशैली की समझ होती है.

- ऊषा गुप्ता

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