कहते हैं कि जो लोग दूसरों के लिए गड्ढा खोदते हैं, एक दिन वो ख़ुद उसी गड्ढे में गिर जाते हैं. ठीक वैसे ही जो व्यक्ति दूसरों का भला करता है, उसका भला स्वयं भगवान करते हैं, इसलिए यदि आप चाहते हैं कि आपका भला हो, तो अब से दूसरों का भला करने की कोशिश करें.
जो बोएंगे, वही पाएंगे ये बात हम सदियों से सुनते आ रहे हैं, फिर भी न जाने क्यों? हम बबूल का पेड़ उगाकर उससे मीठा फल पाने की इच्छा रखते हैं. तो आइए, इस बार अपने मन-आंगन में भलाई के बीज बोने का प्रयास करते हैं, ताकि स्वादिष्ट फल का सुख भोग सकें.
सज्जन व्यक्ति करते हैं दूसरों का भलातरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान॥संत रहीम दास जी कहते हैं कि पेड़ पर फलने वाले फल का सेवन स्वयं पेड़ नहीं करते और न ही नदी में बहता पानी ख़ुद नदी पीती है. ठीक उसी तरह जो संत पुरुष होते हैं, वो ख़ुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के हित के लिए धन संचय करते हैं. अतः अगर आप चाहते हैं कि आपकी गिनती भी सज्जन व्यक्ति में की जाए, तो दूसरों का हित करने की कोशिश करें.
दूसरों का भला करने से होता है ख़ुद का भला
यह बात सोलह आने सच है कि दूसरों का भला करने से ख़ुद का भला होता है. इस बात को परिभाषित करने के लिए प्रस्तुत है संत रहीम दास जी की निम्न पंक्ति,
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।बांटनवारे को लगै, ज्यौं मेहंदी को रंग॥
अर्थात जो व्यक्ति स्वयं अपने हाथों से दूसरों को मेहंदी बांटता है, उसके हाथ में ख़ुद-ब-ख़ुद मेंहदी का रंग चढ़ जाता है, ठीक इसी तरह जो नर दूसरों का भला करता है, उसका भी भला होता है.
ऐसे व्यक्ति किसी काम के नहीं.....बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
अपार धन-संपत्ति होने के बावजूद जो लोग कभी किसी की मदद नहीं करते और न ही दूसरों के हित के बारे में सोचते, ऐसे लोग बिल्कुल खजूर के उस पेड़ की तरह हैं, जो गगन चुंबी होते हुए भी न किसी को फल का सुख देता है और न ही राहगिरों को छाया दे पाता है.
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