पिछले दो-ढाई साल हमने अपने रिश्तों के बिना बिताए, अगर ऐसा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा. कोविड 19 के आते ही अगर सबसे पहले हमसे कुछ छूटा, तो वह थे हमारे रिश्तेदार, हमारे प्रियजन, हमारे दोस्त, ऑफिस में हमारे साथ काम करने वाले हमारे सहकर्मी…
सामाजिक दूरी ने सामाजिक व्यवस्था को ही बदल कर रख दिया. जिन्हें कभी दफ्तर से आधे दिन की भी छुट्टी नहीं मिलती थी, उन्हें एक लंबे समय के लिए घर से काम करने के लिए कहा गया. जो पूरा दिन लोगों से घिरे रहते थे, वे अचानक अकेले हो गए. हमारे दो साल के जीवन से अचानक हमारा सामाजिक जीवन गायब हो गया. पर अब धीरे-धीरे सब कुछ फिर से पहले जैसा होने लगा है. लोगों के चेहरों से मास्क हटने लगे हैं. जीवन पटरी पर लौटने लगा है. ऑफिस, स्कूल, कालेजों में लोग लौटने लगे हैं. शादी समारोहों में भीड़ की रौनक पहले-सी लगने लगी है. हम पुराने दोस्तों से मिलने लगे हैं और नए दोस्त भी बनाने लगे हैं. चरमराई सामाजिक व्यवस्था फिर से अपने पैरों पर खड़ी होने लगी है और हमारे रिश्ते भी. पर हमने कभी यह सोचा है कि यह जो दो साल के एकांतवास की खाई हमने पार की है, क्या इसके बाद हम मानसिक रूप से कोई भी रिश्ता बनाने या निभाने के लिए तैयार हैं या नहीं? कहीं आज हमारे रिश्ते कोविड सिंड्रोम से तो नहीं गुजर रहे और यकीन मानिए इसका आपको पता भी नहीं चलेगा.
क्या है कोविड सिंड्रोम?
हमारा शरीर कोविड ग्रस्त है या नहीं इसके लिए आरटीपीसीआर टेस्ट है, पर हमारा मन मस्तिष्क कोविडग्रस्त है या नहीं अर्थात कहीं हम मानसिक रूप से अस्वस्थ तो नहीं, इसका कोई टेस्ट नहीं है. पिछले दो सालों में कहीं ना कहीं हम सब अकेलेपन से ऊब गए हैं. हर एक व्यक्ति चाहे वह किसी भी उम्र का हो, अब जल्द से जल्द सबसे मिलना चाहता है. अपनी सोशल लाईफ शुरू करना चाहता है. इस जल्दबाज़ी में बहुत सारा उत्साह, अपेक्षाएं, भय और कई सारे पूर्वाग्रह भी हैं. दो सालों से दबाकर रखी गई भावनाएं अपने पूरे उफान पर हैं. अब इसी भावनात्मक उन्माद में अगर हम कोई भी नया रिश्ता बनाते हैं या फिर पुराने रिश्तों को ही निभाने की कोशिश करते हैं तो हो सकता है कि किसी गहरी भावनात्मक खाई में गिर जाएं. कोविड के दिए अकेलेपन से जन्में इस भावनात्मक उन्माद को ही कोविड सिंड्रोम कहते हैं. किसी भी रिश्ते को फिर से शुरू करने से पहले हमें अपने भावनात्मक स्तर और बाहर बदली परिस्थितियों के बीच संतुलन बनाना पड़ेगा.
कैसे बचें इससे?
जरूरत से अधिक प्रतिबद्धता
लोगों से मिलने-जुलने का अतिउत्साह सबके बीच लोकप्रिय होने की जल्दी आपको ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिबद्ध अर्थात ओवर कमिटेड होने के लिए मजबूर करेगी. ऐसे में किसी से कोई वादा करने से पहले किसी को प्रॉमिस करने से पहले एक बार सोच लें कि क्या आप वाकई इसे पूरा कर पाएंगे. उदाहरण के तौर पर ऑफिस में दो सालों की वापसी और अपने सहकर्मियों और बॉस के सामने खुद को साबित करने की होड में कोई ऐसा कमिटमेंट ना कर दें, जो आप डेडलाइन में पूरा ना कर पाएं या फिर वह वादा यर्थाथवादी ही ना हो.
ना ढोएं रिश्तों का बोझ
इस आत्मग्लानि में ना जाएं कि पिछले दो सालों में आप किसी से मिल नहीं पाए या किसी रिश्ते को समय नहीं दे पाए. यह आपकी ग़लती नहीं है. अगर आप किसी ऐसी सोच का शिकार होंगे, तो सभी रिश्तेदारों को खुश करने और रिश्तेदारी निभाने के चक्कर में अपने आपको रिश्तों के बोझ तले दबा देंगे.
ना करें नया रिश्ता बनाने की जल्दी
याद रखें कि सामाजिक जीवन के मामले में आप और हम अभी शून्य पर खड़े हैं और साथ ही दो सालों से लोगों को हैंडल करना, उनके साथ मिलना-जुलना यह सब हमारे दिमाग की प्रोग्रामिंग से बाहर हो चुका है. अब सबसे पहले हमें अपने आपको इन सबके लिए तैयार करना होगा. ऐसे में आप कोई नया रिश्ता बनाने की हड़बड़ी ना ही करें तो अच्छा होगा.
रिश्ते पुराने नया कलेवर
अगर आप अपने किसी रिश्तेदार या सहेली से दो सालों के लंबे समय के बाद मिल रहे हैं तो याद रखिए कि हो सकता आपका वह रिश्ता वैसा ना हो, जैसा दो साल पहले था. ऐसे किसी भी रिश्ते की दूसरी पारी शुरू करते समय अपने पूर्वाग्रह या अपेक्षाएं उस रिश्ते पर ना थोपें. दो साल का समय बहुत लंबा होता है. हो सकता है कि लोग परिस्थितियों की वजह से बदल गए हों या रिश्ता औपचारिक हो गया हो. रिश्ते या लोग जैसे आपके सामने आ रहे हैं, उन्हें वैसे ही स्वीकार करें. हमें समझना होगा कि इन दो सालों में लोगों ने बहुत कुछ देखा और सहा है, जिससे सभी के जीवन में परिवर्तन आएं हैं. हो सकता है कुछ रिश्तों के समीकरणों में बदलाव आया हो. ऐसे में थोड़ा धैर्य रखना सबसे अच्छा होगा.
रिश्तों का भय
इस पैनडैमिक में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें अकेले रहने की आदत हो गई है. अब ना तो वह किसी से नए रिश्ते बनाना चाहते हैं और ना ही पुराने रिश्तों को निभाना चाहते हैं. ऐसे लोगों में रिश्तों और दोस्तों को लेकर एक तरह का फोबिया आ गया है, पर ऐसे लोगों को भी समझना होगा कि हमारी स्वस्थ मानसिकता के लिए लोगों और रिश्तेदारों का साथ होना बहुत आवश्यक है. अगर इनका यह भय कम नहीं हुआ तो वह किसी मानसिक रोग के शिकार हो जाएंगे.
ध्यान प्राणायाम और व्यायाम
उपरोक्त किसी भी परिस्थिति में मन पर संयम और धैर्य रखकर संतुलन बनाए रखना बहुत ज़रूरी है. ऐसे में ध्यान प्राणायाम करना बहुत फायदेमंद होगा. किसी प्रकार का व्यायाम करने से शरीर में हैप्पी हार्मोंस बनते हैं जो मानसिक रूप आपको स्वस्थ रखते हैं, जिससे आप रिश्ते बनाने और निभाने में संतुलित रहेंगे.
क्या होगा अगर आप कोविड सिंड्रोम रिश्तों के शिकार हो जाएं
अगर आपने उपरोक्त किसी भी मानसिक स्थिति में रिश्ते बनाए या निभाए, तो यह हो सकता है कि ऐसा कोई भी रिश्ता लंबा ना चले या अगर चले भी तो टॉक्सिक या विषैला हो. और कोई भी टाक्सिक रिश्ता आपको अवसाद के अलावा कुछ भी नहीं देगा. कोविड के बाद के अपने जीवन को स्वस्थ और ख़ूूबसूरत बनाइए, ना कि अवसादग्रस्त और विषैला.
माधवी निबंधे