हर माता-पिता उत्तम संतान की कामना करते हैं. सुसंस्कृत, योग्य, बुद्धिमान और तेजस्वी संतान के लिए हर माता-पिता को करना चाहिए करें इन मंत्रों का जाप.
गर्भाधान मंत्र
बच्चे कोे दुनिया में लाने के बारे में सोचना किसी भी दंपति के जीवन में आया एक व्यापक परिवर्तन होता है। प्राचीन भारतीय विज्ञान ने इस बात की हमेशा पुष्टि की है। उसमें व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक चरण के लिए यानी जन्म से लेकर मृत्यु तक, सोलह संस्कारों की बात की गई है। गर्भाधान संस्कार उन दंपतियों पर लागू होता है जो गर्भाधान मंत्रों द्वारा शुद्धिकरण विधान व अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करते हैं। इन संस्कारों से दंपतियों को स्वस्थ व उत्कृष्ट संतान की प्राप्ति होती है।
भावी माता-पिता द्वारा मंत्रों का प्रयोग
नीचे वे गर्भाधान मंत्र दिए गए हैं जिन्हें हम उन दंपतियों को उच्चारण करने की सलाह देते हैं जो हमारे गर्भाधान पूर्व कोर्स में इनका उच्चारण करने को उत्सुक होते हैं। दंपतियों को इन मंत्रों का उच्चारण हर महीने गर्भधारण करने तक, रात को प्रजनन हफ्ते के दौरान (यानी माहवारी चक्र के 10वें दिन से आरंभ करके चक्र के 20वें दिन तक। यही वे दिन होते हैं जब बच्चा गर्भ में आता है) करना चाहिए। इन मंत्रों को ‘गर्भ संस्कृति’ नामक सी.डी. में सुना जा सकता है।
1) यह मंत्र यजुर्वेद से लिया गया है-
आदित्यं गर्भ पयंसा समंङ्धि, सहस्त्रस्य प्रातिमां विश्वरूपम् ।
परिंवृन्धि हरसा माभिमगूँस्था:, शतायुषं कृणुहि चीयमान:।
अर्थ - हम ईश्वर से यह आशीर्वाद चाहते हैं कि वे हमें ऐसी संतान दें जिसमें सूर्य की चमक व बुद्धि हो, जिसकी दीर्घ आयु हो और जो सौ वर्षों तक जीए।
2) यह मंत्र अथर्ववेद से लिया गया है-
परिहस्त वि धारय, योनिं गर्भायं धातवे
मर्यादे पुत्रमा देहि, तं त्वमा गमयागमे
अर्थ - हे अग्नि देवता, कृपा कर औरत की कोख को आशीर्वाद दें ताकि वह मातृत्व सुख पा सके। हम प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उसकी कोख में पुन: जन्म ले और उसे अच्छा बालक बनाने के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दे।
उत्तम संतान के लिए रोज़ सुनें ये मंत्र, जाप और श्लोक, देखें वीडियो:
3) यह श्लोक भी अथर्ववेद से लिया गया है-
गर्भं धेहि सिनीवालि गर्भं धेहि सरस्वति ।
गर्भं ते अश्विनोभा धत्तां पुष्करस्त्रजा ॥
गर्भं ते मित्रावरूणौ गर्भं देवो बृहस्पति:,
गर्भं त इन्द्रश्चाग्निश्च गर्भं धाता दधातु ते॥
विष्णुर्योनि कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु,
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते॥
अर्थ - हम अपने भगवान, प्रजापति, सरस्वती और इंद्र के समक्ष सिर झुकाते हैं कि वे हमें एक गुणवान शिशु दें और वह कोख में सुरक्षित रहे। भगवान विष्णु की कृपा से कोख में एक स्वस्थ गर्भ बीज पधारे और मां भी स्वस्थ रहे ताकि गर्भ अंगों का विकास ठीक से हो और उसे सही पोषण मिले।
4) यह श्लोक ऋषि संवनन से है-
समानी व आकूती : समाना हृदयानि व: ।
समान मस्तुं वो मनो यथा व: सुसहासनि ॥
अर्थ - हम एक युगल के रूप में हमेशा साथ रहें। हमारे संसार में खुशियां भर जाएं और हर दिन हमें बेहतर स्वास्थ्य, समृद्धि और प्रोत्साहित करने वाला परिवार मिले।