Shayeri

ग़ज़ल- हमारे हिस्से का छोटा सा आकाश… (Gazal- Hamare Hisse Ka Chota Sa Aakash…)

असल वजह यही है थोड़े कुछ में ही बहुत कुछ ढूंढ़ने की कोशिश करना और बहुत कुछ में थोड़े कुछ…

May 3, 2022

कविता- तुम याद आते हो (Poetry- Tum Yaad Aate Ho)

मेरी आंखों में आंसू हैं क्या कहूं तुम याद आते हो तुम मेरे साथ हो कि नहीं हो बात यह…

April 25, 2022

काव्य- अपने-अपने क्षितिज… (Kavay- Apne-Apne Kshitij…)

तुमने मुझे लिखा मैंने तुमको आपस में कविताएं बदलकर भी हम स्वयं को पढ़ सकते हैं अधूरे तुम भी रहे…

April 12, 2022

ग़ज़ल- तेरी बेवफ़ाई… (Gazal- Teri Bewafai…)

ख़ुशी मुझसे लेकर, ग़म मुझको दे जाइनायत के बदले सितम मुझको दे जा तेरी बेवफ़ाई से गिला कुछ नहीं मगर…

April 2, 2022

काव्य: वो बूढ़ी मां… (Poetry: Wo Boodhi Maa)

वो बूढ़ी मां अब काम की नहीं लगती जो तुमको गरम-गरम रोटियन घी भर-भर के खिलाती थी… अब वो बोझ लगती हैक्योंकि उसके इलाज में पैसे खर्च होते हैं तुम्हारे...  तुम्हारे बच्चों को वो अब दादी या नानी नहीं लगती, वो उसे बुढ़िया या बुड्ढी कहने लगे हैं क्योंकि उसकी याददाश्त अबउ सका साथ नहीं देती.. वो अब इरिटेटिंग लगती है… जो कभी उनको बड़े प्यार से कहानियां सुनाया करती थी…  वो बूढ़ी मां अब ग़ुस्सा दिलाती है तुम्हें, जो घंटों दरवाज़े पर बैठ तुम्हारे लौटंने का इंतज़ार करती थी, जिसको यही चिंता सताती थी कि मेरे बेटे ने, मेरी बेटी ने कुछ खाया है या नहीं… जो तुम्हें खाना खिलाने के बाद ही हलक से निवाला निगल पाती थी… अब वो तुम्हारे बच्चों की पढ़ाई में एक डिस्टर्बिंग एलीमेंट हो गई है…  उस बूढ़ी मां के लिए अब तुम्हारे लिए वक़्त नहीं, जो तुम्हारी हल्की सी छींक और खांसी पर तुम्हें गोद में लेकर डॉक्टर केपास दौड़ पड़ती थी, जो तुम्हारा बुख़ार न उतरने पर न जाने कौन-कौन से मंदिरों कौन-कौन सी मज़ारों के चक्कर लगाकर मन्नतें मांगा करती थी  उसके लिए तुम्हारे बड़े से महलनुमा घर में एक छोटा-सा कमरा तक नहीं है ख़ाली, जो कभी तुम्हें एक छोटे-से कमरे में हीमहलों का एहसास कराती थी…  वो बूढ़ी मां अब तुमको मां ही नहीं लगती है, जिसका आंचल पकड़कर तुम ख़ुद को हमेशा महफ़ूज़ समझते थे, जिसकीगोद तुमको जन्नत का एहसास कराती थी, अब उसका शरीर कमज़ोर पड़ चुका है, अब तुमको उसके बुढ़ापे की लाठी बननेकी ज़रूरत है लेकिन तुम अब बस हर पल उसके मरने का ही इंतज़ार करते हो… क्योंकि अब उसके पास तुम्हारे नाम करनेको कोई प्रॉपर्टी नहीं…  और जब तुम देखते हो कि उसे मौत भी नहीं आ रही, वो अब बीमारी से है घिरती जा रही, तब तुम उसको ओल्ड एज होम मेंले जाकर छोड़ देते हो और उसकी आंखें बस तुम्हारा इंतज़ार करते-करते वहीं बंद हो जाती है…  गीता शर्मा  डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारेसब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

March 25, 2022

विश्व कविता दिवस पर विशेष: कविता- मैं अपने हर अनकहे चुप के, नये आकार लिखती हूं… (World Poetry Day: Kavita- Main Apne Har Ankahe Chup Ke, Naye Aakar Likhti Hun…)

कभी तेरा-कभी मेरा, मैं दिल का हाल लिखती हूं कहूं कैसे कि बहाने से, मैं मन बेहाल लिखती हूं गढ़ती…

March 21, 2022

काव्य: सिर्फ़ तुम… (Poetry: Sirf Tum…)

सर्द मौसम में सुबह की गुनगुनी धूप जैसी तुम…  तपते रेगिस्तान में पानी की बूंद जैसी तुम… सुबह-सुबह नर्म गुलाब पर बिखरी ओस जैसी तुम… हर शाम आंगन में महकती रातरानी सी तुम… मैं अगर गुल हूं तो गुलमोहर जैसी तुम…  मैं मुसाफ़िर, मेरी मंज़िल सी तुम… ज़माने की दुशवारियों के बीच मेरे दर्द को पनाह देती तुम… मेरी नींदों में हसीन ख़्वाबों सी तुम…  मेरी जागती आंखों में ज़िंदगी की उम्मीदों सी तुम…  मैं ज़र्रा, मुझे तराशती सी तुम…  मैं भटकता राही, मुझे तलाशती सी तुम…  मैं इश्क़, मुझमें सिमटती सी तुम…  मैं टूटा-बिखरा अधूरा सा, मुझे मुकम्मल करती सी तुम…  मैं अब मैं कहां, मुझमें भी हो तुम… बस तुम… सिर्फ़ तुम! गीता शर्मा

March 20, 2022

कविता- आज हमारा दिन है… (Poetry- Aaj Hamara Din Hai…)

सुनो, तुम आज मना लेना ये दिवस.. कोई टोके अगर कि बस एक ही दिन? तो कह देना, हां एक…

March 8, 2022

ग़ज़ल- इक दुआ बनती गई मेरे लिए… (Gazal- Ek Dua Banti Gai Mere Liye…)

काग़जी फूलों की हैं यह बस्तियां ढूंढ़ते फिरते हैं बच्चे तितलियां और बढ़ती जा रही हैं लौ मेरी तेज़ जितनी…

March 3, 2022

काव्य: मुहब्बत के ज़माने… (Poetry: Mohabbat Ke Zamane)

खामोशी के साये में खोए हुए लफ़्ज़ हैं… रूमानियत की आग़ोश में जैसे एक रात है सोई सी…  सांसों की हरारत है, पिघलती सी धड़कनें… जागती आंखों ने ही कुछरूमानी से सपने बुने…  मेरे लिहाफ़ पर एक बोसा रख दिया था जब तुमने, उसके एहसास आज भी महक रहे हैं… मेरी पलकों पर जब तुमने पलकें झुकाई थीं, उसे याद कर आज भी कदम बहक रहे हैं… लबों ने लबों से कुछ कहा तो नहीं था, पर आंखों ने आंखों की बात पढ़ ली थी, वीरान से दिल के शहर में हमने अपनी इश्क़ की एक कहानी गढ़ ली थी…  आज भी वोमोड़ वहीं पड़े हैं, जहां तुमने मुझसे पहली बार नज़रें मिलाई थीं, वो गुलमोहर के पेड़ अब भी वहीं खड़े हैं जहां तुमने अपनेहोंठों से वो मीठी बात सुनाई थी…  आज फिर तुम्हारी आवाज़ सुनाई दी है, आज फिर प्यार के मौसम ने अंगड़ाई ली है, तुम्हारे सजदे में में सिर झुकाए आज भी बैठा हुआ हूं, तुम्हारी संदली ख़ुशबू से मैं आज भी महका हुआ हूं…  आ जाओ किमौसम अब सुहाने आ गए, हवा में रूमानियत और मेरी ज़िंदगी में मुहब्बत के ज़माने आ गए! गीता शर्मा डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z…

February 26, 2022
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