World Poetry Day मैं जब भी अकेला होता हूं क्यों ज़ख़्म हरे हो जाते हैं क्यों याद मुझे आ जाती…
उस दिन हम मिले तो मिले कुछ इस तरह जैसे मिलती है धूप छाया से जैसे मोती से सीपी मिल…
ज़िंदगी पूरी लगा दी एक-दूसरे को परखने में सोचती हूं काश! समय रहते कुछ वक़्त लगाया होता एक-दूसरे को समझने…
मेरी कोई उम्र नहीं... कोई सीमा नहीं... और मैं कभी मरता भी नहीं... जनाब! मुझे इश्क़ कहते हैं... * हम…
जब भी मायके जाती हूं फिर बचपन जी आती हूं टुकड़ों में बंटी ख़ुशियों को आंचल में समेट लाती…
ग़म इतने मिले ख़ुशी से डर लगने लगा है मौत क्या अब ज़िंदगी से डर लगने लगा है सोचा था…
जो महफ़िलें रुलाती मुझे हैं उनसे अच्छी मेरी तन्हाई है जो महफ़िलें इल्ज़ाम लगाती हैं उनसे अच्छी मेरी तन्हाई…
जब-जब तुमसे मुलाक़ात होती है मेरे दिल में कोई गीत उतर आता है सामने आ जाते हो तुम मेरा सूना-सा…
अपने ख़्वाबों की ज़िंदगी तो सभी जीते हैं.. पर ज़िंदगी तो वह है, जो किसी का ख़्वाब हो जाए... …