एक चुप होती हुई स्त्री कहती है बहुत कुछ… तुलसी जताती है नाराज़गी नहीं बिखेरती वो मंजरी सारी फुलवारियां गुमसुम…
इस से पहले कि मैं तुम्हें आई लव यू कहने का साहस जुटा सकूं डरता हूं कहीं ये तीन शब्द…
लिखा था धड़कते दिल से और दिया था कांपते हाथों से मैंने नजरें ज़मीन में ही गड़ा रखी थी फिर…
जिस दिन तमन्ना बड़ी और हौसला छोटा हो जाए समझना कि हार गए तुम जिस दिन राजनीति बड़ी और दोस्ती…
मैंने भर दिया ये आकाश सारा का सारा नन्हें-नन्हें तारों से अपनी चुनरी की परवाह किए बिना.. मैंने सूरज को…
अब न कोई शक़-ओ-शुबा है, हर ढंग से तस्तीक़ हो गई निराशाओं से लड़ने की, मेरी बीमारी ठीक हो गई…
आज के हालातों में हर कोई 'बचा' रहा है कुछ न कुछ पर, नहीं सोचा जा रहा है 'प्रेम' के…
सांस, ख़ुशबू गुलाब की हो धड़कन ख़्वाब हो जाए उम्र तो ठहरी रहे हसरत जवान हो जाए बहार उतरे तो…
तेरी तस्वीर… मैं जहां में कुछ अनोखी चीज़ ढूंढ़ने निकला और शहर में मुझे सिर्फ़ आईना मिला जो मेरी बेबसी…
वह स्त्री.. बचाए रखती है कुछ 'सिक्के' पुरानी गुल्लक में पता नहीं कब से कभी खोलती भी नहीं कभी-कभार देखकर…