तेरी आंखों से कब राहों का उजाला मांगा अपनी आंखों में बस थोड़ी सी ज़िंदगी दे दे सदियों से इस…
जैसे लौट आती हैं चिड़ियां दिनभर की उड़ान के बाद थकी-हारी वापस घोंसलों में जैसे लौट आते हैं बीज ओढ़े…
यात्रा हो या ज़िंदगी कुछ न कुछ छूट ही जाता है पीछे अधजिया सा फिर.. 'जिए' से ज़्यादा 'अधजिए' को…
सुबह हुई सब पंछी जागे, एक चाटुकार गृहस्वामी अर्धांगिनी से यह बोला-बीत गई रात सपन की, नयन खोलो देखो, चाय…
चाहकर भी कोई कवि कभी नहीं लिख सकेगा शोकगीत स्त्री की उन इच्छाओं की मृत्यु पर जो अभिव्यक्त होने से…
चांदनी लहराती हुई ज़मीं पर उतरी और लिपट गई खेत, खलिहान ताल तलैया नदी और समंदर की लहरों से धरती…
मनमुटाव तो शुरुआत से ही रहा इसीलिए खींच दी गई लक्ष्मण-रेखाएं ईश्वर को ढूंढ़ा गया उससे मिन्नतें-मनुहार की फ़ैसला तब…
गर्मी में भी सबसे ज़्यादा खीझ मनुष्य को हुई उसने हवाओं को क़ैद किया बना डाले एसी और.. रही-सही हवा…
वक़्त से लम्हों को ख़रीदने की कोशिश की वह मुस्कुराया बोला क्या क़ीमत दे सकोगे मैं बोला अपने जज़्बात दे…
जी हां, सही समझा आपने आज एक जनवरी है नए साल का पहला दिन है चारों तरफ़ उमंग और उत्साह…