बड़ी चीज़ें कहां मांगता हूं मुझे वक़्त बीतने के बाद भी बस छोटी-छोटी चीज़ों से प्यार है मैं तो बस…
देख लेती हूं तुम्हें ख़्वाब में सोते-सोते चैन मिलता है शब-ए-हिज्र में रोते-रोते इक तेरे ग़म के सिवा और बचा…
अभी वक़्त गुजरा कहां है अभी भोर होते ही आसमां में सुबह की लाली नज़र आती है सुबह टहलने निकले…
प्रेम कथाओं के पृष्ठों पर, जब-जब कहीं निहारा होगा सच मानो मेरी आंखों में केवल चित्र तुम्हारा होगा कभी याद…
यह जो उम्र है वह रोज़ बढ़ रही है एक दिन यह इतनी बड़ी हो जाएगी कि ख़्वाब देखना छोड़…
अब मुझे किसी से शिकवा ना शिकायत है अब मैं अकेला हूं, कितनी बड़ी राहत है थी चोट लगी उनको…
हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे कभी ज़मीन…
किसी रिश्ते में वादे और स्वीकारोक्ति ज़रूरी तो नहीं कई बार बिना आई लव यू कहे भी तो प्यार होता…
कशमकश में थी कि कहूं कैसे मैं मन के जज़्बात को पढ़ा तुमको जब, कि मन मेरा भी बेनकाब हो…
मैं आज भी वही तो कह रहा हूं जो सालों से कह रहा था तुम भी तो सुन रहे हो सालों…