जीवन की आपाधापी में शौक सिंगार का सोया सा फिर पुलक उठा, मुस्काया सखी फिर करवा चौथ आया दीवान के…
दुख में भीगे मन के काग़ज़ सूख गयी कलम की स्याही बीच विरह की लंबी रात है कैसे मिलन के…
क्यों ख़ामोश हो इस कदर इन अधरों को खुलने दो जो एहसास जगे है तुममें उन्हें लबों पर आने दो…
हां मैं प्रेम करता हूं बेइंतहा प्रेम लेकिन मेरा प्रेम तुम्हारे संसार की उस परिधि में नहीं आता जिसे तुम…
राह आसान हो जाएगी सुनो तुम ताउम्र बस ऐसे ही बने रहना मैं भी वक़्त के साथ न बदलने की…
क्या कहें आज क्या माजरा हो गया ज़िंदगी से मेरा वास्ता हो गया इक ख़ुशी क्या मिली मैं निखरती गई…
उम्र मेरे पास थी ही नहीं मैं ज़िंदगी के आसपास ख़्वाब ढूंढ़ता रहा सवाल तो सिर्फ़ इतना था मेरे सीने…
अब अपनी आंखें खोल देना और आईने में ख़ुद को देखना मेरी नज़र से जैसे तुम्हें आईना नहीं मैं देख…
1 वसुदेव चले शिशु शीश धरे, तट तीर-लता हरषाय रहीं। चम से चमके नभ दामिनियाँ, तम चीरत राह दिखाय रहीं।…
आ गए आपकी मेहरबानी हुई दिल की सरगम बजी शादमानी हुई मिल गई प्यार की सल्तनत अब हमें वो भी…