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बोध कथा- घाव (Bodh Katha- Ghav)

शेर ब्राह्मण से बोला, "मित्र तुम एक चाकू लाओ और उसका घाव मेरे शरीर पर कर दो." ब्राह्मण बोला, "कैसी बात करते हो मित्र, तुम मेरे अतिथि हो. भला मैं तुम्हें चाकू का घाव कैसे दे सकता हूं?"

एक बार एक ब्राह्मण की दोस्ती एक शेर से हो गई. दोनों अभिन्न मित्र बन गए.

ब्राह्मण की बेटी की शादी तय हुई. ब्राह्मण ने  शेर से विवाह में आने का आग्रह किया. शेर ने कहा, " मित्र तुम मुझे मत बुलाओ, तुम्हारे अतिथि मुझसे भयभीत हो जाएंगे. तुम्हारे लिए मुश्किल हो जाएगी."

ब्राह्मण नहीं माना. उसने कहा, "मित्र, तुम नहीं आओगे तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा. मैं तुम्हें एक अलग कमरा दे दूंगा और तुम्हारे खाने-पीने का इंतज़ाम भी कर दूंगा. मित्र, तुमको आना ही होगा."

शेर अपने प्रिय मित्र की बात नहीं टाल पाया और वह विवाह में चला गया.

तय अनुसार शेर का प्रबंध एक अलग कमरे में था, जिसे ताला लगाकर बंद कर दिया गया था. समय-समय पर उसमें भोजन आदि भिजवाया जा रहा था.

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विवाह में आए मेहमानों के लिए ये बड़े ही कौतुहल का विषय था. एक मेहमान ने ब्राह्मण से पूछ ही लिया, "भई इसमें कौन है, जिसके लिए भोजन भिजवाते हो…लेकिन ताले में बंद भी है?"

ब्राह्मण ज़ोर से हंसा, उसने कहा, "इसमें बुरे मुंह का मेहमान है, जिससे ताले में रखा है."

विवाह हो गया. सब मेहमान विदा हो गए. फिर अंत में शेर की विदाई की बारी भी आई.

शेर ब्राह्मण से बोला, "मित्र तुम एक चाकू लाओ और उसका घाव मेरे शरीर पर कर दो."

ब्राह्मण बोला, "कैसी बात करते हो मित्र, तुम मेरे अतिथि हो. भला मैं तुम्हें चाकू का घाव कैसे दे सकता हूं?"

शेर बोला, "मित्र तुम्हें मेरी ये बात माननी ही होगी. मुझे मेरी ही अनुमति से तुम्हें चाकू का घाव करना पड़ेगा. फिर तुम पंद्रह दिन बाद मुझसे मिलने भी आना."

शेर के बहुत कहने पर ब्राह्मण ने एक घाव शेर के शरीर पर कर दिया और शेर विदा हो गया.

पंद्रह दिन बाद ब्राह्मण जब शेर से मिलने पहुंचा तो शेर ने मित्र का गले लग कर स्वागत किया. ब्राह्मण ने कहा, "कहो मित्र तुमने मुझे कैसे बुलाया?"

शेर बोला, "मित्र देखो तुमने जो घाव चाकू से दिया था, वो अब पूरी तरह ठीक हो गया है. लेकिन जो तुमने अपने मेहमानों से बुरे मुंह का कहकर मेरा जो परिचय कराया, वो घाव आज भी मेरे दिल में हरा है. बाहरी ज़ख़्म समय से ठीक हो जाते हैं, लेकिन आंतरिक ज़ख़्म समय के मरहम से भी ठीक नहीं होते. मित्र तुम मुझे बुलाते नहीं, लेकिन बुलाया तो ऐसा परिचय नहीं कराते, जो हमारी दोस्ती में दूरी बनाए, गहरे घाव कर जाए."

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ब्राह्मण अपनी कही बात पर शर्मिंदा हुआ. उसने शेर से माफ़ी मांगी. फिर दोनों मित्र गले लग गए.

- रश्मि वैभव गर्ग

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Photo Courtesy: Freepik

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