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दूसरों से उम्मीदें दुख देती हैं
आज मैंने किसी काम को अच्छी तरह किया है, लेकिन कल मैं इसे और बेहतर तरी़के से करूंगा या फिर मैंने 1 महीने में 2 किलो वज़न घटाया है, तो अगले महीने तक 5 किलो घटा लूंगा... किसी ने तारीफ़ नहीं की तो क्या हुआ आज खाना अच्छा बनाया था, कल मैं और वैरायटी बनाऊंगी, उसकी तो झूठ बोलने की आदत ही है, मैं उसे बदल नहीं सकता, मगर मैं अब हमेशा सच बोलूंगा/बोलूंगी... ख़ुद से की गई ऐसी उम्मीदें हमें हमेशा ख़ुश और ज़िंदगी के प्रति सकारात्मक रखती हैं. अतः आप भी दूसरों से तारीफ़ पाने, उन्हें अपने मुताबिक़ बदलने या फिर उनसे कुछ बेहतर पाने की उम्मीद करने की बजाय अपने आप से ही उम्मीद रखें कि कल आप और बेहतर करेंगे. माना ऑफिस में आपने पूरी मेहनत और लगन से कोई प्रोजेक्ट कंप्लीट किया और ये सोचकर बॉस के सामने सीना तान कर खड़े थे कि बॉस तो बस अब आपकी तारीफ़ों के पुल बांध देगा, मगर तारीफ़ करना तो दूर बॉस उल्टा आपके प्रोजेक्ट की ख़ामियां गिनाने लगा, ज़ाहिर है आपको बहुत बुरा लगेगा... लेकिन आप यदि ख़ुद को थोड़ा बदल दें, तो इस दुख से बच सकते हैं. अपना काम ईमानदारी से करें. भले ही बॉस ने आपके काम में ग़लतियां निकाली हों, लेकिन आपने तो ईमानदारी से काम किया था, इसलिए ख़ुद को इसके लिए शाबाशी दें. साथ ही बॉस की बताई ग़लतियों पर ग़ौर करें और ख़ुद से प्रॉमिस करें कि अगली बार आप और अच्छा परफॉर्म करेंगे, मगर ये मत सोचिए कि शायद अगली बार बॉस आपकी तारीफ़ करेंगे. काम मुश्किल ज़रूर है, मगर... अपने परिवार, हमसफ़र, दोस्तों से उम्मीदें लगाना हमारी आदत है, जिसे बदलना आसान नहीं है, मगर ये काम नामुमक़िन भी नहीं है. इसके लिए आपको थोड़ी मेहनत करके ख़ुद को बदलना होगा. इसके लिए हर दिन अपने लिए कोई टारगेट रखें और उसे पूरा करने की कोशिश करें. घर-ऑफिस के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने के साथ ही थोड़ा समय ख़ुद के लिए भी निकालें. ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए उम्मीद ज़रूर करें, मगर अपने आप से न कि हालात और दूसरे व्यक्तियों से, क्योंकि आप ख़ुद से की गई उम्मीदों को तो अपने बल पर पूरा करने की कोशिश कर सकते हैं, मगर दूसरों को इसके लिए विवश नहीं कर सकते.- कंचन सिंह
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