प्रतिबंधित दवाओं पर प्रतिबंध क्यों नहीं...? (Banned Drugs Available In India)
मर्यादा, नियम-क़ायदा, क़ानून, अनुशासन या रूल्स... ये तमाम शब्द काफ़ी सख़्त लगते हैं, लेकिन अक्सर जब इन्हें कार्यान्वित या यूं कहें कि लागू करने की बारी आती है, तो ये बेबस और लाचार लगने लगते हैं... वजह! लालच, मुनाफ़ा, कालाबाज़ारी, भ्रष्टाचार... हर किसी को कम समय में अधिक से अधिक पैसे कमाने हैं, पर वो पैसे किस क़ीमत पर कमाए जा रहे हैं इस पर शायद ही ध्यान जाता है. अगर हम बात करें दवाओं के बिज़नेस की, तो भारत में एफडीसी दवाओं का बिज़नेस लगभग 3000 करोड़ रुपए का है, इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यदि इन दवाओं पर प्रतिबंध लगता है, तो इससे मुनाफ़ा कमानेवालों को कितना नुक़सान हो सकता है. यही कारण है कि दवा कंपनियां नहीं चाहतीं कि नुक़सान करनेवाली ये दवाएं प्रतिबंधित हों और इनका बेहतर विकल्प उन्हें तलाशने में पैसा व समय ख़र्च करना पड़े. इसके अलावा कुछ ऐसी भी दवाएं हैं, जो अपने गंभीर साइड इफेक्ट्स के चलते अन्य देशों में तो प्रतिबंधित हैं, पर भारत में नहीं. क्या हैं वजहें, क्या होती हैं एफडीसी दवाएं और सरकार का क्या रवैया है, इसका जायज़ा लेते हैं. वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने 300 से अधिक दवाओं पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था, जिनमें से अधिकतर एफडीसी दवाएं हैं. क्या होती हैं एफडीसी दवाएं? इसका अर्थ है फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन यानी वे दवाएं, जो दो या अधिक दवाओं के कॉम्बिनेशन से बनी हों. भारत में बिना क्लीनिकल ट्रायल के ये दवाएं बिकती हैं, लेकिन इनका शरीर पर काफ़ी दुष्प्रभाव होता है. अन्य देशों के मुक़ाबले भारत में ही सबसे अधिक ये दवाएं बिकती हैं. डॉक्टर्स कहते हैं कि बैन इन दवाओं पर नहीं, इनके कॉम्बिनेशन पर लगा है यानी यही दवाएं अलग-अलग सॉल्ट में बाज़ार में अभी भी उपलब्ध हैं, पर वो सिंगल सॉल्ट हैं. अमेरिका व अन्य विकसित देशों में एफडीसी दवाएं काफ़ी कम व सीमित मात्रा में ही बिकती हैं, जबकि भारत में ये सबसे अधिक बिकती हैं. अन्य देशों में सख़्त नियम व क़ानून तथा प्रशासन की जागरूकता इसकी बड़ी वजह है. भारत में इन चीज़ों के अभाव के चलते अब तक सब कुछ चल रहा था. हालांकि वर्ष 2016 में भी सरकार ने इन दवाओं को प्रतिबंधित करने का प्रयास किया था, लेकिन दवा कंपनियां इस ़फैसले के ख़िलाफ़ कोर्ट में चली गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में आदेश दिया, जहां दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड ने मामले की समीक्षा की और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी. सरकार ने कमेटियां बनाईं और दवा कंपनियों से जवाब मांगा कि एफडीसी दवाओं की ज़रूरत क्यों है, क्योंकि इनमें ऐसी दवाओं का मिश्रण होता है, जो कई देशों में प्रतिबंधित हैं. दवा कंपनियां इस पर संतोषजनक जवाब नहीं दे पाईं. भारत में अब केंद्र सरकार द्वारा 328 दवाओं को बैन कर दिया गया है. क्यों बनाती हैं कंपनियां ऐसी दवाएं? दवा कंपनियों को इन दवाओं से भारी मुनाफ़ा होता है, क्योंकि इन्हें बनाना सस्ता व आसान होता है. ये पहले से टेस्ट किए गए सॉल्ट पर बनती हैं, ऐसे में नया सॉल्ट ढूंढ़ने की मश़क्क़त व ज़रूरत नहीं पड़ती. साथ ही ये बिकती भी अधिक हैं, क्योंकि ओवर द काउंटर इन्हें ख़रीदा जाता है, जहां डॉक्टरी प्रिस्क्रिप्शन की ज़रूरत नहीं. सख़्त नियमों की कमी भी है एक वजह नियमों की बात की जाए, तो क्लीनिकल टेस्ट व ड्रग कंट्रोलर की मंज़ूरी के बाद ही इन दवाओं को बाज़ार में उतारा जाना चाहिए. परंतु केंद्र से मंज़ूरी न मिलने के डर से ये कंपनियां राज्य सरकार के ड्रग कंट्रोलर से मंज़ूरी ले लेती हैं, क्योंकि हर राज्य के नियम अलग-अलग हैं, जिससे इन्हें परमिशन आसानी से मिल जाती है. हालांकि केंद्र की मंज़ूरी के बिना इनका बाज़ार में खुलेआम बिकना ग़ैरक़ानूनी ही है. बेहद नुक़सानदेह होती है एफडीसी दवाएं आपको अपनी समस्या के लिए एक ही दवा की ज़रूरत है, लेकिन यदि आप एफडीसी दवा लेते हैं, तो बेवजह दूसरे सॉल्ट यानी दवाएं भी आपके शरीर में जा रही हैं. एक दवा से किडनी या लिवर पर यदि प्रभाव पड़ता है, तो अन्य दवाओं के साथ में शरीर में जाने से यह नुक़सान बढ़ जाता है. इसी तरह से यदि आपको दवा से एलर्जी हो रही है, तो यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि कॉम्बिनेशन में इस्तेमाल कौन-सी दवा के कारण ऐसा हो रहा है. एक दवा के साइड इफेक्ट हमें पता होते हैं, इसी तरह से दूसरी दवा के भी साइड इफेक्ट्स की जानकारी होती है, लेकिन इनके मिश्रण से होनेवाले प्रभाव व साइड इफेक्ट्स का डाटा उपलब्ध नहीं होता, जिससे पता नहीं लगाया जा सकता कि इनके क्या साइड इफेक्ट्स हैं. लेकिन स्टडीज़ बताती हैं कि एफडीसी दवाओं को लेने से शरीर को नुक़सान की आशंका लगभग 40 फ़ीसदी बढ़ जाती है. मरीज़ अपने डॉक्टर से पूछें ये सवाल...- आपको जो भी दवाएं लिखी जाती हैं, आपका हक़ है कि अपने डॉक्टर से उसकी पूरी जानकारी लें.
- उनसे पूछ लें कि ये किस तरह की दवाएं हैं?
- क्या इनमें से कोई एफडीसी भी हैं? यदि हां, तो इन्हें लेना कितना ज़रूरी है?
- उनके विकल्प के बारे में पूछें.
- दवाओं के साइड इफेक्ट्स की जानकारी लें.
- आपको किन चीज़ों से एलर्जी है, यह भी डॉक्टर को बता दें.
- यदि दवा से कोई समस्या महसूस हो रही हो, तो फ़ौरन डॉक्टर को बताएं.
- यदि आप किसी अन्य बीमारी के लिए पहले से कोई दवा ले रहे हैं, तो उसके बारे में भी डॉक्टर को बताएं और उससे पूछें कि उस दवा के साथ आप इन दवाओं का सेवन कर सकते हैं या नहीं.
- प्रतिबंधित दवाओं की जानकारी हासिल करें.
- मामूली सिरदर्द व बुख़ार के लिए सिंगल सॉल्टवाली दवा लें. बेतहरीन विकल्प है- पैरासिटामॉल.
- बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक्स न लें.
- डॉक्टर द्वारा बताई दवा का पूरा कोर्स करें.
- दवा लेते समय एक्सपायरी डेट चेक करें.
- दवाओं को स्टोर करने के नियमों का भी सही पालन करें.
- ओवर द काउंटर यानी अपनी मर्ज़ी से बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेना बंद कर दें.
- अधिकांश ग़रीब व सामान्य वर्ग के लोग सीधे केमिस्ट से दवाएं लेते हैं, क्योंकि बड़े डॉक्टर के पास जाना उन्हें महंगा लगता है और उनकी सोच यही होती है कि जितना गली-नुक्कड़ के क्लीनिक में बैठे डॉक्टर को जानकारी है, उतनी तो केमिस्ट को भी होती है, ऐसे में डॉक्टर की फीस व भीड़ आदि से बचने के लिए वो सीधे मेडिकल से दवा लेना पसंद करते हैं.
- ऐसे लोगों को दवाओं के साइड इफेक्ट्स के बारे में पता नहीं होता और न ही वो जानने के इच्छुक होते हैं, उनमें उतनी जागरूकता ही नहीं होती. इसी का फ़ायदा केमिस्ट उठाते हैं. वो भी उन्हें बैन्ड ड्रग्स व दवाओं के साइड इफेक्ट्स के बारे में कुछ नहीं बताते. अपनी बातों से घुमा देते हैं और कहते हैं कि ये दवाएं काफ़ी असरकारी हैं.
- अधिकांश लोगों की यह भी प्रवृत्ति होती है कि उन्हें यदि पता भी हो कि दवा का कुछ साइड इफेक्ट है, तब भी वो जल्दी आराम पाने के लिए उन दवाओं के सेवन से हिचकिचाते नहीं. उनका मक़सद तुरंत आराम पाना होता है.
- जहां तक क़ानून की बात है, तो वो काफ़ी सख़्त है. बैन्ड ड्रग्स को बेचने पर फार्मासिस्ट का लाइसेंस तक रद्द हो सकता है, लेकिन ज़्यादा कमाने की भूख के चलते क़ानून को भी नज़रअंदाज़ करके केमिस्ट ग़लत काम करते हैं.
- कुल मिलाकर सभी चीज़ों के तार मुना़फे से जुड़े हैं. आपको अंदाज़ा भी नहीं कि नशीली दवाओं यानी नार्कोटिक ड्रग्स की बिक्री भी ख़ूब चलती है, जैसे- कोडिन, ट्रामाडोल, लोराज़ेपाम, स्पास्मो प्रॉक्सिवॉन, जो आसानी से मिल जाते हैं और जिनका इस्तेमाल बहुत-से युवा नशे के लिए करते हैं. जो बैन्ड भी हैं, पर उनका व्यापार भी ख़ूब ज़ोरों पर चलता है.
- कुछ ख़ास तरह की बीमारियों में कुछ ड्रग्स ज़रूरी होते हैं, जिसके चलते डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर वो मिल जाते हैं.
- इसके अलावा जिस तरह अन्य चीज़ों की ब्लैक मार्केटिंग होती है, उसी तरह बैन्ड मेडिसिन्स की भी होती है, जिससे वो आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं.
- गीता शर्मा
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