क्या वजह है?
एक्सपर्ट्स की मानें, तो मात्र कुपोषण ही सबसे बड़ी या एकमात्र वजह नहीं है, बल्कि स्वच्छता की कमी भी एक बड़ा कारण है, क्योंकि पूअर हाइजीन पोषण को शरीर में एब्ज़ॉर्ब नहीं होने देती. इसके अलावा जागरूकता की कमी, अशिक्षा और परिवार के सामने ख़ुद को कम महत्व देना यानी पहले परिवार की ख़ुशी, उनका खाना-पीना, ख़ुद के स्वास्थ्य को महत्व नहीं देना भी प्रमुख कारण हैं. सामाजिक व पारिवारिक ढांचा- हमारा समाज आज भी इसी सोच को महत्व देता है कि महिलाओं का परम धर्म है पति, बच्चे व परिवार का ख़्याल रखना.
- इस पूरी सोच में, इस पूरे ढांचे में कहीं भी इस बात या इस ख़्याल तक की जगह नहीं रहती कि महिलाओं को अपने बारे में भी सोचना है
- उनका स्वास्थ्य भी ज़रूरी है, यह उन्हें सिखाया ही नहीं जाता.
- यदि वे अपने बारे में सोचें भी तो इसे स्वार्थ से जोड़ दिया जाता है. पति व बच्चों से पहले खाना खा लेनेवाली महिलाओं को ग़ैरज़िम्मेदार व स्वार्थी करार दिया जाता है.
- बचपन से ही उन्हें यह सीख दी जाती है कि तुम्हारा फ़र्ज़ है परिवार की देख-रेख करना. इस सीख में अपनी देख-रेख या अपना ख़्याल रखने को कहीं भी तवज्जो नहीं दी जाती.
- यही वजह है कि उनकी अपनी सोच भी इसी तरह की हो जाती है. अगर वे ग़लती से भी अपने बारे में सोच लें, तो उन्हें अपराधबोध होने लगता है.
- शादी के बाद पति को भी वे बच्चे की तरह ही पालती हैं. उसकी छोटी-छोटी ज़रूरतों का ख़्याल रखने से लेकर हर बात मानना उसका पत्नी धर्म बन जाता है. लेकिन इस बीच वो जाने-अनजाने ख़ुद के स्वास्थ्य को सबसे अधिक नज़रअंदाज़ करती है.
- वो पुरुष है, तो उसके स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी पत्नी की होती है. उसे पोषक आहार, मनपसंद खाना, उसकी नींद पूरी होना... इस तरह की बातों का ख़्याल रखना ही पत्नी का पहला धर्म है.
- ऐसे में यदि पत्नी बीमार भी हो जाए, तो उसे इस बात की फ़िक्र नहीं रहती कि वो अस्वस्थ है, बल्कि उसे यह लगता है कि पूरा परिवार उसकी बीमारी के कारण परेशान हो रहा है. न कोई ढंग से खा-पी रहा है, न कोई घर का काम ठीक से हो रहा है.
- पत्नी यदि अपने विषय में कुछ कहे भी और अगर वो हाउसवाइफ है तब तो उसे अक्सर यह सुनने को मिलता है कि आख़िर सारा दिन घर में पड़ी रहती हो, तुम्हारे पास काम ही क्या है?
- कुल मिलाकर स्त्री के स्वास्थ्य के महत्व को हमारे यहां सबसे कम महत्व दिया जाता है या फिर कहें कि महत्व दिया ही नहीं जाता.
- जागरूकता की कमी की सबसे बड़ी वजह यही है कि बचपन से ही उनका पालन-पोषण इसी तरह से किया जाता है कि महिलाएं ख़ुद भी अपने स्वास्थ्य को महत्व नहीं देतीं.
- उन्हें यही लगता है कि परिवार व पति की सेवा ही सबसे ज़रूरी है और हां, यदि वे स्वयं गर्भवती हों, तो उन्हें अपने स्वास्थ्य का ख़्याल रखना है, क्योंकि यह आनेवाले बच्चे की सेहत से जुड़ा है.
- लेकिन यदि वे पहले से ही अस्वस्थ हैं, तो ज़ाहिर है मात्र गर्भावस्था के दौरान अपना ख़्याल रखने से भी सब कुछ ठीक नहीं होगा.
- गर्भावस्था के दौरान भी आयरन टैबलेट्स या बैलेंस्ड डायट वो नहीं लेतीं.
- अधिकांश महिलाओं को पोषक आहार के संबंध में जानकारी ही नहीं है और न ही वे इसे महत्व देती हैं.
- हमेशा से पति व बच्चों की लंबी उम्र व सलामती के लिए उन्हें व्रत-उपवास के बहाने भूखा रहने की सीख दी जाती है.
- जो महिलाएं शाकाहारी हैं, उन्हें किस तरह से अपने डायट को बैलेंस करना है, इसकी जानकारी भी नहीं होती.
- बहुत ज़रूरी है कि महिलाओं को जागरूक किया जाए, अपने प्रति संवेदनशील बनाया जाए.
- इसी तरह से अशिक्षा भी बहुत बड़ी वजह है, क्योंकि कम पढ़ी-लिखी महिलाएं तो जागरूकता से लेकर हाइजीन तक के महत्व को नहीं समझ पातीं.
- साफ़-सफ़ाई की कमी किस तरह से लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, यह समझना बेहद ज़रूरी है. लोग कई गंभीर रोगों के शिकार हो सकते हैं, जिससे उनके शरीर में पोषक तत्व ग्रहण व शोषित करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
- भोजन को किस तरह से संतुलित व पोषक बनाया जाए, इसकी जानकारी भी अधिकांश लोगों को नहीं होती.
- आयरन की कमी के चलते होनेवाले एनीमिया की सबसे बड़ी वजह ग़रीबी व कुपोषण है.
- ग़रीबी के चलते लोग ठीक से खाने का जुगाड़ ही नहीं कर पाते, तो पोषक आहार दूर की बात है.
- वहीं उन्हें इन तमाम चीज़ों की जानकारी व महत्व के विषय में भी अंदाज़ा नहीं होता.क्या किया जा सकता है?
- सरकार की ओर से प्रयास ज़रूर किए जा रहे हैं, लेकिन वो नाकाफ़ी हैं.
- द ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट में इस ओर भी इशारा किया गया है कि बेहतर होगा भारत ग़रीब व आर्थिक रूप से कमज़ोर यानी लो इनकम देशों से सीखे, क्योंकि वे हमसे बेहतर तरी़के से इस समस्या को सुलझा पाए हैं.
- ब्राज़ील ने ज़ीरो हंगर स्ट्रैटिजी अपनाई है, जिसमें भोजन का प्रबंधन, छोटे किसानों को मज़बूती प्रदान करना और आय के साधनों को उत्पन्न करने जैसे प्रावधानों पर ज़ोर दिया गया है.
- ब्राज़ील के अलावा पेरू, घाना, वियतनाम जैसे देशों ने भी कुपोषण को तेज़ी से कम करने में सफलता पाई है.
- जहां तक भारत की बात है, तो कई ग़रीब देश भी एनीमिया व कुपोषण की समस्या से हमसे बेहतर तरी़के से लड़ने में कारगर सिद्ध हुए हैं, तो हमें उनसे सीखना होगा.
- भारत में एनीमिया से लड़ने के लिए नेशनल न्यूट्रिशनल एनीमिया प्रोफिलैक्सिस प्रोग्राम (एनएनएपीपी) 1970 से चल रहा है. कुछ वर्ष पहले इस प्रोग्राम के तहत किशोर बच्चों व गर्भवती महिलाओं में आयरन और फोलेट टैबलेट्स बांटने का साप्ताहिक कार्यक्रम शुरू हुआ, लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि मात्र दवाएं उन्हें सौंप देना ही कोई विकल्प नहीं है.
- यह देखना भी ज़रूरी है कि क्या वो ये दवाएं ले रही हैं? एक अन्य सर्वे से पता चला कि बहुत कम महिलाएं ये टैबलेट्स नियमित रूप से लेती हैं.
- इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि आयरन टैबलेट्स के काफ़ी साइड इफेक्ट्स होते हैं, जैसे- उल्टियां व दस्त और ये गर्भावस्था को और मुश्किल बना देते हैं. यही वजह है कि अधिकतर महिलाएं इन्हें लेना छोड़ देती हैं.
- जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें इन साइड इफेक्ट्स से जूझने का बेहतर तरीक़ा या विकल्प बताना चाहिए.
- न स़िर्फ गर्भावस्था में, बल्कि भारतीय स्त्रियां हर वर्ग में कम स्वस्थ पाई गईं. उनका व उनके बच्चों का स्वास्थ्य व वज़न अन्य ग़रीब देशों की स्त्रियों व बच्चों के मुक़ाबले कम पाया गया. भारत में किशोरावस्था में लड़कियों के एनीमिक होने के पीछे प्रमुख वजह यहां की यह संस्कृति बताई गई, जिसमें लिंग के आधार पर हर स्तर पर भेदभाव किया जाता है.
- बेटे को पोषक आहार देना और बेटी के स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ करना हमारे परिवारों में देखा जाता है. स़िर्फ ग़रीब तबके में ही नहीं, पढ़े-लिखे व खाते-पीते घरों में भी इस तरह का लिंग भेद काफ़ी पाया जाता है.
- पोषण की कमी के कारण होनेवाला एनीमिया यानी आयरन और फॉलिक एसिड की कमी से जो एनीमिया होता है, वह परोक्ष या अपरोक्ष रूप से गर्भावस्था के दौरान लगभग 20% मृत्यु के लिए ज़िम्मेदार होता है.
- दवाओं के साथ-साथ पोषक आहार किस तरह से इस समस्या को कम कर सकता है, कौन-कौन से आहार के ज़रिए पोषण पाया जा सकता है, इस तरह की जानकारी भी महिलाओं व उनके परिजनों को भी देनी आवश्यक है.
- गीता शर्मा
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