बादशाह अकबर (Akbar) का दरबार लगा हुआ था लेकिन उस दिन बीरबल (Birbal) दरबार में देर से पहुंचा. बादशाह ने बीरबल से देरी का कारण पूछा तो वह बोला- महाराज, मैं क्या करता, मेरे बच्चे आज ज़िद करने लगे, वो जोर-जोर से रोकर कहने लगे कि मैं दरबार न जाऊं. किसी तरह उन्हें बड़ी मुश्किल से समझा-बुझाकर मैं आ पाया और इसी में मुझे देर हो गई.
बादशाह को बीरबल की बात पर भरोसा नहीं हुआ और उनको लगा कि बीरबल बहानेबाजी कर रहा है. वे बोले- मैं तुमसे सहमत नहीं हूं. बच्चों को समझाना इतना भी मुश्किल नहीं होता, इसमें इतनी देर नहीं लग सकती. थोड़ा डांट-फटकार लगाकर उनको शांत किया जा सकता है.
बीरबल ने कहा- महाराज, भले हाई बच्चे को गुस्सा करना या डपटना तो बहुत सरल है, लेकिन उनको कोई बात समझाना या उनकी ज़िद पूरी करना इतना आसान नहीं.
लेकिन अकबर इस बात से भी सहमत नहीं हुए और उन्होंने कहा अगर तुम मेरे पास कोई बच्चा लेकर आओ, तो मैं तुम्हें दिखा सकता हूं कि कितना आसान है.
बीरबल ने कहा कि महाराज मैं ये सिद्ध कर सकता हूं कि मेरी बात ग़लत नहीं लेकिन इसके लिए आपको मेरी एक बात माननी होगी. मैं खुद ही बच्चा बन जाता हूं और बच्चे जैसा ही व्यवहार करता हूं और आप किसी बड़े या पिता की भांति मुझे संतुष्ट करके या समझाकर दिखाएं.
राजा तैयार हो गए और फिर बीरबल ने छोटे बच्चे की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया. वो छोटे बच्चे की तरह दरबार में यहां-वहां उछलने-कूदने लगा और तरह-तरह के मुंह बनाकर अकबर को चिढ़ाया. वो रोने-चिल्लाने लगा तो राजा ने उसे मनाने के लिए अपनी गोद में बैठा लिया. अकबर की गोद में बैठने के बाद बच्चा बना बीरबल राजा की मूछों से खेलने व उनको छेड़ने लगा.
अब तक बादशाह शांत थे और वो कहने लगे अच्छे बच्चे ऐसा नहीं करते. बीरबल ने अब जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, तो बादशाह ने कुछ मिठाइयां लाने का आदेश दिया, लेकिन बीरबल चुप नहीं हुआ तो बादशाह ने खिलौने मंगवाए. लेकिन बीरबल रोता हुआ बोला- मैं तो गन्ना खाऊंगा. मुझे गन्ना लाकर दो.
अकबर ने गन्ना लाने का आदेश दिया, पर गन्ना देखकर भी बीरबल का रोना नहीं रुका और वो बोला- मुझे इतना बड़ा गन्ना नहीं चाहिए, छोटे-छोटे टुकड़ों में कटा हुआ गन्ना खाना है.
अकबर ने सेवक को बुलाकर गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े करवाए और बोले कि बेटा अब खा लो इसे और चुप हो जाओ, लेकिन बीरबल और जोर से रोता हुआ बोला- नहीं, ये अच्छा नहीं लग रहा, मुझे तो बड़ा गन्ना ही चाहिए. मैं वही खाऊंगा.
बादशाह ने एक साबूत बड़ा गन्ना उठाया और बीरबल को देते हुए बोले- ये लो पूरा गन्ना, अब रोना बंद करो और इसे खा लो.
लेकिन बीरबल अब भी चुप नहीं हुआ और रोता हुआ ही बोला- नहीं, मुझे तो इन छोटे टुकड़ों से ही साबूत गन्ना बनाकर दो.
बादशाह को अब ग़ुस्सा आने लगा था और वो ज़ोर से बोले- कैसी बात करते हो, ये संभव नहीं है. अब जो है इसे खा लो. पर बीरबल नहीं माना और ज़ोर-ज़ोर से रोता रहा.
बादशाह का धैर्य अब जवाब दे चुका था और वो बुरी तरह खीज उठे. उन्होंने कहा- चुप करो वरना मुझे हाथ उठाना पड़ेगा. ये सुन बीरबल ने और तेज़ आवाज़ में रोना शुरू कर दिया. बादशाह ने हार मान ली और वो हारकर अपनी गद्दी पर सिर पकड़कर बैठ गए.
बीरबल समझ चुका था कि अब बादशाह के धीरज का बांध टूट चुका है, इसलिए उसने अभिनय छोड़ दिया और हंसता हुआ बोला- हुज़ूर मुझे मत मारो, बस इतना बताओ कि क्या अब भी आप यही कहेंगे कि बच्चों को समझाना बड़ा आसान है? या फिर अब आपको पता चल गया कि बच्चे की बेतुकी जिदों को शांत करना कितना मुश्किल काम है ?
बादशाह ने बीरबल की बात से सहमती जताई और अपनी गलती स्वीकारी. दोनों अब मुस्कुरा दिए.
सीख: बच्चे। एकड़ जिज्ञासू होते हैं और उनके मासूम सवालों का जवाब देना इतना आसान नहीं. उनको डांट-फटकार या मार की बजाय प्यार से समझाना चाहिए और उनको हल्के में नहीं लेना चाहिए…