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कहानी- स्क्रीन के उस पार 3 (Story Series- Screen Ke Uss Paar 3)

सब कुछ इतना अप्रत्याशित घटा कि अपर्णा कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे पाई. कुछ आंसू पलकों से लुढ़ककर गालों के साथ मन भी भिगो गए. क्या इसीलिए प्रशांत कह रहा था कि तुम्हें यह ट्रिप याद रहेगा. “वाह! जगह वाक़ई बेहद ख़ूबसूरत है और शांत भी, पर यहां मोबाइल टावर ज़रूर लगना चाहिए. फिर देखना यहां का टूरिज़्म बिज़नेस कितना बढ़ेगा.” “फिर तो यहां भी वही दुकानदारी और दुनियादारी शुरू हो जाएगी. यह अलग और शांत जगह है, इसलिए अच्छी है.” प्रशांत ने जवाब दिया. दोनों ने फ्रेश होकर सफ़र की थकान उतारी और लंच किया. इसके बाद प्रशांत ने अपर्णा का हाथ पकड़कर उसे बेड पर बैठाया. अपर्णा को लगा कि प्रशांत शायद शरारत के मूड में है, मगर चेहरे की गंभीरता कुछ और ही बयान कर रही थी. वह अपर्णा के हाथों को चूमता हुआ बोला, “अब मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी है, ध्यान से सुनना.” “अरे यार, डराओ नहीं, बोलो क्या बात है?” अपर्णा थोड़ी घबरा गई. “तो सुनो, मैं तुम्हें इस जगह एक ख़ास कारण से लाया हूं. पिछले चार महीनों से देख रहा हूं कि जिस उद्देश्य को लेकर तुम लगी-लगाई नौकरी छोड़ मेरे साथ आई थी, उसे हाशिए पर छोड़कर बहुत-सी बेवजह बातों में उलझ गई हो. हर व़क्त मोबाइल हाथ में लेकर स्क्रोलिंग करते रहना, इस ऐप से उस ऐप में जंप करते रहना, बस यही तुम्हारा लक्ष्य रह गया है. सोशल मीडिया के आभासी जाल में तुमने ख़ुद को ़कैद कर लिया है और उससे निकलना तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी हो चुका है. मुझे मालूम था कि यहां मोबाइल नेटवर्क नहीं है, इसीलिए मैं तुम्हें यहां लाया हूं, ताकि कुछ दिनों के लिए ही सही, मगर अकेले रहकर तुम सोच सको कि तुम अपनी लाइफ के साथ क्या कर रही हो?” प्रशांत की बात सुन अपर्णा जड़ रह गई. जो कुछ सुन रही थी, वह उसकी कल्पना से परे था. घर से इतनी दूर, इस सुनसान हिल स्टेशन पर प्रशांत उसे घुमाने नहीं, बल्कि आईना दिखाने लाया था. “तुम बहुत अच्छी लेखिका हो अपर्णा, पर पहले मुंबई में व्यस्तता की आड़ लेकर लिखना टालती रही और यहां भरपूर समय होने के बावजूद तुम कुछ नहीं कर रही हो...” सुनकर अपर्णा की झुकी नज़रें डबडबा गई. ज़रा बताओ तो, झारखंड आने के बाद कितनी बार तुमने अपनी उस नोटपैड को खोलकर देखा, जिसमें तुमने कहानियों के वन लाइनर नोट्स बनाए हुए थे. कितनी बार उस डायरी को छुआ, जो न जाने कितनी आधी-अधूरी रचनाओं से भरी पड़ी है?” बात सच ही थी. वे कहां रखे हैं, अपर्णा को यह याद भी नहीं था. यह भी पढ़ेपहचानें अपने रिलेशनशिप की केमेस्ट्री (Compatibility And Chemistry In Relationships ) “पता है अपर्णा, ईश्‍वर हम सभी को कोई-न-कोई ख़ूबी देकर संसार में भेजता है, ताकि हम उस ख़ूबी को व्यक्त कर उसकी दुनिया को सुंदर बनाएं और हम तभी सुखी और संतुष्ट हो पाते हैं, जब हम ऐसा करते हैं, वरना ज़िंदगी में एक अधूरापन-सा सालता रहता है. तुम्हारी वह ख़ूबी तुम्हारा लेखन है. तुम्हारा जीवन तभी सार्थक होगा, जब तुम भरपूर लिखोगी और अच्छा लिखोगी. इन सात दिनों में तुम्हें अकेले रहकर इसी बात पर चिंतन करना है कि तुमसे कहां ग़लतियां हो रही हैं, उन ग़लतियों को पीछे छोड़कर नई शुरुआत करो.” कहते हुए प्रशांत ने उसका नोटपैड और डायरी उसके हाथों में थमा दी. “तो आज से ही काम पर लग जाओ और हां, मैं तुम्हारे साथ यहां नहीं रहूंगा. यह जंग तुम्हें अकेले ही लड़नी और जीतनी है.” सुनकर अपर्णा घबरा गई, “यह क्या कह रहे हो, मैं यहां अकेले कैसे रहूंगी?” “देखो, मैं कहीं दूर नहीं जा रहा हूं. तुम्हारे आसपास ही रहूंगा, मगर साथ नहीं. यह गेस्ट हाउस मेरे एक कलीग के पिता का है. तुम्हें यहां कोई तकलीफ़ नहीं होगी. मुझे पूरा यक़ीन है कि सात दिन बाद जब मैं तुमसे मिलूंगा, तो तुम्हारी कलम से नई रचनाएं जन्म ले चुकी होंगी. चलो अब मैं चलता हूं.” “प्रशांत, रुक जाओ प्लीज़.” उदास अपर्णा ने जाते हुए प्रशांत का हाथ थाम लिया. प्रशांत अपर्णा के माथे को चूमते हुए बोला, “विश्‍वास करो जान, इस समय यह एकांत तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी है. इसमें ना वास्तविक दुनिया का दख़ल होगा, ना आभासी दुनिया का. इस एकांत में तुमको बस ख़ुद के साथ रहना है. ख़ुद से बार-बार पूछना है कि कैसी हो अपर्णा? कैसी लाइफ चल रही है, जो करना चाहती थी, क्या कर पाई? ज़िंदगी को कुछ मायने दे पाई या उसे बस यूं ही खाने, पीने, सोने और फोन में जाया कर रही हो? देखना, तुम्हें तुम्हारे भीतर से ही जवाब मिलेंगे.” कहकर अपर्णा को नि:शब्द बैठा छोड़ प्रशांत वहां से चला गया. सब कुछ इतना अप्रत्याशित घटा कि अपर्णा कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे पाई. कुछ आंसू पलकों से लुढ़ककर गालों के साथ मन भी भिगो गए. क्या इसीलिए प्रशांत कह रहा था कि तुम्हें यह ट्रिप याद रहेगा. उसने कहीं पढ़ा था कि अपनी बुरी लतों पर जीत हासिल करना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है, लेकिन यदि पहला कदम सही पड़ जाए, तो रास्ता आसान हो जाता है और यह पहला कदम उसे उठाना था वह भी इन्हीं सात दिनों में. ‘मैं ऐसा करूंगी, अपने लिए ना सही, मगर तुम्हारे लिए ज़रूर करूंगी’ उसने मन ही मन निश्‍चय किया. अपर्णा को एक दिन संभलने में लगा, मगर जब अगली सुबह सूरज तय समय पर खिड़की से झांक रहा था, तो उसने देखा अपर्णा का जान से प्यारा मोबाइल हैंडबैग के अंदर पड़ा अपनी क़िस्मत पर रो रहा है और उसके हाथों में एक डायरी इतरा रही है. उसने डायरी खोली और लिखने बैठ गई. यह भी पढ़ेमास्टरपीस हैं आप (You Are Masterpiece) एक ऐसी परी की कहानी, जो अपनी नादानी से एक स्क्रीन में कैद होकर बुत बन गई थी, फिर उसका प्रेमी राजकुमार उसे खोजता हुआ आया. अपनी सूझबूझ से उसने स्क्रीन का तिलिस्म तोड़ा और उसे बाहर निकाल ज़िंदा किया. फिर उसे स़फेद घोड़े पर बैठाकर उस जगह ले गया, जहां स्क्रीन के पार खड़ी हसीन ज़िंदगी बांहें फैलाए उसका स्वागत कर रही थी. Deepti Mittal     दीप्ति मित्तल

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