
मानसी की संघर्षपूर्ण यात्रा...
* मानसी जोशी को बचपन से ही बैडमिंटन खेलने का शौक था. * उनके पिता मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में कार्यरत हैं. * यहीं से मानसी के बैैडमिंटन खेल में निखार आने लगा और उन्होंने स्कूल व ज़िला स्तर पर कई मेडल्स जीते. * दुखद रहा साल 2011, जब उन्होंने एक रोड एक्सीडेंट में अपना बायां पैर खो दिया और दो महीने तक हॉस्पिटल में रहीं. * लेकिन इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर तीस वर्षीया मानसी ने हार नहीं मानी और चार साल बाद पी. गोपीचंद एकेडमी ज्वाइन किया. * पांच साल तक वे कड़ी मेहनत के साथ प्रैक्टिस करती रहीं और खेलती रहीं. * मैच में अपना सौ प्रतिशत देने के लिए उन्होंने अपना वज़न कम किया. बॉडी की फैक्सिबिलिटी व स्ट्रैचिंग पर अधिक ध्यान दिया. * मुश्किलों से भरी उनकी ट्रेनिंग में वे एक दिन में तीन सेशन ट्रेनिंग करती थीं. * वे फिटनेस पर भी बहुत ध्यान देती थीं. जिम में हफ़्ते में छह दिन ख़ूब वर्कआउट करतीं और पसीना बहाती थीं. * यूं तो अब मानसी चलने-फिरने के लिए नए वॉकिंग प्रोसथेसिस सॉकेट का इस्तेमाल कर रही हैं, पर इसके पहले वे लगभग पांच साल तक एक ही सॉकेट का उपयोग कर रही थीं. इसी वजह से खेलने व वर्कआउट करते समय उनकी स्पीड अधिक नहीं हो पाती थी. * आख़िरकार वे विश्व पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप के महिला एकल एसएल-3 के फाइनल में पहुंचकर 21-12, 21-7 से तीन बार की विश्व चैंपियन पारुल परमार को हराकर विश्व विजेता बनीं. * एसएल 3 कैटेगरी में वे प्लेयर शामिल होते हैं, जिनके एक या दोनों लोअर लिंब्स काम नहीं करते और जिन्हें चलते या दौड़ते समय बैलेंस बनाने में भी द़िक्क़तों का सामना करना पड़ता है. * प्रमोद भगत व मनोज सरकार ने पुरुषों के डबल्स में एसएल 3-4 कैटेगरी में हमवतन तरुण ढिल्लों व नितेश कुमार को 14-21, 21-15, 21-16 से हराकर गोल्ड जीता. * प्रमोद भगत ने मेल सिंगल एसएल 3 के फाइनल में इंग्लैंड के डेनियल बैथल को 6-21, 21-14, 21-5 से हराकर गोल्ड पर कब्ज़ा जमाया. इसके अलावा उन्होंने पुरुष युगल एसएल 3-4 में भी मेडल जीते. * तरुण कोना को पुरुष सिंगल के एसएल 4 के फाइनल में फ्रांस के लुकास मजूर से हारकर रजत से ही संतोष करना पड़ा.
- ऊषा गुप्ता
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