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...क्योंकि ये पुरुषों के हक़ की बात है महिलाओं के शोषण के बारे में हम हमेशा से पढ़ते-सुनते आए हैं, लेकिन पुरुषों के शोषण के बारे में आमतौर पर बात नहीं की जाती. पुरुषों के बारे में ये मान लिया जाता है कि वो शारीरिक रूप से महिलाओं से शक्तिशाली हैं, इसलिए उनका शोषण नहीं हो सकता, लेकिन ये सच नहीं है. महिलाएं भी पुरुषों को प्रताड़ित करती हैं और अब ऐसे मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. महिलाओं द्वारा पुरुषों को प्रताड़ित किए जाने के केसेस की बढ़ती तादाद को देखते हुए अब ये ज़रूरी हो गया है कि पुरुषों के हक़ की बात भी की जाए. महिलाओं द्वारा पुरुषों की शिकायत दर्ज किए जाने पर अक्सर क़ानूनी प्रक्रिया पूरी किए बिना ही पुरुषों को दोषी मान लिया जाता है, जिसके कारण निम्न समस्याएं सामने आती हैं: * पुरुषों के शोषण के मामले पुलिस तक बहुत कम पहुंच पाते हैं, क्योंकि पुरुष इस बात से डरते हैं कि उनकी बात की सुनवाई नहीं होगी, इसलिए वो क़ानून की मदद लेने से डरते हैं. * महिला यदि किसी पुरुष पर झूठा आरोप भी लगा दे कि उसने महिला का बलात्कार किया है, तो बिना जांच-पड़ताल या दोष साबित हुए ही पुरुष को दोषी मान लिया जाता है. * कई महिलाएं रेप का आरोप लगाने की धमकी देकर पुरुषों को ब्लैकमेल करती हैं और उनसे मोटी रक़म वसूलती हैं. क़ानून महिलाओं की ही तरफ़दारी करता है, इसलिए पुरुष क़ानून का सहारा नहीं लेते और चुपचाप ऐसी महिलाओं की ज़्यादती बर्दाश्त करते हैं. * झूठा आरोप लगने पर पुरुष की इज़्ज़त, पैसा, समय, नौकरी, शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक और सामाजिक जीवन... सब कुछ तबाह हो जाता है. ऐसी स्थिति में कई पुरुष आत्महत्या तक कर लेते हैं. * रेप का केस दर्ज करानेवाली महिला का नाम तो गोपनीय रखा जाता है, लेकिन पुरुष का नाम सार्वजनिक कर दिया जाता है. बाद में आरोप सिद्ध न होने के बाद भी पुरुष को सामाजिक अवहेलना का सामना करना ही पड़ता है.यह भी पढ़ें: जब हो सात फेरों में हेरा-फेरी (Matrimonial Frauds In Hindu Marriages In India)
क़ानून का दुरुपयोग कर रही हैं महिलाएं महिलाओं के हक़ में बने क़ानून का ख़ुद महिलाएं ही दुरुपयोग करने लगी हैं. कई महिलाएं क़ानून का धड़ल्ले से ग़लत इस्तेमाल करके पुरुषों को प्रताड़ित कर रही हैं और उनसे पैसे भी वसूल रही हैं. * कई महिलाएं धारा 498 ए का इस्तेमाल अपने पति व ससुरालवालों को प्रताड़ित करने के लिए करती हैं. ऐसी महिलाएं अपने शादीशुदा रिश्ते से मुक्त होने, बदले की भावना, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर या मुआवज़े के पैसे ऐंठने के लिए धारा 498 ए का ग़लत इस्तेमाल करती हैं. इस क़ानून के बढ़ते दुुरुपयोग पर कई बार सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है. * दहेज हत्या के मामले में भी पुरुषों के सिर पर तलवार लटकी रहती है. शादी के सात साल के भीतर यदि किसी शादीशुदा पुरुष की पत्नी की अप्राकृतिक तरी़के से मौत हो जाती है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत उसे दोषी करार दिया जा सकता है. ऐसे कई मामलों में निर्दोष होते हुए भी पुरुषों पर दहेज हत्या के आरोप लगाकर उनकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी जाती है.यह भी पढ़ें: राइट टु प्राइवेसी के बारे में कितना जानते हैं आप? (All You Need To Know About Right To Privacy In India)
मेन टू मूवमेंट आज की ज़रूरत है - एक्टर, सिंगर करण ओबेरॉय मैं ख़ुशनसीब हूं कि मुझ पर लगाए गए बलात्कार और वसूली के झूठे आरोप के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए मेरी बहन गुरबानी, मेरे फ्रेंड्स, एक्टर सचिन श्रॉफ, पूजा बेदी और हमारे बैंड के सभी सदस्य आगे आए और उन्होंने मुझे इंसाफ़ दिलाने के लिए एक साथ मिलकर आवाज़ उठाई, लेकिन हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता है. महिलाओं द्वारा लगाए गए झूठे आरोप के कारण कई पुरुषों की ज़िंदगी बर्बाद हो रही है. जब मैं तलोजा जेल (नवी मुंबई) में था, तब मैंने देखा कि स़िर्फ तलोजा जेल में ही मेरे जैसे 600 मामले हैं, तो ज़रा सोचिए कि पूरे देश में ऐसे कितने मामले होंगे. इसीलिए हमने मेन टू मूवमेंट की शुरुआत की है. ये आज की ज़रूरत है, वरना न जाने कितने निर्दोष पुरुष यूं ही महिलाओं द्वारा लगाए गए झूठे आरोप की सज़ा भुगतते रहेंगे. अधिकतर महिलाएं आज भी अपने अधिकार नहीं जानतीं- एडवोकेट व सोशल एक्टिविस्ट आभा सिंह, पूर्व ब्यूरोक्रेट एडवोकेट आभा सिंह कहती हैं, पुरुषों को वही महिलाएं प्रताड़ित करती हैं, जो ख़ुद पावरफुल होती हैं और अपने अधिकार जानती हैं. पुरुषों को प्रताड़ित करने के मामले बड़े शहरों में ज़्यादा पाए जाते हैं, छोटे शहरों की महिलाओं को अपने अधिकारों की ही जानकारी नहीं होती, तो वो पुरुषों को क्या प्रताड़ित करेंगी. आज भी 24 घंटे में 21 महिलाएं दहेज के लिए जलाई जाती हैं. साल में यदि तीन हज़ार से ज़्यादा महिलाएं मर रही हैं और एफआरआई में मौत की वजह किचन फायर (रसोई में आग लग जाने से) लिखी जाती है, तो इसे क्या कहेंगे? किचन फायर से इतनी भारी तादाद में महिलाओं की मौत स़िर्फ भारत में होती है, दुनिया के अन्य किसी भी देश में ऐसा नहीं होता है. यदि सौ प्रतिशत मामलों में क़ानून का दुरुपयोग हो रहा है, तो महिलाओं द्वारा पुरुषों को प्रताड़ित किए जानेवाले मामलों की संख्या आठ से दस प्रतिशत ही है, बाकी केसेस में महिलाओं को ही तकलीफ़ उठानी पड़ती है. गरीब महिलाओं को न अपने हक़ पता होते हैं और न ही उनके पास इतने पैसे होते हैं कि वो वकील रखकर केस लड़ सकें. ऐसे केसेस स़िर्फ बड़े तबके में पाए जाते हैं. प्रताड़ित पुरुषों के अधिकतर मामले सामने नहीं आते - काउंसलर, साइकोथेरेपिस्ट काव्यल सेदानी हम सभी में एक फेमिनिन पार्ट होता है और एक मैस्न्युलन पार्ट. ऐसे में स्त्री-पुरुष में से जिसका, जो पार्ट जितना स्ट्रॉन्ग होता है, वो उतना स्ट्रॉन्ग या डेलिकेट होता है. जिन महिलाओं का मैस्न्युलन पार्ट स्ट्रॉन्ग होता है, वो टॉम बॉय की तरह व्यवहार करती हैं. ऐसी महिलाएं डॉमिनेटिंग और मुखर होती हैं. इसी तरह कई पुरुषों का फेमिनिन पार्ट स्ट्रॉन्ग होता है, इसलिए उनका व्यवहार बहुत सॉफ्ट होता है. ऐसे पुरुष अपनी बात मनवाने के लिए किसी पर दबाव नहीं डाल पाते और न ही किसी से झगड़ते हैं. ऐसे भावुक पुरुष ही अक्सर प्रताड़ित होते हैं. करण ओबेरॉय के मामले में तो सच्चाई सबके सामने आ गई, लेकिन जो पुरुष अपनी बात किसी से कह नहीं पाते, उनकी बात कभी सामने नहीं आ पाती. ऐसे लोग शोषण के शिकार होते चले जाते हैं. मी टू मूवमेंट की तरह ही मेन टू मूवमेंट की भी ज़रूरत है, क्योंकि कई महिलाएं क़ानून का ग़लत इस्तेमाल करके पुरुषों की ज़िंदगी बर्बाद कर देती हैं, झूठे आरोप लगाकर उनका फ़ायदा उठाती हैं, ऐसी महिलाओं का एक्सपोज़ होना ज़रूरी है.यह भी पढ़ें: घर को मकां बनाते चले गए… रिश्ते छूटते चले गए… (Home And Family- How To Move From Conflict To Harmony)
#MeToo के बाद अब #MenToo एक्टर, सिंगर करण ओबेरॉय के केस से मेन टू मूवमेंट की शुरुआत हुई, जिसमें पुरुषों के ख़िलाफ़ झूठा आरोप लगाए जाने पर उनके हक़ के लिए आवाज़ उठाई जाएगी. महिलाओं के लिए शुरू हुए मी टू मूवमेंट की तरह ही पुरुषों के हक़ के लिए अब मेन टू मूवमेंट की शुरुआत हो गई है. पिछले साल मी टू अभियान बहुत ज़ोर-शोर से चलाया गया था, जिसमें दुनियाभर की महिलाओं ने उनके साथ हुए यौन अपराध पर खुलकर बात की थी. इसी तर्ज़ पर इस साल मेन टू अभियान चल रहा है, जिसमें पुरुष अपनी बात खुलकर कह रहे हैं. - कमला बडोनी
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