कहानी- बुढ़ापे का जन्मदिन (Story- Budhape Ka Janamdin)
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“बहुत अच्छी बात है आंटी. हम यही तो चाहते हैं कि आप लोग जीवन के हर पल का आनंद लें.” सभी महिलाएं चली गईं, रमाजी ने अंजना और सुधा को गले लगा लिया और बोलीं, “बु़ढ़ापे का जन्मदिन इतना बढ़िया रहेगा, मैंने तो कभी सोचा ही न था.” वहीं खड़े केशवजी, महेश और विनय सहित सब उनकी बात पर ज़ोर से हंस पड़े.
महेश के ऑफिस से आने पर कंगना उत्साहपूर्वक कहने लगी, “अच्छा है, कल शनिवार है, सुबह ही चलकर मां को सरप्राइज़ देंगे. महेश ने भी ख़ुश होकर कहा, “हां, हमेशा मां ने ही हमारा जन्मदिन ख़ूब उत्साह से मनाया है. अब हमारी बारी है.”
“महेश, क्यों न इस बार कुछ अलग करें. हमेशा फोन पर बधाई देकर या मां के लिए एक साड़ी ले जाकर दे देते हैं, बस हो जाता है मां का बर्थडे. दो दिन की छुट्टी है, चलो न, मां के लिए कुछ नया करते हैं.”
“ठीक है, सोचो कुछ.” महेश ने कहा, “ऐसा करो, सुधा दीदी से भी बात कर लो.”
“हां, यह ठीक रहेगा.” सुधा महेश से तीन साल बड़ी थी. अंजना ने तुरंत सुधा को फोन किया. अपनी इच्छा बताई, सुधा भी फ़ौरन तैयार हो गई. बोली, “बताओ, क्या करना है?”
“दीदी, पहले तो सब एक साथ मां के पास पहुंचते हैं. फिर उसके बाद कुछ प्लानिंग करते हैं. सरप्राइज़ पार्टी रखते हैं, बड़ा मज़ा आएगा.”
“हां, ठीक हैं, मिलते हैं कल सुबह.”
रमाजी का जन्मदिन था, बहू अंजना प्रोग्राम बनाने में जुट गई थी. रमाजी अपने पति केशवजी के साथ मेरठ में रहती थीं. महेश की गुड़गांव में पोस्टिंग थी. वह इंजीनियर था. सुधा अपने पति विनय और दो बच्चे समृद्धि और सार्थक के साथ पानीपत में रहती थी. अंजना ने रमाजी को फोन किया.
“मां, कैसी हैं आप, क्या हो रहा है?”
“कुछ नहीं, तुम लोग सुनाओ कैसे हो?
“हम सब ठीक हैं मां, पापा कहां हैं? उनका फोन नहीं लग रहा है.”
“यही हैं, बात करवाऊं?”
“हां मां,” अंजना ने केशवजी से कहा, “पापा, मां को मत बताना. कल सुबह हम सब पहुंच रहे हैं. कल पार्टी करेंगे. मां की फ्रेंड्स को भी बुलाएंगे.” केशवजी हां, हूं में बातें करते रहे.
रमाजी साथ ही बैठी थीं. अपनी तरफ़ से कुछ ख़ास बात वे कर नहीं पाए.
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सभी लोग शनिवार की सुबह दस बजे पहुंच गए. सबको देखकर रमाजी बहुत ख़ुश हुईं. बर्थडे की बधाइयां पाकर बोलीं, “तुम लोग इस उम्र में मुझे सरप्राइज़ दे रहे हो?” ख़ूब हंसी-मज़ाक हुआ. फिर रमाजी ने कहा, “चलो, एक सरप्राइज़ मैं भी दे देती हूं. तुम सब अच्छे समय पर आए. मैंने भी आज अपनी सहेलियों को बुलाया है.”
सबको झटका-सा लगा. बोले, “अरे, बर्थडे की पार्टी?”
“नहीं भई, घर पर ही चार बजे भजन-कीर्तन रखा है.” एक और झटका लगा सबको.
अंजना ने कहा, “भजन-कीर्तन? आज जन्मदिन पर?”
“और क्या, बुढ़ापे का जन्मदिन है, कीर्तन ही हो सकता है, छप्पन साल की हो गई मैं आज.”
सबके चेहरे लटक गए. एक मायूसी-सी छा गई. सबने ठंडी सांस भरी और चुपचाप बैठ गए. केशवजी ने कहा, “तुमने तो मुझे भी नहीं बताया?”
“आपको कौन-सा इन कीर्तनों में रुचि है? बताकर भी क्या होता. हमेशा ग़ायब हो जाते हो कीर्तन के समय. रिटायर होनेवाले हो, यह नहीं कि ईश्वर में कुछ ध्यान लगाएं.”
रमाजी को हमेशा की तरह शुरू होते देख केशवजी ने कहा, “नहीं भई, आज ग़ायब नहीं होऊंगा, बच्चे आए हैं और तुम्हारा जन्मदिन भी है.” सब मुस्कुराए. अंजना ने कहा, “पापा, आप मां के लिए क्या गिफ्ट लाए?” केशवजी अंदर गए और साड़ी लाकर रमाजी को दी. इस उम्र में भी शर्मीली आभा छा गई रमाजी के चेहरे पर. अंजना और सुधा ने भी अपनी लाई हुई साड़ियां और शॉल उन्हें दीं.
रमाजी बहुत ख़ुश हुईं. फिर सब किचन में लग गईं. दोपहर में जब रमाजी थोड़ी देर आराम करने लेटीं, तब एक कमरे में सब एक साथ बैठ गए. अंजना ने धीमे स्वर में कहा,
“मेरा तो सारा प्रोग्राम चौपट कर दिया मां के कीर्तन ने. सोचा था मां की सहेलियों को बुलाएंगे और पार्टी करेंगे, पर कैसे कुछ अलग करें अब?” फिर अचानक कहा, “क्यों न इस कीर्तन को ही पार्टी में बदल दें?”
सुधा ने कहा, “वो कैसे?”
समृद्धि और सार्थक बोले, “हां मामीजी, कुछ तो इंट्रेस्टिंग सोचिए. हम लोग कुछ गेम्स और बढ़िया स्नैक्स का इंतज़ाम करते हैं.”
सुधा ने कहा, “इतनी जल्दी कैसे होगा सब?”
महेश और विनय ने कहा, “इसकी चिंता मत करो. हम तीनों बाज़ार से सब तैयार स्नैक्स ले आएंगे, क्यों पापा?”
“हां, ठीक है, पर तुम्हारी मां की कोई सहेली डायबिटीज़ की मरीज़ है, तो किसी को आर्थराइटिस है. वो कहां खाएंगी या खेलेंगी.”
अंजना ने बहुत उत्साहित स्वर में कहा, “अब आप लोग सब मुझ पर छोड़ दीजिए.”
सुधा ने कहा, “अरे, कुछ बताओ तो, क्या सोचा है?”
“दीदी, आप देखती जाओ बस.”
तीन बजे से रमाजी कीर्तन में आनेवाली अपनी सहेलियों के बैठने की व्यवस्था में लग गईं. सब उनका हाथ बंटा रहे थे. रमाजी ने केशवजी की लाई हुई साड़ी ही पहनी, जिसमें वे बहुत अच्छी लग रही थीं. केशवजी, महेश और विनय चुपचाप अंजना की दी हुई लिस्ट लेकर बाज़ार निकल गए. रमाजी ने कहा, “देखा, फिर ग़ायब हो गए कीर्तन के समय.” अंजना और सुधा को हंसी आ गई.
धीरे-धीरे उनकी सब सहेलियां आती गईं और कीर्तन शुरू हो गया. दो-तीन सहेलियों के साथ उनकी बहुएं भी थीं, जो अंजना की हमउम्र थीं. अंजना और सुधा सबकी आवभगत में लग गईं. उनकी किसी भी सहेली को नहीं पता था कि आज रमाजी का जन्मदिन है. डेढ़ घंटा कीर्तन चला. सब प्रसाद लेकर उठने की तैयारी करने लगीं, तो अंजना ने कहा, “आप सबको बताना चाहती हूं कि आज मां का जन्मदिन है. भजन-कीर्तन तो हो गया, पर अब और भी कुछ प्रोग्राम है आप लोगों के लिए.”
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सब चौंकीं, फिर हंस पड़ी और ‘हैप्पी बर्थडे’ की आवाज़ों से ड्रॉइंगरूम गूंज उठा. रमाजी शरमाई-सी बहू-बेटी को स्नेह भरी नज़रों से घूर रही थीं. इतने में केशवजी बच्चों के साथ सामान से लदे-फदे पहुंच गए. रमाजी हैरान-सी उन्हें देखती रहीं. कई तरह की मिठाइयां, स्वादिष्ट स्नैक्स से प्लेटे सज गईं. केक लाते हुए अंजना ने कहा, “आइए मां, पहले केक काटिए.”
रमाजी ने कहा, “केक? मैं?” इस प्रोग्राम पर उनकी सहेलियां हैरान थीं और बहुएं तो बहुत ख़ुश थीं. सासू मांओं के साथ मजबूरी में कीर्तन में आने के बाद कुछ तो मनोरंजन हुआ. केक काटा गया. खाना-पीना हुआ, फिर अंजना बोली, “अब कुछ गेम्स भी खेलेंगे.”
उर्मिलाजी बोलीं, “अरे, ये कोई उम्र है गेम खेलने की? क्या बात करती हो बहू!”
“नहीं आंटी, भागना-दौड़ना नहीं है. बैठे-बैठे ही खेलना है.”
“क्या खेलना है?”
“आंटी, अंताक्षरी.” आशा की बहू सुमन बहुत ख़ुश हो गई, बोली, “मां, खेलो न, मज़ा आएगा.” अंजना ने सबको गोल घेरा बनाकर बैठा दिया. केशवजी, महेश और विनय नाश्ता-पानी के बाद बाहर टहलने चले गए, जिससे सब महिलाएं फ्री होकर खेलें. उन्हें कोई संकोच न हो. अंताक्षरी शुरू हुई, तो सब धीरे-धीरे अपनी उम्र के खोल से बाहर निकल आईं. फिर तो सुर-ताल को ताक पर रख हर कोई अपने-अपने राग अलापने लगा और पुराने हिंदी गानों का एक अलग ही ख़ूबसूरत समां बंध गया. समृद्धि और सार्थक ने तो वे गाने कभी सुने ही नहीं थे, लेकिन नानी को ख़ुश देखकर वे भी ख़ुश थे. तनु इधर-उधर बीच में घूमती रही.
अंताक्षरी में आख़िर तक राधाजी डटी रहीं. अंजना ने उन्हें एक गिफ्ट दिया फिर कहा, “अब हाउजी गेम खेलेंगे.” कुछ ने उत्साहित होकर कहा, “हां, हां बिल्कुल,” कुछ ने कहा कि उन्हें खेलना नहीं आता, तो अंजना और सुधा ने जल्दी से सबको समझा दिया, सब ख़ुश थीं और बिना भागदौड़ के यह खेल भी हो जाएगा. सब मन से खेलीं. लाइन और हाउस होने पर सबको छोटे-मोटे गिफ्ट्स भी मिलते रहे. सब पूरे जोश में थीं. सात बज चुके थे. समय का किसी को होश नहीं था. जब घरों से फोन पर फोन आने शुरू हुए, तो सबको जाने की सुध आई.
जब सब जाने लगीं, तो अंजना ने सबको गिफ्ट का छोटा पैकेट दिया. सबने अंजना और सुधा को ढेरों आशीर्वाद दिए. रमाजी बहुत ख़ुश थीं आज. जाते-जाते उर्मिलाजी ने कुछ झिझकते हुए कहा, “अगले महीने 10 तारीख़ को मेरे घर कीर्तन रख लेंगे.” रमाजी ने कहा, “कुछ ख़ास है क्या?” उर्मिलाजी शरमाते हुए बोलीं, “वो मेरा जन्मदिन है न. ऐसे ही कुछ अलग ढंग से कर लेंगे.” सभी ज़ोर से हंस पड़े, तो वे सकुचा गईं. अंजना ने कहा, “बहुत अच्छी बात है आंटी. हम यही तो चाहते हैं कि आप लोग जीवन के हर पल का आनंद लें.” सब चली गईं, रमाजी ने अंजना और सुधा को गले लगा लिया और बोलीं, “बु़ढ़ापे का जन्मदिन इतना बढ़िया रहेगा, मैंने तो कभी सोचा ही न था.” वहीं खड़े केशवजी, महेश और विनय सहित सब उनकी बात पर ज़ोर से हंस पड़े.
पूनम अहमद