कहानी- प्रायश्चित की शुरुआत 2 (Story Series- Prayshchit Ki Shuruvat 2)
“आपके साथ जाकर मुझे अपनी ज़िंदगी और तबाह नहीं करनी. मैं अपने हाल में ख़ुश हूं. पहले आपने पापा की ज़िंदगी तबाह की, फिर मेरी.” सुभद्रा इस आक्षेप से तिलमिला गई. ग़ुस्से से तमतमाती वह घर से निकल गई. सोसायटी की मीटिंग में जब उस पर ढंग से काम नहीं करने का आरोप लगाया गया तो वह आवेश में आ गई और इसी दौरान उसकी तबियत बिगड़ गई. तुरंत उसे अस्पताल ले जाया गया और घर सूचना भिजवाई गई. डॉक्टर के यह बताने पर कि सुभद्रा को दिल का गंभीर दौरा पड़ा है, निखिल और मिनी के तो हाथ-पांव फूल गए. मिनी को कुछ नहीं सूझ रहा था.
लेकिन मिनी कुछ भी सुनने-समझने को तैयार न थी. जब यश ने थोड़ी सख़्ती बरतनी चाही तो वो ग़ुस्से में घर छोड़कर आ गई. जब निखिल ने समझा-बुझाकर उसे पुनः ससुराल भेजना चाहा तो सुभद्रा बीच में आ गई. उसके अनुसार मिनी को अपना कैरियर बनाने का पूरा अधिकार है और यश व उसके घरवाले उसके पैरों में बेड़ियां डालने का प्रयास कर रहे थे. निखिल और यश ने समझौते का भरसक प्रयास किया, पर सुभद्रा ने उनकी एक न चलने दी.
मिनी की ज़िंदगी पुनः पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. उसे मां के घर लौटे हुए लगभग एक महीना हो गया था. लेकिन धीरे-धीरे मिनी महसूस करने लगी कि उसके पुराने संगी-साथी अब उससे कटने लगे हैं. मॉडलिंग के भी उसे अच्छे ऑफ़र नहीं मिल रहे थे. शायद उसका शादीशुदा होना इसका कारण रहा हो. जो भी हो, मिनी स्वयं अब सबसे कटने लगी और अपना अधिकाधिक समय घर पर बिताने लगी. यही नहीं इन दिनों उसे यश की याद भी बेहद सताने लगी थी. उसके साथ बिताए मधुर लम्हों को याद कर वह अकेले में भी मुस्कुरा देती. वह महसूस करने लगी थी कि अपना घर छोड़कर उसने बहुत बड़ी भूल की है.
भला पूरी ज़िंदगी वह यश के बिना कैसे गुज़ार सकती है? अपना भविष्य उसे अंधकारमय नज़र आने लगा. रह-रहकर उसे मां पर ग़ुस्सा आता था. जब वह पापा को अकेले दिन-रात पुस्तकों में डूबा देखती तो मां के प्रति उसका ग़ुस्सा दुगुना हो जाता. क्या उसके बिना यश भी इतना ही एकाकी हो गया होगा? रह-रहकर उसे यह ख़याल आने लगा, पर लौटने के सारे रास्ते तो वह स्वयं ही बंद कर आई थी. मिनी खोयी-खोयी रहने लगी. हर व़क़्त उसे उदास देखकर एक दिन सुभद्रा ने उसे डांट दिया, “इस तरह मुंह लटकाए घूमोगी तो बन गया तुम्हारा कैरियर? अगर ख़ुद से कुछ नहीं कर सकती तो कल से मेरे साथ चला करो.” मिनी भी भरी बैठी थी, फट पड़ी, “आपके साथ जाकर मुझे अपनी ज़िंदगी और तबाह नहीं करनी. मैं अपने हाल में ख़ुश हूं. पहले आपने पापा की ज़िंदगी तबाह की, फिर मेरी.” सुभद्रा इस आक्षेप से तिलमिला गई. ग़ुस्से से तमतमाती वह घर से निकल गई. सोसायटी की मीटिंग में जब उस पर ढंग से काम नहीं करने का आरोप लगाया गया तो वह आवेश में आ गई और इसी दौरान उसकी तबियत बिगड़ गई. तुरंत उसे अस्पताल ले जाया गया और घर सूचना भिजवाई गई. डॉक्टर के यह बताने पर कि सुभद्रा को दिल का गंभीर दौरा पड़ा है, निखिल और मिनी के तो हाथ-पांव फूल गए. मिनी को कुछ नहीं सूझ रहा था. घबराहट में उसने यश को फ़ोन कर दिया. यश ने तुरंत आकर सारी स्थिति संभाल ली. पहले अस्पताल की सारी काग़ज़ी कार्यवाही पूरी की, दवा वग़ैरह लेकर आया, निखिल और मिनी को ढांढ़स बंधाया. दोपहर तक यश के माता-पिता सभी के लिए खाना लेकर आ गए. निखिल और मिनी की इच्छा न होने के बावजूद उन्होंने आग्रह करके उन्हें खाना खिलाया. मिनी की तो किसी से नज़रें मिलाने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी. रात को यश ने ज़बरदस्ती सभी को घर भेज दिया और अकेला अस्पताल में रहा.
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सुभद्रा को अस्पताल में भर्ती हुए तीन दिन हो चुके थे. वह अकेली बिस्तर पर लेटी शून्य में निहार रही थी. यश को उसने ज़बरदस्ती कुछ देर के लिए मिनी के संग बाहर भेज दिया था. सुभद्रा सोच रही थी , यदि यश की जगह उसका अपना बेटा होता तो वह भी शायद उसकी इतनी अच्छी देखरेख न कर पाता. फिर अपने विचारों पर उसे स्वयं ही शर्मिंदगी महसूस हुई. यश उसका बेटा ही तो है. वह तो उसे बिल्कुल अपनी मां समझकर सेवा कर रहा है. वही अपने तुच्छ विचारों से अभी तक ऊपर नहीं उठ पाई है. फिर उसे निखिल का ख़याल आया. निखिल भी कितने बूढ़े लगने लगे हैं, जब युवा थे तब कितने आकर्षक और वाक्पटु थे. और अब हर व़क़्त ख़ामोश! उनकी वक्तृत्व क्षमता पर ही तो वह रीझ गई थी. सुभद्रा के सम्मुख एक-एक करके अतीत के पन्ने खुलने लगे.
निखिल उस समय वकालत कर रहे थे. सुभद्रा की सहेली के पिता के पास वह अपनी प्रेक्टिस के सिलसिले में आया करते थे. वहीं उनकी कुछ मुलाक़ातें हुईं. सुभद्रा को निखिल की वाक्पटुता ने तो निखिल को सुभद्रा की सुंदरता ने मोह लिया. दोनों के पारिवारिक स्तर में ज़मीन-आसमान का अंतर था. सुभद्रा के पिता कचहरी में एक मामूली क्लर्क थे तो निखिल के पिता शहर के जाने-माने व्यवसायी. घरवालों के विरोध के बावजूद निखिल ने सुभद्रा से कोर्टमैरिज कर ली थी. सुभद्रा को ज़िंदगी में निखिल से सब कुछ मिला था- भरपूर प्यार, समाज में मान-सम्मान, ऐशोआराम की ज़िंदगी और फिर मिनी जैसी प्यारी-सी बिटिया. निखिल एक के बाद एक तऱक़्क़ी की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे और इसके साथ ही उनकी व्यस्तता भी बढ़ती जा रही थी. फिर भी वह मिनी और सुभद्रा को अपना क़ीमती व़क़्त देने का भरसक प्रयास करते. सुभद्रा को याद आ रहा था,
संगीतामाथुर