ब्लड ग्रुप के प्रकार
रक्त समूह के चार प्रकार होते हैं- ए, बी, एबी और ओ. हर ग्रुप आरएच पॉज़िटिव या आरएच निगेटिव होता है, जिसकी वजह से ब्लड ग्रुप चार से बढ़कर आठ हो जाते हैं. मानव शरीर में लगभग चार से छह लीटर तक रक्त होता है. लाल, स़फेद रक्त कोशिकाओं और प्लाज़्मा में मौजूद प्लेटलेट्स से मिलकर रक्त बनता है. प्लाज़्मा में 90 फ़ीसदी पानी होता है, जिसमें प्रोटीन, पोषक तत्व, हार्मोन्स होते हैं. रक्त के निर्माण में 60 फ़ीसदी प्लाज़्मा और 40 फ़ीसदी रक्त कोशिकाओं की भूमिका होती है.ब्लड सेल्स व प्लेटलेट्स
लाल रक्त कोशिकाएं रक्त का रंग लाल इन्हीं कोशिकाओं की वजह से होता है. इनका काम शरीर के हर अंग को ऑक्सीजन पहुंचाना, कार्बन डाइऑक्साइड और अशुद्धियों को शरीर से बाहर निकालना होता है. स़फेद रक्त कोशिकाएं ये शरीर के प्राकृतिक सुरक्षा तंत्र का हिस्सा होती हैं और इंफेक्शन्स से लड़ने में मदद करती हैं. प्लेटलेट्स प्लेटलेट्स रक्त को गाढ़ा करता है और शरीर में किसी भी तरह की ब्लीडिंग होने से रोकता है.ब्लड ग्रुप की जानकारी
ब्लड ग्रुप का पता उसमें मौजूद एंटीजेन्स और एंटीबॉडीज़ से चलता है. एंटीजेन्स प्रोटीन अणु होते हैं, जो लाल रक्त कोशिकाओं यानी रेड ब्लड सेल्स की सतह पर मौजूद रहते हैं, जबकि एंटीबॉडीज़ प्रोटीन प्लाज़्मा में मौजूद होते हैं, जो बाहरी जीवाणुओं का हमला होने पर उनसे लड़ने के लिए रोग प्रतिरक्षक प्रणाली को चेतावनी देते हैं. एंटीजेन्स दो प्रकार के होते हैं, जिन्हें ए व बी नाम दिया गया है.एबीओ सिस्टम
ब्लड ग्रुप ए जिस व्यक्ति की रक्त कोशिकाओं पर ए प्रकार के एंटीजेन्स के साथ प्लाज़्मा में एंटी- बी एंटीबॉडीज़ हो, उनका ब्लड ग्रुप ए होता है. ब्लड ग्रुप बी जिस व्यक्ति की रक्त कोशिकाओं पर बी प्रकार के एंटीजेन्स के साथ प्लाज़्मा में एंटी- ए एंटीबॉडीज़ हो, उनका ब्लड ग्रुप बी होता है. ब्लड ग्रुप एबी जिस व्यक्ति की रक्त कोशिकाओं पर ए और बी दोनों ही एंटीजेन्स होते हैं और कोई भी एंटीबॉडी नहीं होता, उनका ब्लड ग्रुप एबी होता है. ब्लड ग्रुप ओ जिस व्यक्ति की रक्त कोशिकाओं पर कोई भी एंटीजेन मौजूद नहीं होता लेकिन प्लाज़्मा में एंटी- ए और बी दोनों ही एंटीबॉडीज़ होते हैं, उनका ब्लड ग्रुप ओ होता है. आरएच फैक्टर ब्लड ग्रुप के साथ रक्त के आरएच फैक्टर की जानकारी होना ज़रूरी है. आरएच फैक्टर दो प्रकार के होते हैं. पहला, आरएच पॉज़िटिव और दूसरा, आरएच निगेटिव. लाल रक्त कोशिकाओं पर अगर आरएच एंटीजेन्स हैं, तो वह व्यक्ति आरएच पॉज़िटिव होता है और जिनमें एंटीजेन नहीं होता वह आरएच निगेटिव होता है, जैसे- अगर किसी का ब्लड ग्रुप ए है और वो आरएच पॉज़िटिव है, तो उसे ए पॉज़िटिव कहा जाएगा. यह भी पढ़ें: किसी को न दें ये 8 चीज़ें, अपने क़रीबी को भी नहींसेहत कनेक्शन
कई बार ऐसा होता है कि एक ही कद-काठी और एक जैसी लाइफस्टाइल के दो लोगों में एक अक्सर बीमार रहता है और दूसरा एकदम फिट. इसका कनेक्शन रक्त से है. किसी भी आनुवांशिक बीमारी का पता ब्लड टेस्ट के ज़रिए लगाया जा सकता है. रिसर्च में पाया गया है कि कुछ ब्लड ग्रुप ऐसे हैं, जिनमें कुछ ख़ास किस्म की बीमारियां होने का जोख़िम ज़्यादा होता है. ए टाइप ब्लड ग्रुप इस ग्रुपवाली महिलाओं की प्रजनन क्षमता तो अच्छी होती है, लेकिन उन्हें इंफेक्शन होने का ख़तरा अधिक रहता है. ए ब्लड ग्रुपवाले व्यक्ति जल्दी तनाव महसूस करने लगते हैं, क्योंकि इनके शरीर में तनाव के लिए ज़िम्मेदार कोर्टिसोल हार्मोन का लेवल ज़्यादा होता है. ओ टाइप ब्लड ग्रुप इस ग्रुपवाले लोगों में दिल की बीमारी का ख़तरा भले ही कम रहता हो, लेकिन पेट में अल्सर जैसी समस्या हो सकती है. बी पॉज़िटिव फ्रांस में हुए एक सर्वे के मुताबिक़ जिन महिलाओं का ब्लड ग्रुप बी पॉज़िटिव होता है, उन्हें टाइप- 2 डायबिटीज़ होने का ख़तरा ज़्यादा रहता है. एबी टाइप ब्लड ग्रुप एक सर्वे के मुताबिक़ इस ग्रुपवाले लोगों में बढ़ती उम्र के साथ याददाश्त कमज़ोर होने की समस्या, बाक़ी ग्रुप के लोगों से 85 फ़ीसदी ज़्यादा होती है. इसके अलावा इन्हें दिल की बीमारी का ख़तरा भी होता है.ध्यान दें
ब्लड ग्रुप के अलावा शरीर की पाचन, रोगप्रतिरोधक क्षमता और अन्य वजहें भी इन बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार हो सकती हैं.कौन किसे दे सकता है रक्त?
ओ पॉज़िटिव - इस ब्लड ग्रुपवाले उन सभी को रक्त दे सकते हैं, जिनका ब्लड ग्रुप पॉज़िटिव है. - ओ पॉज़िटिव, ओ निगेटिव से रक्त ले सकते हैं. ओ निगेटिव - ओ निगेटिव ब्लड ग्रुपवाले लोगों को यूनिवर्सल डोनर कहा जाता है, इस ग्रुप के लोग हर किसी को रक्त दे सकते हैं. - केवल ओ निगेटिव ग्रुप से ही ब्लड ले सकते हैं. ए पॉज़िटिव - ए पॉज़िटिव और एबी पॉज़िटिव ग्रुपवालों को रक्त दे सकते हैं. - ए और ओ पॉज़िटिव, ए और ओ निगेटिव ब्लड चढ़ाया जा सकता है. ए निगेटिव - ए और एबी पॉज़िटिव, ए और एबी निगेटिव ग्रुपवालों को रक्त दे सकते हैं. - ए और ओ निगेटिव से ब्लड ले सकते हैं. बी पॉजिटिव - बी और एबी पॉज़िटिव ब्लड ग्रुप को रक्त दे सकते हैं. - बी और ओ पॉज़िटिव, बी और ओ निगेटिव से रक्त ले सकते हैं. बी निगेटिव - बी और एबी निगेटिव, बी और एबी पॉज़िटिव ग्रुप को ब्लड डोनेट कर सकते हैं. - बी और ओ निगेटिव से रक्त ले सकते हैं. एबी पॉज़िटिव - एबी पॉज़िटिव को रक्त दे सकते हैं. - इस ब्लड ग्रुपवाले लोगों को यूनिवर्सल रेसिपिएंट्स कहा जाता है. इन्हें किसी भी ग्रुप का ब्लड चढ़ाया जा सकता है. एबी निगेटिव - एबी पॉज़िटिव और निगेटिव दोनों को ही ब्लड दे सकते हैं. - ए, बी, एबी, ओ निगेटिव से ब्लड ले सकते हैं. यह भी पढ़ें: हेल्दी लाइफ के लिए करें सूर्यनमस्कारये भी जानिए
शादी से पहले कुंडली के साथ ब्लड ग्रुप भी मिलाएं शादी से पहले लोग कुंडली तो मिलाकर देखते हैं, पर दुल्हा-दुलहन के रक्त की जांच को न ही अहमियत देते हैं और न ही भारतीय समाज में हेल्थ चेकअप की रिपोर्ट मांगने का कोई चलन है. अगर रक्त की जांच करा ली जाए, तो न केवल शादी के बाद दुल्हा-दुल्हन स्वस्थ रहेंगे, बल्कि उनके बच्चे भी बीमारियों से बचे रहेंगे. - विवाह से पहले लड़का और लड़की के आरएच फैक्टर की जांच करवा लें. - आरएच निगेटिव लड़की की शादी, आरएच पॉज़िटिव लड़के के साथ न करें. ये भविष्य में उनके बच्चे की सेहत के लिए बेहतर होगा. - दोनों अगर आरएच पॉज़िटिव या निगेटिव हों या लड़की अगर आरएच पॉज़िटिव हो और लड़का आरएच निगेटिव हो, तो बच्चे को किसी तरह की परेशानी भविष्य में नहीं होगी. - प्रेग्नेंसी में आरएच फैक्टर का बहुत बड़ा रोल होता है. - अक्सर ऐसा होता है कि अगर पत्नी आरएच निगेटिव है और पति आरएच पॉज़िटिव, तो गर्भ में बच्चा आरएच पॉज़िटिव हो सकता है, इससे जच्चा-बच्चा दोनों की सेहत को ख़तरा हो सकता है. - ये ख़तरा पहले बच्चे से ज़्यादा दूसरे बच्चे को होता है. - गर्भ में शिशु के विकास पर असर पड़ सकता है. - प्रसव के समय अगर शिशु का रक्त मां के रक्त से मिल जाए, तो मां के रक्त में एंटीबॉडीज़ का निर्माण होने लगता है. - ये एंटीबॉडीज़ प्लासेंटा के ज़रिए शिशु के रक्त में प्रवेश कर जाए, तो उसकी लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट कर सकता है और बच्चा पीलिया, एनीमिया जैसी बीमारी का शिकार हो सकता है. - प्रेग्नेंट महिलाओं में लगभग 15 प्रतिशत महिलाएं आरएच निगेटिव होती हैं. यह भी पढ़ें: खाने के बाद न करें ये काम
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