ग़ज़ल- जब भी मैंने देखा है… (Gazal- Jab Bhi Maine Dekha Hai…)
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जब भी मैंने देखा है दिलदार तुम्हारी आंखों में
चाहत का इक़रार मिला हर बार तुम्हारी आंखों में
रमता जोगी भूल गया है रस्ता अपनी मंज़िल का
देख लिया है उसने अब इक़रार तुम्हारी आंखों में
जो सदियों से गुम था मेरा, आज मिला दिल क़िस्मत से
उसको मैंने ढूंढ़ लिया दिलदार तुम्हारी आंखों में
जिसको योगी ढूंढ़ रहे थे, युगों युगों से जंगल में
मैंने है वो खोज लिया इसरार तुम्हारी आंखों में
हर कोई मेरी जां का दुश्मन बना हुआ है महफ़िल में
जाने कितने 1फ़ितने हैं सरकार तुम्हारी आंखों में
वेद प्रकाश पाहवा ‘कंवल’