कहानी- उमंगों का आशियाना (Short Story- Umango Ka Aashiyana)
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कावेरीजी ने जिस नज़र से अपने बेटे को देखा, लग रहा था जैसे आज वे कोई पुराना हिसाब चुकता कर रही हों. हिसाब ही तो था उन सभी बातों का, जो उन्होंने उस रात अनजाने में सुनी थीं, जब अवनी और कुणाल उन्हें वृद्धाश्रम भेजने की योजना बना रहे थे.
अवनी कमरे में चाय लेकर आई, तो पम्मी झट से बोली, “अरे, हमारे साथ इस फॉर्मैलिटी की ज़रूरत नहीं है भई, हम तो घर के ही लोग हैं.”
“फॉर्मैलिटी नहीं है, चाय है, हमें भी पीनी थी सो बना लाई.” सब हंस पड़े. अवनी की सास कावेरी दो दिन पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज होकर आई थी, तो पम्मी और उसकी सास उमा उन्हें देखने के लिए आए थे. दोनों एक ही कॉलोनी में रहते थे. अवनी और पम्मी एक ही किटी के मेंबर थे. दोनों के बच्चे भी एक ही स्कूल में जाते थे, अतः दोनों में ठीक-ठाक दोस्ती थी. उनकी सासें कावेरी और उमा कॉलोनी में चलनेवाले साप्ताहिक सत्संग की मेंबर थीं, अतः उनमें भी गपशप का रिश्ता था.
“जाओ भई, तुम दोनों बहुएं चाय पीते हुए अपनी बातें करो और हमें अपनी करने दो.” उमा बोली तो पम्मी और अवनी अपनी-अपनी चाय लेकर ख़ुशी-ख़ुशी बाहर आ गए.
“क्या यार, पता है तूने पिछले पंद्रह दिनों में कितना कुछ मिस कर दिया. सुमन के यहां शुक्रवार को किटी थी. पिछले सोमवार को पूरा ग्रुप पिक्चर और लंच के लिए गया था. इस बार निशा ने अपने बर्थडे की क्या ज़बर्दस्त पार्टी दी. तू होती तो...” पम्मी के उत्साहित स्वर से अवनी का चेहरा उतर गया.
“मैं कैसे होती यार. मैं वहां होती, तो इस घर में गधों की तरह मज़दूरी कौन करता. सासूजी तो 10 दिन से हॉस्पिटल में पड़ी थीं. पहले डेंगू हो गया था और अब ये लंग इंफेक्शन. जब देखो खांसती-थूकती रहती हैं. तौबा... मेरा तो जी ख़राब होने लगा है. रसोई में उठकर आ जाती हैं, सब्ज़ी काटने लगती हैं और उसी पर खांसती रहती हैं... सच पम्मी, मुझे तो बच्चों के लिए बड़ा डर लगने लगा है, कहीं उन्हें इंफेक्शन न हो जाए. सोनू को पिछले महीने ही फ्लू हुआ था. रिंकी को भी जल्दी खांसी-ज़ुकाम पकड़ती है. मैंने बच्चों को कहकर भी रखा है कि दादी के पास न जाया करो, मगर मेरी सुनता कौन है?” सास की बीमारी से झल्लाई अवनी को बड़े दिनों बाद कोई अपना दुखड़ा सुनाने को मिला, तो वह फट पड़ी.
“तू कोई नर्स क्यों नहीं रख लेती उनकी देखभाल के लिए.” पम्मी चाय का सिप लेते हुए बोली.
“कैसे रख लूं, कितना पैसा लेती हैं नर्स, जानती भी है. इनके अकेले की कमाई में क्या-क्या कर लूं. बच्चे भी बड़े हो रहे हैं, उनके ख़र्चे बढ़ रहे हैं. ऊपर से मम्मीजी के इलाज और दवाइयों के ख़र्चे. उन्हें जब देखो, कुछ न कुछ लगा ही रहता है.”
“पर आंटीजी की पेंशन भी तो
आती है ना?” पम्मी की खूफ़िया नज़रें निधि के चेहरे पर टिकी थीं. अवनी ऐसे हड़बड़ाई जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो. मन ही मन सोचने लगी, ज़रूर मम्मीजी ने अपनी पेंशन के बारे में इसकी सास को गाया होगा.
“आती है, तो उनकी अपनी जेब में जाती है, कौन-सा हमें देती हैं. वो तो ऊपरवाले पोर्शन से जो थोड़ा-बहुत किराया आता है, उसी का बहुत बड़ा सहारा हो जाता है, वरना ख़र्चों का मुंह तो भस्मासुर-सा खुला ही रहता है. सच पम्मी, कभी-कभी मन करता है सब कुछ छोड़छाड़ के कहीं चली जाऊं... संन्यास ले लूं, तभी शांति मिलेगी.” निधि की रोनी सूरत देख पम्मी को सचमुच उससे सहानुभूति हो आई.
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“यही तो हो रहा है आजकल. जिनकी संन्यास लेने की उम्र है, उन्हें सारे सुख चाहिए और जिनकी उम्र गृहस्थी का सुख उठाने की है, उनको संन्यास झेलना पड़ रहा है... अब तुझे क्या बताऊं, बात छिड़ी है, तो कह रही हूं, हमारा भी यही हाल है. दो कमरों का छोटा-सा घर है. एक कमरे में मम्मीजी जमी हैं, दूसरा हम तीनों के पास है. अंकित 10 साल का हो गया, अभी भी हमारे पास ही सोता है. हमारी कोई पर्सनल लाइफ, सेक्स लाइफ बची ही नहीं है.
“अरे, तो दादी के पास नहीं सो सकता क्या..?”
“मम्मीजी को तो नींद आती नहीं, पूरी रात लाइट जलाकर रखती हैं. किताबें पढ़ती रहती हैं या रेडियो सुनती रहती हैं... अंकित को उनके पास ज़रा भी नींद नहीं आती. वैसे भी वह बड़ा हो रहा है, उसे भी तो अपना कमरा चाहिए. सोच रहे थे, अपना बिज़नेस बढ़ाएं. कुछ हालात सुधरेंगे, तो बड़ा घर लेने की सोच सकते हैं, मगर बिज़नेस में पैसा पहले लगता है, आता बाद में है.”
“मगर तुम्हारी गांव में भी कुछ ज़मीन है ना, उसे बेचकर नया घर ले लो ना.”
इस बार पम्मी हक्की-बक्की रह गई, ‘अरे, इसे कैसे पता चला हमारी ज़मीन के बारे में? ज़रूर मम्मी ने इसकी सास को बता रखा है.’
“वो हमारी कहां है, मम्मीजी के नाम है और वे पुरखों की उस ज़मीन से ऐसे चिपकी हैं, जैसे- गुड़ पर मक्खी. क्या फ़ायदा इतना सत्संग-भजन करने का? एक ज़मीन से तो मोह छूटता नहीं.” पम्मी मुंह बनातेे हुए बोली. “कभी गांव भी नहीं जातीं. रहती-खाती हमारे साथ हैं, लेकिन अगर हमने ज़मीन का नाम ले लिया, तो आगबबूला हो जाती हैं. कहती हैं, मेरे जीते जी मैं उसे नहीं बेचनेवाली... मेरे मरने के बाद जो चाहे करना... वो तो अंकित के पापा ने उस ज़मीन को दिखाकर एक फाइनेंसर से कुछ लाख का पसर्नल लोन लिया है. उसी से बिज़नेस बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, पर ये बात मम्मीजी को पता नहीं है. तू भी ज़िक्र मत करना.” पम्मी भावावेश में अपने राज़ उगल गई.
“ओह..!”
“एक और बात शेयर करती हूं तुझसे.” पम्मी इधर-उधर देखते हुए अवनी के पास सरककर फुसफुसाई.
“यहां से 15 किलोमीटर दूर एक नया वृद्धाश्रम खुला है. हम देखकर आए हैं. बहुत अच्छा है. वहां साल के कुछ पैसे भर दो, फिर सारी ज़िम्मेदारी उनकी. हमने मम्मीजी को वहां रखने का मन बना लिया है. वहां का माहौल अच्छा है. खुली और साफ़ आबोहवा है, फिर उनकी हमउम्र औरतें भी हैं. उनका ख़ूब मन लगेगा. मैं तो कहती हूं तुम भी आंटीजी को वहां भेज दो. दोनों साथ होंगे, तो
ख़ुशी-ख़ुशी चले जाएंगे. ज़्यादा दूर भी नहीं है. हम मिलने भी जा सकते हैं. मैंने एक-दो से और बात की है. शायद उनका ग्रुप भी बढ़ जाए.” सुनकर अवनी का मुंह खुला का खुला रह गया, “वृद्धाश्रम! अरे लोग क्या कहेंगे..?”
“लोगों की देखें या अपनी सुधारें.. वैसे भी ज़रा सोच के देख, बच्चों की बेहतरी के लिए उन्हें हॉस्टल नहीं भेजते क्या... इसे बस ऐसे ही समझ कि हम अपनी और उनकी सहूलियत के लिए उन्हें उनके हॉस्टल भेज रहे हैं. हमने तो मन बना लिया है, वे जाएंगी, तो फिर उनका कमरा अंकित को दे देंगे.”
“तुम्हारे पति मान गए..?” अवनी ने अचरज से पूछा.
“मान क्या गए, बस जैसे-तैसे मना लिया समझो. ये मम्मीजी से आजकल में बात करने ही वाले हैं.”
“तुम दोनों की बातें ख़त्म हो गई हों, तो चलें पम्मी. अंकित स्कूल से आता ही होगा.” उमा ने बाहर आकर कहा, तो दोनों थोड़ा सकपका गए.
“जी मम्मीजी.” कहकर पम्मी तो चली गई, मगर अवनी के दिमाग़ में एक ऐसा फ़ितूर छोड़ गई, जो उसे अपनी सारी समस्याओं का हल और सुखी जीवन की चाबी लग रहा था. उसने शाम को बातों-बातों में अपने पति कुणाल से इस बात का ज़िक्र किया और ऐसे किया जैसे वह कोई वृद्धाश्रम नहीं, बल्कि सीनियर सिटिज़न का रिसॉर्ट हो, जहां पर मां को भेजना उन्हें चार धाम की यात्रा कराने जैसा पुण्य देगा. कुल मिलाकर अवनी की बातों से कुणाल भी सहमत हो गए और वृद्धाश्रम देख आने को राज़ी हो गए.
“अरे, देखना क्या है, पम्मी और भाईसाहब ने देखा है, बहुत अच्छा है. मैं तो कहती हूं उमा आंटी के साथ ही अगर मम्मी भी चली जाएं, तो बहुत अच्छा रहेगा. उन्हें कंपनी भी रहेगी और घर छोड़ने का उतना दुख भी नहीं होगा. आप जल्द ही मम्मीजी से बात कर लो.”
“पर अवनी, मम्मी दो दिन पहले ही हॉस्पिटल से आई हैं, उनकी रिकवरी तो हो जाने दो. फिर बात करते हैं.” कहकर कुणाल सो गए, मगर अवनी की आंखों में अब नींद कहां? वहां तो एक बूढ़ी बीमार झंझट से मुक्ति पाने के सपने पलने लगे थे.
अगले दिन से ही अवनी ने अपनी सास की जल्दी रिकवरी के लिए ज़ोरदार सेवा शुरू कर दी. जूस, सूप, समय से खाना. जो कभी नहीं हुआ वह अब हो रहा था. अवनी ज़िंदगी में पहली बार अपनी सास के स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी. धीरे-धीरे कावेरीजी स्वस्थ हो स्वयं को फिट महसूस करने लगीं. अब वे अपने कमरे में नहीं, बल्कि सबके साथ डायनिंग टेबल पर बैठकर खाना-नाश्ता लेती थीं. घर के कामों में भी हाथ बंटाने लगी थीं. उनकी मॉर्निंग वॉक भी शुरू हो गई थी.
आज हल्के बादल घिरे थे. मौसम ख़ुशगवार हो रहा था, बाहर भी और अवनी के भीतर भी. कुणाल ने ऑफिस से आकर मां से बात करने का वादा जो किया था. पम्मी तो अपनी सास से बात कर भी चुकी थी और वे अगले रविवार उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ने जानेवाले थे. अवनी की तरह पता नहीं क्यों, आज कावेरीजी भी कुछ ज़्यादा ही उत्साहित लग रही थीं. उन्होंने शाम की चाय पर अपने हाथों से बेटे की पसंद का मूंग दाल हलवा और बहू के लिए पनीर कटलेट बनाए थे. कुणाल के आने पर उन्हें बड़े प्यार से परोसा और तीनों डायनिंग टेबल पर बैठ गए. खाते हुए कुणाल ने मां की ओर देखा, तो वे उसे ऐसे निहार रही थीं, जैसे उसे बचपन में कुछ खिलाते हुए प्रेम और ममता से निहारा करती थीं. यह सब देखकर पहले से ही घबराया कुणाल थोड़ा और सकपका गया. वह खाते-खाते रुक गया.
“क्या हुआ बेटा, अच्छा नहीं बना है क्या? तू तो ये हलवा चट-चट करके खा जाता था. आज ऐसे लग रहा है जैसे ज़बर्दस्ती निगल रहा है.”
“नहीं मां, बहुत अच्छा बना है.” कहते हुए कुणाल ने चोर नज़रों से अवनी को देखा, तो वह उसे ऐसे घूर रही थी, जैसे कटलेट के साथ उसे भी खा जाएगी.
कुणाल कुछ संभलकर बोला, “मां, आज कुछ ख़ास है क्या?”
“हां बेटा, आज का दिन मेरे लिए बहुत ख़ास है. मैंने एक निर्णय लिया है, जो तुम दोनों को बताना है. मैं जानती हूं तुम दोनों मुझे बहुत प्यार करते हो, मुझे बहुत मान भी देते हो, इसलिए मुझे विश्वास है कि मेरे इस निर्णय का भी सम्मान करोगे.”
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”ऐसी क्या बात है मां, क्या निर्णय लिया है आपने?” कुणाल और अवनी दोनों सुनने के लिए अधीर हो उठे.
“देखो बेटा, मेरी उम्र हो चली है. बीमार भी रहती हूं. लगता है जैसे ज़्यादा दिन नहीं बचे हैं. सोच रही हूं अब बाकी का जीवन अपने जैसी बूढ़ी और असहाय औरतों के साथ बिताऊं. उनका सुख-दुख बांटूं. पहले तो घर की ज़िम्मेदारियों के चलते कुछ करने का मौक़ा नहीं मिला, पर अब जब बहू ने सब संभाल लिया है, तो सोच रही हूं कि जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर ही सही, कुछ सेवा धर्म निभा लूं. वही तो आगे काम आएगा, बाकी तो सब यहीं रह जाना है. वैसे भी तुम लोग समझदार हो, अपना जीवन अच्छे से जी रहे हो. तुम्हारे प्रति मैंने अपने सभी दायित्व पूरे कर लिए हैं, इसलिए अब बाकी का जीवन अपने तरी़के से जीना चाहती हूं. उमा बहनजी किसी वृद्धाश्रम के बारे में बता रही थीं...” सास की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अवनी का चेहरा खिल गया. वह मन ही मन सोचने लगी, ‘ये तो बहुत बढ़िया हो गया. हमें कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. मम्मीजी तो ख़ुद उमा आंटी के साथ वहां जाने के लिए तैयार बैठी हैं. अच्छा हुआ, चलो बच गए. कुणाल के मुंह से तो कुछ फूट ही नहीं रहा था.’
“वृद्धाश्रम! क्या कह रही हैं मम्मीजी, क्या हमसे कुछ भूल हो गई जो आप..?” अवनी ने भली बनने की कोशिश की.
“नहीं बहू, पिछले कुछ दिनों में तुमने मेरी जितनी सेवा की है, उतनी कोई बेटी भी न करे. मुझे तुम लोगों से कोई शिकायत नहीं है. यह निर्णय तो मैंने अपनी ख़ुशी और संतुष्टि के कारण लिया है. आशा है, तुम इसे अन्यथा नहीं लोगे और इसमें मेरा साथ दोगे.”
“ठीक है मां, जैसी आपकी इच्छा.” कुणाल गहरी सांस छोड़ते हुए बोला. भीतर से वह भी सुकून में था कि चलो, मां के सामने ऑकवर्ड महसूस करने से बच गया. “हम आपसे हर वीकेंड मिलने आते रहेंगे.”
बेटे को राज़ी देख कावेरीजी ने एक गहरी सांस भरी और गंभीर भाव से आगे बोलना शुरू किया.
“तो ठीक है बेटा, अपने लिए एक अच्छा-सा किराए का घर देख लो, पर जब देखोगे तो इस बात का ध्यान रखना कि वह तुम्हारे ऑफिस के पास भी हो और बच्चों के स्कूल से भी दूर न पड़े. आजकल ट्रैफिक की वजह से कहीं आने-जाने में बहुत समय बर्बाद होता है.”
“किराए का घर?” कुणाल और अवनी चौंके.
“क्या मतलब मां?”
“किराए का घर तो देखना ही पड़ेगा ना, तुम लोगों को यहां से शिफ्ट जो होना है.” इतना बड़ा धमाका करने के बावजूद कावेरी का स्वर मधुर और संयत था.
“हमें क्यों शिफ्ट होना है भला?” अवनी हड़बड़ाई.
“अब मैं इस बुढ़ापे में अपना घर छोड़कर क्यों जाने लगी. यह घर ही तो तुम्हारे पिताजी की अंतिम निशानी है मेरे पास. मैं तो यहीं रहूंगी और यहीं अपने समान कुछ और ब़ूढी महिलाओं को रखूंगी.”
“और हम लोग?” कुणाल बदहवास-सा बोला.
“देखो बेटा, तुम्हारे पिता तो बहुत जल्द हमारा साथ छोड़कर दुनिया से चले गए थे. मैंने कितनी मुश्किलों से तुम्हें पढ़ाया-लिखाया, इस क़ाबिल बनाया कि तुम अपना, अपने परिवार का ध्यान रख सको, तो अब मेरी तुम्हारे प्रति सारी ज़िम्मेदारियां खत्म होती हैं. वैसे भी अब तुम लोगों को अपने घर के बारे में सोचना चाहिए, कब तक मेरे घर में रहोगे..?” कावेरीजी ने जिस नज़र से अपने बेटे को देखा, लग रहा था जैसे आज वे कोई पुराना हिसाब चुकता कर रही हों. हिसाब ही तो था उन सभी बातों का, जो उन्होंने उस रात अनजाने में सुनी थीं. जब अवनी और कुणाल उन्हें वृद्धाश्रम भेजने की योजना बना रहे थे.
मां के इस बदले रूप से कुणाल अवाक् था. कुछ सोचने-समझने की शक्ति नहीं बची थी उसमें. मां का घर... तो क्या यह मेरा नहीं है..? पर मैं तो इसे अपना मानकर ही बैठा था, मानता भी क्यों न... मां ने आज से पहले कभी जताया भी तो नहीं था कि यह उसका घर है. हमेशा कितना अपनापन, कितना प्यार दिया और आज वो तेरे-मेरे पर उतर आई हैं... तभी कुणाल के भीतर कुछ भरभरा गया.
ओह, मैं भी तो वही कर रहा था. कैसे मां को उनके ही घर से निकालने की तैयारी कर रहा था. घर पिताजी ने बनाया था और मां के नाम है, तो मालकिन वही हुईं ना, फिर मैं कैसे उन्हें यहां से निकालने की सोच बैठा था. कुणाल के अंदर विचारों की उथल-पुथल मची थी. अवनी के तो पैरों तले की जैसे ज़मीन खींच ली गई थी.
“कहां खो गए बेटा? हमारी पूरी योजना तो सुनो. हमने सोचा है कि ये कोई वृद्धाश्रम नहीं होगा. वृद्धाश्रम का नाम सुनते ही बड़ी लाचारी, बेचारगीवाली फीलिंग आती है.”
हमने मतलब यानी कोई और भी है, जिसने मां को ये सब सिखाया-पढ़ाया.
“मां, हमने यानी..?”
“मैंने और उमाजी ने मिलकर अपने इस प्रोजेक्ट का नाम ‘उमंगों का आशियाना’ रखा है. यह नाम सुनते ही शरीर में एक उत्साह, एक उमंग-सी दौड़ती है. हमारी योजना है कि हम, हमारे अलावा यहां 6-7 और ऐसी बूढ़ी महिलाओं को रखेंगे, जिनको मजबूरन वृद्धाश्रम का रुख करना पड़ रहा है. दो तो अपनी ही कॉलोनी में मिल गई हैं. वैसे बहू, मानना पड़ेगा तुम्हारी सहेली पम्मी को जो अपनी सास के लिए बड़ी केयरिंग है! वह उन सभी को अपनी सास के साथ वृद्धाश्रम भेजने के मूड में थी, ताकि उमाजी को अकेले कोई कठिनाई न हो. जब उमाजी ने मुझे बताया, तो मैंने कहा जब अपना इतना बड़ा घर है, तो सब यहीं रह लेते हैं, कहीं और जाने की क्या ज़रूरत है...? कावेरीजी इत्मीनान से हलवा खाते हुए बोलीं, मगर उनका छोड़ा तीर सीधा अवनी के दिल पर लगा. ओह! तो मम्मीजी को सब पता चल चुका था, इसीलिए ये सब प्लानिंग करके रखी है.
“मम्मीजी, आपको यह सब इतना आसान लग रहा है, सब आ तो जाएंगी, मगर खाएंगी क्या? आप लोगों के पास कुछ कमाई का साधन भी है क्या..?” इस बार अवनी बिलबिला उठी.
“उसकी तुम चिंता न करो बहू, मेरी पेंशन है. फिर ऊपर के पोर्शन से अच्छा-ख़ासा किराया भी आता है और उमाजी की गांव में बहुत बडी ज़मीन थी. वह उन्होंने कल ही बेच दी है. वे कह रही थीं कि उसके ब्याज से ही हम सबका घर ख़र्च आराम से चल जाएगा.”
बाहर अभी भी मौसम ख़ुशगवार था, मगर अवनी के भीतर जगा मौसमी ख़ुमार उतरकर बुख़ार में तब्दील हो चुका था. वह मन ही मन पम्मी को कोस रही थी, ‘हाय राम, कैसी बुद्धि फेरी उसने मेरी? हमें घर से बेघर करवा दिया, पर जो बोया है, वो काटेगी ज़रूर. पता करती हूं उस फाइनेंसर का, जिससे उन्होंने गांव की ज़मीन दिखाकर लोन लिया है. उसे जब पता चलेगा कि वह ज़मीन तो बिक चुकी है, तो उनको जेल भी हो सकती है. अवनी किसी घायल पंछी की तरह फड़फड़ा रही थी.
कुणाल का भी यही हाल था. इतनी कम तनख़्वाह में किराए का घर, बच्चों की पढ़ाई, घर के ख़र्चे... अकेले सब कैसे मैनेज करूंगा. यहां तो गैस, बिजली, फोन बिल वगैरह मम्मी अपनी पेंशन से भर दिया करती थीं. वह अपनी सोच पर पछता रहा था. कावेरीजी की कुणाल पर टिकी शांत गहरी आंखें, जैसे कह रही थीं कि मैं तुम्हारी मां हूं बेटे, इसलिए तुम फिर कभी मेरा बाप बनने की कोशिश मत करना.
दीप्ति मित्तल
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