पर्सनल स्पेस
बच्चों को जितनी अपने पैरेंट्स की ज़रूरत होती है, उतनी ही अपने पर्सनल स्पेस की भी. उन्हें इतनी आज़ादी ज़रूर दें कि वे अपने छोटे-छोटे फैसले ख़ुद कर सकें. इससे उनमें आत्मविश्वास आएगा. उनका मार्गदर्शन करें, पर अपने फैसले उन पर न थोपें. बच्चों पर जितनी बंदिशें लगाएंगे, वे उतने ही अपनी बातें शेयर करने से कतराते हैं. उन्हें लगने लगता है कि पैरेंट्स से बातें शेयर करना बेकार है. वे उन्हें समझेंगे नहीं, तो वे चुप्पी को अपना विरोध जताने का हथियार बना लेते हैं.बच्चे की हर डिमांड पूरी करना हो सकता है ख़तरनाक, देखें वीडियो:
https://youtu.be/m6YYdq9mKn8 यह भी पढ़े: बचें इन पैरेंटिंग मिस्टेक्स से (Parenting Mistakes You Should Never Make)असीमित उम्मीदें
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं, पैरेंट्स की उम्मीदें भी बढ़ने लगती हैं. वे अपनी अधूरी इच्छाओं को उनके ज़रिए पूरा करना चाहते हैं. बच्चे जब उन उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो वे अपने और पैरेंट्स के बीच दूरी बनाने लगते हैं. यहीं से शुरू होता है संवादहीनता का सिलसिला. अगर आपका बच्चा भी चुप रहने लगे, तो आप उससे कोई उम्मीद न करें, बल्कि उस दूरी को कम करने की कोशिश करें.डांटें-फटकारें नहीं
छोटा बच्चा पैरेंट्स से हर बात शेयर करता है, लेकिन अक्सर वे उसे झिड़ककर या डांटकर चुप करा देते हैं. नतीजतन बच्चा पैरेंट्स से बातें छुपाने लगता है. पैरेंट्स को पता ही नहीं चलता. धीरे-धीरे वह पैरेंट्स से दूरी बनाना शुरू कर देता है. तुलना कर देती है कुंठित अधिकतर पैरेंट्स बच्चे की तुलना उसके दूसरे भाई-बहन या दोस्तों से करते हैं या फिर रिश्तेदारों के सामने ही उनकी कमियों-ख़ूबियों का बखान करने लगते हैं, जो सही नहीं है. हर बच्चे की क्षमता और सामर्थ्य अलग-अलग होती है. पैरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए कि ज़्यादा तारीफ़ और ज़्यादा आलोचना दोनों ही बच्चे के लिए ठीक नहीं हैं. पैरेंट्स का कर्त्तव्य है कि उनमें जितनी योग्यता और क्षमता है, उसे निखारने में उनकी मदद करें. उन्हें एहसास कराएं कि वे हर पल उनके साथ हैं.बच्चे को सोशल बनाएं
सिंगल चाइल्ड के बढ़ते कॉन्सेप्ट और वर्किंग पैरेंट्स होने के कारण बच्चा मेड के भरोसे पलता है या अकेले. ऐसे में उसका दायरा बहुत सीमित हो जाता है. सुरक्षा की दृष्टि से पैरेंट्स उसे घर से अकेले बाहर नहीं जाने देते हैं. नतीजा यह होता है कि वह सोशल नहीं बन पाता है. वह दूसरे बच्चों के साथ घुलना-मिलना नहीं जानता. अपनी बातें मन में दबाए रखता है, लेकिन वर्किंग पैरेंट्स के पास उसकी बातें सुनने का समय नहीं होता. मनोवैज्ञानिक अंजना भार्गव कहती हैं कि भावनाओं को व्यक्त न कर पाने की स्थिति में धीरे-धीरे वह अपने में ही सिमटता जाता है. अगर वह कुछ कहना भी चाहता है, तो पैरेंट्स के पास सुनने का समय नहीं होता. जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, तो हो सकता है उसमें बदलाव आए, पर ऐसा तभी संभव है जब वह सोशल हो और बाहरी दुनिया के साथ तालमेल बिठा सके. उसकी चुप्पी का लावा जब फूटता है, तो उसका नतीज़ा बहुत ख़तरनाक हो सकता है. बेहतर होगा कि बच्चे को उसके हमउम्र बच्चों के साथ समय बिताने दें. यह भी पढ़े: एग्ज़ाम टाइम में बच्चे को यूं रखें तनावमुक्त (Keep Your Child From Over Stressing Exams)कहीं वह चाइल्ड एब्यूज़ का शिकार तो नहीं?
बच्चा अगर अचानक चुप रहने लगे, तो पैरेंट्स जानने की कोशिश करें कि कहीं वह चाइल्ड एब्यूज़ का शिकार तो नहीं है. मनोवैज्ञानिक नीलम पंत का कहना है कि चाइल्ड एब्यूज़ का हल ढूंढ़ने की राह पैरेंट्स से शुरू होती है और वहीं ख़त्म भी. अगर बच्चा पैरेंट्स को अपने साथ हुई किसी घटना के बारे में बताना चाहता है, तो उसे डांटने-फटकारने की जगह उसकी बात सुनें. अपने स्तर पर छानबीन करने की कोशिश करें. पैरेंट्स को यह समझना ज़रूरी है कि चाइल्ड एब्यूज़ एक बहुत बड़ी समस्या है और इसका शिकार कोई भी बच्चा हो सकता है. कुछ लक्षणों के आधार पर पैरेंट्स यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बच्चा परेशानी में क्यों है. * चाइल्ड एब्यूज़ का शिकार बच्चा अगर बड़ी उम्र का है, तो वह गुमसुम हो जाता है, ख़ुद में खोया रहता है. अपनी बात किसी से शेयर नहीं करता. * बेहद कम उम्र के बच्चे चाइल्ड एब्यूज़ का शिकार होते हैं, तो वे सेक्सुअल हाव-भाव करने लगते हैं और वैसी ही भाषा का प्रयोग भी करने लगते हैं. इन लक्षणों को समय रहते पहचानें और उनका कारण जानने की कोशिश करें. पैरेंट्स को अपने बच्चे को एक ऐसा खुला माहौल देना होगा, जिसमें वह अपनी बात उनसे शेयर कर सके. अगर चाइल्ड एब्यूज़ के शिकार बच्चे को सही देखभाल और काउंसलिंग नहीं मिलती है, तो उसका आत्मविश्वास ख़त्म हो जाता है. इसलिए एक पैरेंट के रूप में यह ज़रूरी है कि आप उस पर और उसकी बातों पर विश्वास करें.पैरेंट्स रखें इन बातों का ख़्याल
बच्चे के व्यवहार पर नज़र रखें: अगर बच्चा कई दिनों से चुप-चुप लग रहा है, तो पैरेंट्स उसके मन में छिपी बातों को जानने का प्रयास करें. उसे ख़ुशनुमा माहौल दें, ताकि वह अपने मन की बात आपको बता सके. ध्यान रखें, अगर वह कुछ ग़लत कर रहा है, तो तुरंत अपनी प्रतिक्रिया न दें. अन्यथा वह दोबारा आपसे अपने मन की बात शेयर नहीं करेगा. टीचर के संपर्क में रहें: यदि बच्चा छोटा है, तो उसकी रोज़ाना की गतिविधियों के बारे में जानने के लिए उसकी टीचर से संपर्क करें. हो सकता है कि वह कुछ बातें अपनी टीचर से शेयर करता हो और आपको न बताता हो. बच्चे के सामने उसके दोस्तों की बुराई न करें: किशोरावस्था में बच्चों को नसीहतें या अपने दोस्तों के बारे में कुछ सुनना अच्छा नहीं लगता है. बेहतर होगा कि उनके दोस्तों से मिलें-जुलें. इससे पैरेंट्स को बच्चे के दोस्तों की जानकारी भी रहेगी.- सुमन बाजपेयी
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