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पुरुषों में नपुंसकता के कारण व लक्षण (Male Infertility – Symptoms and Causes)
शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बावजूद कई महिलाएं कंसीव नहीं कर पातीं, क्योंकि उनके पार्टनर इंफर्टिलिटी (Infertility) के शिकार होते हैं. आख़िर क्यों होती है इंफर्टिलिटी की समस्या (Infertility Problems)? आइए, जानते है इसके कारण, लक्षण और उपाय.शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बावजूद कई महिलाएं कंसीव नहीं कर पातीं, क्योंकि उनके पार्टनर इंफर्टिलिटी के शिकार होते हैं. आख़िर क्यों होती है इंफर्टिलिटी की समस्या? आइए, जानते है इसके कारण, लक्षण और उपाय.
पहले के जमाने में बच्चा न होने का पूरा दोष महिला के सिर पर थोप दिया जाता था. धीरे-धीरे इस बारे में लोगों की जागरूकता बढ़ी. इस क्षेत्र में हुए शोधों से सिद्ध हुआ है कि इंफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे तीन में से एक कपल में समस्या पुरुष पार्टनर के कारण होती है.
इंफर्टिलिटी के प्रकार
1. वीर्य की जांच करके स्पर्म्स (शुक्राणुओं) की संख्या देखी जाती है. इसकी नॉर्मल रेंज 20 से 45 होती है. यदि काउंट 15 से नीचे जाता है तो नैसर्गिक विधि से गर्भ नहीं ठहर सकता. ऐसी स्थिति में इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन कराना पड़ता है.
2. कई बार वीर्य की जांच में शुक्राणुओं की संख्या तो ठीक होती है, पर उनमें गतिशीलता नहीं होती. यह समस्या दवाइयों से सुलझाई जाती है.
3. कई बार वीर्य की जांच में शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता दोनों कम होते हैं. यह समस्या दवाइयों से ठीक हो जाती है.
4. रिपोर्ट में शुक्राणुओं की अनुपस्थिति मरीज को निराशा की गर्त में पहुंचा देती है. हां, आधुनिक टेक्नॉलाजी से शुक्राणुओं के न होने के कारणों का पता लगाकर इसका इलाज किया जा सकता है.
5. कई बार शुक्राणु बनते तो हैं, परंतु अंदरूनी अवरोध से बाहर नहीं आ पाते. ऐसे में एक छोटे-से ऑपरेशन से यह समस्या दूर हो जाती है.
इंफर्टिलिटी के कारण
लाइफस्टाइलः इंफर्टिलिटी का प्रमुख कारण आजकल की बदलती लाइफस्टाइल है. स्पर्म बनने के लिए विशिष्ट तापमान और वातावरण की ज़रूरत होती है. आजकल काम के घंटे लंबे होने के साथ शिफ्ट ड्यूटी होती है. नींद का समय, खाना खाने का समय सब कुछ डिस्टर्ब हो जाता है. तनाव और थकान इतनी हो जाती है कि सेक्स की इच्छा ही नहीं रह जाती. इन सारी बातों का स्पर्म काउंट पर असर पड़ता है.
हार्मोन्सः स्पर्म्स बनना एक न्यूरो हार्मोनल प्रोसेस है, जिसे दिमाग द्वारा कंट्रोल किया जाता है. स्ट्रेस और डिप्रेशन से दिमाग पर असर पड़ता है, जिससे स्पर्म बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है.
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डायबिटीज़ः डायबिटीज़ से अनेक समस्याएं हो सकती हैं, जैसे-सेक्स की इच्छा में कमी, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (लिंग की उत्तेजना में कमी) आदि. डायबिटीज़ से स्पर्म की गतिशीलता (मोटेलिटी) पर भी असर पड़ता है. कई बार बीमारियों के लिए ली जाने वाली दवाइयां भी स्पर्म प्रोडक्शन को प्रभावित करती हैं.
शारीरिक संबंधों की तीव्रताः शारीरिक संबंधों की तीव्रता भी स्पर्म प्रोडक्शन पर असर डालती है. रोज बनने वाले शारीरिक संबंध स्पर्म के कॉन्सन्ट्रेशन को कम कर देते हैं. कई बार इरेक्टाइल फंक्शन और प्रीमिच्योर इजाकुलेशन की समस्याओं से भी स्पर्म काउंट प्रभावित होता है.
एक से ज़्यादा पार्टनर का होनाः संक्रमण (इन्फेक्शन) से भी स्पर्म काउंट और वीर्य स्खलन (इजाकुलेशन) के प्रोसेस पर असर पड़ता है. एक से ज्यादा पार्टनर होने पर एस. टी. डी. (सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़), टी.बी. और फर्टिलिटी प्रभावित होने का खतरा होता है.
न्यूट्रीएंट्स की कमीः विटामिन सी, सेलेनियम और ज़िंक या फोलेट की कमी भी फर्टिलिटी को प्रभावित करती है.
अन्य कारण
. बीड़ी-सिगरेट पीना, तंबाकू खाना और शराब का ज़्यादा सेवन धीरे-धीरे इंफर्टिलिटी की ओर अग्रसर करता है.
. गरम वातावरण जैसे फैक्ट्री या चिमनी के पास काम करनेवालों में यह समस्या ज़्यादा पाई जाती है.
. लिमिट से ज़्यादा साइकिल चलाना, कार, टैक्सी, ऑटोरिक्शा चलाना या अन्य ऐसे काम जिससे टेस्टीस का घर्षण होता है, से इंफर्टिलिटी की प्रॉब्लम आती है.
लक्षण
1. सेक्सुअल फंक्शन, जैसे- सेक्स ड्राइव कम होना, इरेक्टाइल डिसफंक्शन जैसी समस्या का होना.
2. टेस्टिकल एरिया में सूजन, गांठ या दर्द होना.श्र चेहरे या शरीर पर बालों का कम होना आदि.
3. चेहरे या शरीर पर बालों का कम होना आदि.
इन बातों का रखें ध्यानइन बातों का रखें ध्यान
. टेस्टीस का तापमान हमेशा ज़्यादा होता है इसलिए ज़्यादा गर्मी या गर्म स्थान पर काम करने से तापमान और अधिक बढ़ जाता है, जो नुकसानदायक होता है. अतः अधिक तापमान से आने के थोड़ी देर बाद ठंडे पानी से नहाएं. अगर ज़्यादा गर्मी महसूस हो तो टेस्टीस का तापमान कम करने के लिए उस पर बर्फ लगाएं.
. नियमित रूप से एक्सरसाइज करें. अतिरिक्त मोटापा घटाएं अन्यथा टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की अनियमितताएं हो सकती हैं. ध्यान रहे, हैवी शारीरिक व्यायाम न हो. इसका भी फर्टिलिटी पर नकारात्मक असर पड़ता है.
. हमेशा सूती अंडर गार्मेंट्स पहनें. इस बात का भी ध्यान रखें कि वो बहुत टाइट फिटिंग के न हों, ढीले व आरामदायक हों, जिससे हवा की आवाजाही हो सके.
. पौष्टिक खाना खाएं, जो फैट और ज़्यादा प्रोटीनयुक्त हो. हरी सब्जियां, साबूत अनाज और फल खाएं.
. वेजाइनल टेबलेट्स और लुब्रिकेंट्स का ज़्यादा इस्तेमाल न करें.
. लैपटॉप को ज़्यादा देर तक पैरों पर लेकर न बैठें और न ही सेलफोन को फैंट की जेब में रखें. टेस्टीकल्स को ज़्यादा गर्मी से बचाएं.
. तनाव से बचने के लिए नियमित रूप से योग व मेडिटेशन करें.
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