Close

कहानी- सच्चा सैनिक (Short Story – Sachcha Sainik)

mirdula-gupta-photo       मृदुला गुप्ता  
“बहू, वह नहीं जानता कि गर्मियों में पानी की कितनी कमी हो जाती है. एक-एक बाल्टी पानी के लिए ग़रीब लोग घंटों लाइन में लगे रहते हैं, तब कहीं जाकर पानी नसीब होता है. मैं कल कार्तिकेय से उसकी शिकायत करूंगा.”
  Hindi Short Story कल से ही घर में चहल-पहल और गहमागहमी थी. प्रेस फोटोग्राफर, बड़े-बड़े अख़बारों के संवाददाता और इंटरव्यू लेनेवाले तमाम लोग आ-जा रहे थे. मित्रों व रिश्तेदारों के बधाई संदेश अलग से आ रहे थे. इसकी वजह भी थी. दरअसल, मेरे दादाजी राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए मनोनीत हुए थे. अगले वर्ष गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति दादाजी को पुरस्कार देंगे. दादाजी को यह पुरस्कार उनकी किस उपलब्धि के कारण मिला है, यह बताने से पहले उनकी निजी ज़िंदगी के विषय में कुछ बातें बता दूं. दादाजी का जन्म राजस्थान के ऐसे क्षेत्र में हुआ था, जहां चारों तरफ़ रेत ही रेत थी. दूर-दूर तक हरियाली का नामोनिशान नहीं. पानी की इतनी कमी कि धनाढ्य घरों में पानी ऊंट की पीठ पर लादकर लाना पड़ता था. ग़रीब घरों में महिलाएं मीलों चलकर घड़ों और कलसों में पानी भरकर लाती थीं. दादाजी का बचपन ऐसे ही वातावरण में व्यतीत हुआ था. उनकी इच्छा फौज में जाने की थी. वह एक लंबे-चौड़े बलिष्ठ युवक थे. इंटर की परीक्षा के बाद जब उनके पापा उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए जयपुर भेजना चाहते थे, तब उन्होंने फौज में जाने की ज़िद पकड़ ली. लेकिन घरवाले उनकी ज़िद के सामने नहीं झुके, तब वह घर से भाग गए. घरवालों की इच्छा के विरुद्ध उन्होंने फौज में जाना तय किया. शारीरिक रूप से बलिष्ठ थे, अतः उनका चयन फौज में हो गया. ट्रेनिंग समाप्त करने के बाद जब वे एक फौजी के रूप में अपने घर लौटे, तब उन्हें घरेलू विरोधों का सामना करना पड़ा. दादाजी ने अपने बच्चों को भी फौज में जाने के लिए प्रेरित किया. मेरे पापा तो सिविल इंजीनियर हैं, लेकिन मेरे दोनों चाचा फौज में अफ़सर हैं. उन्हें दादाजी ने शुरू से ही सैनिक स्कूल में पढ़ाया. आजकल मेरे बड़े चाचा कर्नल और छोटे चाचा कैप्टन हैं. इस दृष्टि से देखा जाए, तो मेरे दादाजी का भरा-पूरा सुखी परिवार है. अब वे रिटायर हो चुके हैं. उनका फौजी करियर बहुत ही शानदार रहा. उनके अनेक वीरता पुरस्कारों से हमारा ड्रॉइंगरूम भरा पड़ा है. “यह कार्तिकेय अपने को समझता क्या है? उसका नौकर कुछ भी करेगा या कहेगा, मैं सहन करता जाऊंगा. कल ही उसकी ख़बर लेता हूं. रोज़ का ही काम है. मैंने कभी कुछ कहा नहीं, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि वह मनमानी करता जाए. बड़ा अफ़सर है तो क्या? उसकी तो और भी अधिक नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वह ऐसा कोई काम न करे, जो जनता के हित में न हो.” दादाजी लगातार बड़बड़ा रहे थे. दादी उन्हें शांत करने का विफल प्रयास कर रही थीं. मम्मी भी उनसे बार-बार पूछ रही थी. “पापाजी क्या बात है? आपके लिए ग़ुस्सा करना हानिकारक है. प्लीज़ हमें बताइए क्या हुआ है?” “क्या बताएं बहू, मैं जब घूमने जाता हूं, तब सब कोठियों के नौकर पौधों में पानी डालते मिलते हैं या फिर अपनी-अपनी गाड़ियां धो रहे होते हैं. किसी को भी इस बात की परवाह नहीं कि वे कितना पानी बरबाद कर रहे हैं. मुझे ख़राब लगता था, लेकिन मैंने कभी किसी को टोका नहीं. आज जब मैं घूमने जा रहा था, तो कार्तिकेय का नौकर गाड़ी धो रहा था. पाइप हाथ में पकड़े वह मोबाइल पर बात कर रहा था. बिना यह परवाह किए कि कितना पानी सड़क पर बह रहा है. मैं जब लौटकर आया, तब भी वह उसी प्रकार पानी बरबाद कर रहा था. उसका ध्यान कार धोने से अधिक मोबाइल पर बात करने में था. पानी बह-बहकर सड़क पर आ गया था. मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने उससे कहा, “बेटा पहले पानी बंद कर दो, तब फोन पर बात करो.” इतना सुनते ही वह बड़बड़ाने लगा. अभद्रता करने लगा. बहू, वह नहीं जानता कि गर्मियों में पानी की कितनी कमी हो जाती है. एक-एक बाल्टी पानी के लिए ग़रीब लोग घंटों लाइन में लगे रहते हैं, तब कहीं जाकर पानी नसीब होता है. मैं कल कार्तिकेय से उसकी शिकायत करूंगा.” इतना कहकर दादाजी हांफने लगे. मम्मी ने उन्हें पानी पिलाया, तब कहीं जाकर शांत हुए. उस दिन दादाजी पूरे दिन अशांत रहे. दादी भी उन्हें समझाती रहीं. उन दोनों में पता नहीं क्या विचार-मंत्रणा हुई कि अगले दिन दादाजी-दादी नाश्ता करने के बाद कार्तिकेय अंकल के यहां चले गए. कार्तिकेय अंकल आई.पी.एस. अधिकारी हैं तथा उनकी कोठी हमारे घर से थोड़ी दूरी पर ही है. मैंने उनसे बार-बार पूछने का प्रयास किया कि अंकल से क्या बात हुई, पर उन्होंने मुझे अभी कुछ भी बताने से मना कर दिया. इतना मैंने अनुभव किया कि वहां से आकर वे काफ़ी ख़ुश थे. अब प्रतिदिन दादी-दादाजी नाश्ता करने के बाद कहीं चले जाते. वहां से कभी अच्छे मूड में, तो कभी उखड़े मूड में लौटते. पूछने पर किसी को भी कुछ न बताते. मेरे पापा बाहर रहते हैं. वह कभी-कभी आते हैं. मैंने सोचा इस बार पापा जब आएंगे, तब दादाजी उनसे तो अवश्य ही सब बातें बताएंगे. लेकिन जब पापा आए, तब भी उन्होंने कुछ नहीं बताया. अब मेरी जिज्ञासा चरम पर पहुंच गई थी. बार-बार पूछने पर भी वे कुछ नहीं बताते, बस इतना कहते, “सब्र करो रुद्र, जल्दी ही तुम्हें सब कुछ बताऊंगा.” वे मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उनका इकलौता पोता जो हूं. आख़िर वह दिन आ ही गया. दादाजी ने मुझे अपने पास बुलाया. बोले, “जा अपनी मम्मी को बुला ला. आज मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं और तुम्हारी दादी एक महीने से हर रोज़ कहां जा रहे थे?” मम्मी के आने के बाद दादाजी ने बताना शुरू किया. “हम दोनों हर रोज़ तीन-तीन घरों में लोगों से मिलने जाते थे. हम दोनों बुज़ुर्ग हैं, अतः सब घरों में हमारा स्वागत बड़े मान-सम्मान के साथ होता था. स्वाभाविक-सी बात है कि वे लोग हमसे आने का कारण पूछते, तब हम उनसे कहते, “हम आपसे कुछ मांगने आए हैं.” “हां-हां अंकल, आप आदेश कीजिए. हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं?” “आप सभी शिक्षित लोग हैं. इतना तो जानते ही होंगे कि पानी हमारे लिए कितना क़ीमती है. उसकी बरबादी करना ठीक नहीं है. हम सबका यह नैतिक कर्त्तव्य है कि हम पानी की बरबादी न होने दें. इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा. आसपास जितने भी लोग हैं, वे सब जानते हैं कि पानी अमूल्य है, लेकिन उसे बचाने के विषय में कोई भी गंभीरता से नहीं सोचता. हमारा प्रयास उन्हें जागृत करके यह बताना है कि हर व्यक्ति अपने निजी प्रयास से पानी की काफ़ी बचत कर सकता है, जिससे आनेवाले सालों में पानी का अकाल न पड़े.” “उसके लिए हमें क्या करना होगा?” प्रायः यह प्रश्‍न सभी करते. “अधिक कुछ भी नहीं, बस पौधों की सिंचाई के समय यह ध्यान रखें कि पानी गमले से बाहर न गिरे. गाड़ी धोते समय बाल्टी में पानी लेकर मग से गाड़ी धोएं, इससे आप पाएंगे कि जो काम चार-पांच बाल्टियों में होता था, अब वो एक बाल्टी में होने लगा. जहां तक हो, कोशिश करें कि शॉवर में कम ही नहाएं. कपड़े धोने से बचा पानी घर-आंगन धोने के काम में लाएं. नल खोलकर उसकी धार में बर्तन न धोएं और पीने का पानी उतना ही ग्लास में लें, जितना पी सकें. यही कुछ छोटी-छोटी, पर उपयोगी बातें हैं, जिन्हें अपनाकर हम इस क़ीमती पेय को बचा सकते हैं.” “वैसे तो सरकार अपने स्तर पर वर्षा के जल को संचित करने के उपाय कर रही है, लेकिन हर नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है कि व्यक्तिगत तौर पर भी कुछ प्रयास किए जाएं, तभी लगभग समाप्त होती इस अनमोल निधि को हम बचा सकते हैं.” “दादाजी क्या सब लोगों ने आपसे सहमति जताई. कहीं पर विरोध भी तो हुआ होगा?” मैंने प्रश्‍न किया. “हां, कुछ लोग असहमत लगे, पर हमारे सुझाव इतने सटीक थे कि अधिकतर लोग सहमत ही रहे. बेटा, कोई भी नेक काम करना हो, तो मान-अपमान का विचार नहीं करना चाहिए. दस लोग आपका समर्थन करेंगे, तो चार लोग विरोध भी अवश्य करेंगे. इस तरह एक महीने में हम क़रीब सौ घर गए. अब काफ़ी लोग हमें जानने-पहचानने लगे. कुछ परिवार तो हमारे साथ जुड़ भी गए. उन्होंने वादा भी किया कि हम अपने रिश्तेदारों और दोस्तों तक आपके विचार ज़रूर पहुंचाएंगे.” “सबसे बड़ी उपलब्धि उस दिन हासिल हुई, जब हम एक समाचार पत्र के संपादक के घर पहुंचे. उन्होंने बड़े सम्मान से हमारा स्वागत किया. हमारे विचार जानकर वे कहने लगे कि आपके प्रयास की मैं दिल से सराहना करता हूं और आपके विचारों से पूर्ण सहमत भी हूं. यदि आप अपने विचार मेरे अख़बार के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाएं, तो और भी बेहतर परिणाम निकलेंगे. वैसे भी आपकी उम्र घर-घर जाने की नहीं है. आप अपने विचारों से भी इसे कार्य को आगे बढ़ा सकते हैं. मैं अपने अख़बार के माध्यम से जन-जन तक आपकी बात पहुंचाऊंगा. बस, तभी से मैं अख़बार में नित्य एक कॉलम लिखने लगा.” इतना सब बताकर दादाजी हांफने लगे. हम चकित-से उन्हें और दादी को निहार रहे थे. आज हमें पता चला कि मेरे दादाजी चुपचाप कितना पुण्य का कार्य कर रहे थे. मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया. मम्मी भी बहुत ख़ुश हुईं. इस प्रकार दादाजी का प्रयास उस पत्र के माध्यम से जन-जन तक पहुंचा. हमारी कॉलोनी में भी अब काफ़ी हद तक पानी की बरबादी कम हो गई है. कार्तिकेय अंकल का नौकर तो दादाजी से माफ़ी भी मांग गया है. दादाजी ने अख़बार के माध्यम से केवल पानी बचाने के उपाय ही जनता तक नहीं पहुंचाए, बल्कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के भी अमूल्य सुझाव बताए. इस तरह दादाजी की प्रसिद्धि जल्द ही अपने शहर से निकलकर अन्य शहरों, कस्बों और गांवों तक पहुंच गई. उनके विचारों का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा. उसी का परिणाम है कि जिलाधीश ने दादाजी का नाम राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नामित किया. तभी तो मेरे दादाजी को इसके लिए चुना गया है. दादाजी ने एक फौजी के रूप में सीमाओं पर देश की रक्षा के लिए कार्य किया. उनके कार्यकाल में दो युद्ध लड़े गए, जिनमें हम विजयी हुए. रिटायरमेंट के बाद भी वे देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को नहीं भूले, बल्कि एक सच्चे नागरिक के रूप में उन्होंने सच्चे सैनिक होने का प्रमाण दिया. मुझे अपने दादाजी पर गर्व है.

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article