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पहला अफेयर: तुम्हारा मुजरिम! (Pahla Affair: Tumhara Mujrim)

Pahla Affair
पहला अफेयर: तुम्हारा मुजरिम! (Pahla Affair: Tumhara Mujrim)
पहले प्यार (FirstLove) का एहसास होता है बेहद ख़ास, अपने फर्स्ट अफेयर (Affair) की अनुभूति को जगाने के लिए पढ़ें रोमांस से भरपूर पहला अफेयर  क्यों इस तरह अधूरा छोड़कर चले गए तुम मुझे... मुकम्मल होने को बेक़रार था इस बार मेरा तन-मन, तुम्हारे साथ, तुम्हारी उस छुअन की वो सिहरन... तुम्हारा यूं लगातार मुझे देखते रहना... अपने हाथों से मुझे खाना खिलाना... इतना सारा व़क्त हमने एक साथ गुज़ारा... फिर ये कैसी प्यास जगाकर मुझे तन्हा छोड़ दिया... जानती थी कि तुमको तो लौटना जाना है एक दिन अपने लोगों के बीच... अपनों में... पर मेरा क्या... मुझे अपना बनाकर क्यों बेगानों में यूं छोड़ गए? तुमने तो कहा था कि इस बार जब मैं आऊंगा, तो तुमको अपने साथ ही लेकर जाऊंगा... फिर क्यों इस तरह बिना हमारी ज़िंदगी का फैसला किए तुम चले गए... कितने दिन बीत गए, न तुमने कोई फोन किया, न तुम्हारी कोई ख़बर आई... मुझे लगने लगा है अब तो जैसे ये रिश्ता, ये प्यार बस एक फरेब था... तुम्हें जो चाहिए था, वो तुमने पा लिया... अब पीछे मुड़कर देखने के लिए क्या बचा था तुम्हारे लिए... अगर मेरी परवाह होती, तो ज़रूर हमारे प्यार का सिलसिला आगे बढ़ता... मेरी ज़िंदगी तो रुकी हुई है अब भी उसी मोड़ पर, बस किसी तरह धक्का मारकर चला रही हूं... पर अब जो सच सबके सामने आएगा, उसका सामना मैं कैसे करूंगी... मैं प्रेग्नेंट हो गई हूं... और मेरे बच्चे को कौन अपनाएगा? यही सोच-सोचकर परेशान हूं... स़िर्फ रितिका को इस सच के बारे में पता है... “हैलो, प्रिया... कैसी हो...?” “रितिका, मैं कैसी हो सकती हूं तुम ही बताओ... मैं कुछ डिसाइड ही नहीं कर पा रही.” “तुम इस बच्चे को जन्म देने के बारे में सोच भी कैसे सकती हो, जो इंसान तुमको मंझधार में छोड़कर चला गया, तुम उसके बच्चे को दुनिया में लाने के लिए सबसे दुश्मनी ले लोगी?” “ये बच्चा स़िर्फ उसका ही नहीं, मेरा भी है... पर शायद तुम सच कह रही हो, बस, कल तक मैं कोई न कोई निर्णय ले लूंगी.” आज ऑफिस में भी मन नहीं लग रहा... डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लेती हूं, भला मैं उस धोखेबाज़ इंसान के लिए अपनी ज़िंदगी दांव पर क्यों लगाऊं... “प्रिया... सुनो, हैलो... प्रिया शर्मा!” यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: तुम मेरे हो… (Pahla Affair: Tum Mere Ho) अपना नाम सुनकर मैं चौंक गई, पीछे मुड़कर देखा, तो ये क्या... “विक्रम, तुम आज अचानक यूं? मैं तो समझी थी कि तुम अब तक भूल चुके होगे कि प्रिया नाम की भी कोई लड़की थी तुम्हारी ज़िंदगी में...” “प्रिया, मुझे पता है, तुम मुझे फरेबी, धोखेबाज़ और न जाने क्या-क्या समझ रही होगी... पर मेरी मजबूरी थी...” “ऐसी क्या मजबूरी थी विक्रम कि तुम एक फोन या एक मैसेज तक नहीं कर पाए?” “प्रिया, हम किसी कॉफी शॉप में बैठकर बात करें?” “बात करने के लिए अब बचा ही क्या है... मुझे डॉक्टर के पास जाना है, जो कहना है, यहीं कहो...” “ठीक है प्रिया, दरअसल मैं जिस कंपनी में जॉब करता था, वहां बहुत बड़ा फ्रॉड हुआ था, जिन्होंने फ्रॉड किया था, उन्होंने मुझे बुरी तरह फंसा दिया था, क्योंकि मैंने कुछ दिन पहले ही उनकी शिकायत कंपनी के ओनर से की थी. मैं छुट्टी पर था, तो उन्होंने मौक़ा देखकर मुझे ही फंसा दिया और पुलिस में शिकायत तक दर्ज करवा दी. मेरे घर वापस जाते ही पुलिस ने मुझे गिरफ़्तार कर लिया और मैं इन सबके बीच तुमसे कोई संपर्क न कर सका... मेरे दोस्तों ने सच्चाई का पता लगाया और पुलिस की जांच के बाद सारा सच सामने आ गया. मैं अगर मुजरिम हूं, तो बस तुम्हारा... और अब तुम्हारा ये मुजरिम तुम्हारे सामने है, जो सज़ा दोगी, मैं सहने को तैयार हूं.” मेरी आंखों से आंसू बह निकले... कभी-कभी छोटी-छोटी ग़लतफ़हमियां बड़े-बड़े रिश्ते तोड़ देती हैं... “प्रिया, क्या सोच रही हो... और तुम डॉक्टर के पास क्यों जा रही हो? सब ठीक तो है न...?” “विक्रम, आज तुम अगर नहीं आते, तो मुझसे बहुत बड़ा पाप हो जाता... क्या हम कॉफी शॉप पर चलकर बात करें...” विक्रम और मैंने कॉफी शॉप में ढेर सारी बातें कीं... “प्रिया, मैं पापा बननेवाला हूं, इससे बड़ी ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है? चलो, आज ही घरवालों से चलकर बात करते हैं... मेरे घर में सभी तैयार हैं, मैं तुम्हारी लिए ही यहां आया था.” “विक्रम, अगर तुम सही व़क्त पर न आते, तो मैं ख़ुद को कभी माफ़ नहीं कर पाती...” “अब तो मैं आ गया न... तुम्हारा मुजरिम... तो जो हो सकता था वो मत सोचो, अब जो ख़ुशियां आनेवाली हैं हमारी ज़िंदगी में उनका स्वागत करो...”

- गीता शर्मा

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