क्यों ज़रूरी हैं रिप्रोडक्टिव राइट्स?
आज भी हमारे समाज में पुरुषों का दबदबा है और यही कारण है कि महिलाओं को दोयम दर्जा मिला है. उन्हें हमेशा कमज़ोर और दया का पात्र समझा जाता है. उन्हें कोमल और कमज़ोर समझकर कोई उनसे जबरन बच्चे पैदा न करवाए या फिर ज़बर्दस्ती गर्भपात न करवाए, इसलिए रिप्रोडक्टिव राइट्स हर महिला की सेहत और अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत ज़रूरी हैं.क्या हैं आपके रिप्रोडक्टिव राइट्स?
1994 में कैरो में हुए इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन पॉप्यूलेशन एंड डेवलपमेंट में महिलाओं के रिप्रोडक्टिव राइट्स के बारे में काफ़ी कुछ डिस्कस हुआ था. हमारे देश में ये सारे अधिकार लागू हैं. आप भी जानें, क्या हैं ये अधिकार. - हर कपल को यह पूरा अधिकार है कि वो बिना किसी दबाव के अपनी मर्ज़ी से यह निर्णय ले सके कि वो कितने बच्चे चाहते हैं, 1, 2, 4 या फिर 1 भी नहीं. - शादी के कितने सालों बाद बच्चे पैदा करने हैं. - दो बच्चों के बीच कितने सालों का अंतर रखना है. - आपको फैमिली शुरू करने के लिए ज़रूरी जानकारी मिलने का पूरा अधिकार है. - उच्च स्तर के रिप्रोडक्टिव हेल्थ केयर की सुविधा मिलना आपका अधिकार है. - बिना किसी भेदभाव, हिंसा और दबाव के आपको पूरी आज़ादी है कि आप बच्चों के बारे में प्लान कर सकें. - हर महिला को उच्च स्तर की सेक्सुअल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ केयर की सुविधा मिलनी चाहिए. - यह आपका निर्णय होगा कि आप फैमिली प्लानिंग ऑपरेशन कब कराना चाहती हैं. उसके लिए आप पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं बना सकता. - आपको सेफ और वाजिब दाम पर फैमिली प्लानिंग के मेथड उपलब्ध कराए जाएं. - आपको पूरा हक़ है कि आप जिस उम्र में चाहें, उस उम्र में शादी करें और फैमिली की शुरुआत करें. - क्योंकि सेक्सुअल हेल्थ आपके रिप्रोडक्टिव हेल्थ से जुड़ी है, इसलिए किसी भी तरह के सेक्सुअल एब्यूज़ का आप विरोध करें. उसके ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई करें. जानें इन सरकारी सुविधाओं के बारे में - सरकार ने सभी सरकारी अस्पतालों में ये सभी सुविधाएं मुहैया कराई हैं, जहां महिलाएं अपने रिप्रोडक्टिव राइट्स का इस्तेमाल कर सकती हैं. - समय-समय पर महिलाओं के लिए सरकार की तरफ़ से कई योजनाएं भी बनाई जाती हैं, ताकि मातृत्व को एक सुखद अनुभव बनाया जा सके. - जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत सभी गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों में प्रेग्नेंसी से लेकर डिलीवरी, दवा, ट्रांसपोर्ट आदि सेवाएं मुफ़्त हैं. सिज़ेरियन डिलीवरी के लिए भी कोई पैसा नहीं लिया जाएगा. - प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों में चेकअप आदि की सारी सुविधाएं मुफ़्त हैं. - सभी सरकारी अस्पतालों में फैमिली प्लानिंग के सभी मेथड की जानकारी महिलाओं को दी जाती है, ताकि वो अपनी सुविधानुसार किसी एक मेथड का इस्तेमाल कर सकें. - किलकारी मैसेजेस, एक ऑडियो मैसेज सुविधा है, जो सरकारी अस्पतालों की ओर से प्रेग्नेंट महिलाओं को भेजे जाते हैं. इसमें उनके खानपान, सेहत और गर्भ की सुरक्षा के लिए कई टिप्स बताए जाते हैं.यह भी पढ़ें: हर वर्किंग वुमन को पता होना चाहिए ये क़ानूनी अधिकार (Every Working Woman Must Know These Right)
घट रही है मैटर्नल मोर्टालिटी रेट
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आज प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान महिलाओं की मृत्युदर में कमी आई है, पर अभी भी हर घंटे डिलीवरी के दौरान 5 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है. - वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2015 में भारत में हर 1 लाख चाइल्ड बर्थ में 174 महिलाओं की मौत हो जाती थी, जो 2010 में 215 था. - एक अनुमान के अनुसार, हर साल चाइल्ड बर्थ के दौरान लगभग 45 हज़ार मांओं की मृत्यु हो जाती है. - मैटर्नल और नियोनैटल मोर्टालिटी को कम करने के इरादे से सरकार प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना लेकर आ रही है, ताकि उनकी मृत्यु दर को कम किया जा सके.मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971
गर्भपात का निर्णय हमारे रिप्रोडक्टिव राइट्स से जुड़ा है, इसलिए हर महिला को इसके बारे में पता होना चाहिए. - हमारे देश में 1971 से ही एबॉर्शन लीगल है, पर आज भी बहुत-सी महिलाएं इस बात को नहीं जानतीं. - एक अनुमान के मुताबिक क़रीब 8% मैटर्नल डेथ अनसेफ कंडीशन्स में एबॉर्शन कराने के दौरान हो जाती है. - हर महिला को पता होना चाहिए कि कुछ विशेष हालात में आप क़ानूनन अपना गर्भपात करवा सकती हैं, जैसे-- भ्रूण का सही तरी़के से विकास नहीं हो रहा.
- भू्रण में किसी तरह की ख़राबी आ गई.
- बलात्कार के कारण गर्भ ठहर गया हो.
- गर्भनिरोधक फेल हो गया.
- भ्रूण के कारण गर्भवती मां को ख़तरा हो.
- भ्रूण में किसी तरह की मानसिक और शारीरिक एब्नॉर्मिलिटी हो.-
- गर्भपात किसी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर से ही करवाएं.
सोच बदलने की ज़रूरत है
जस्टिस काटजू ने एक बार कहा था कि महिला सशक्तिकरण में क़ानून का रोल महज़ 20% होता है, जबकि 80% की महत्वपूर्ण भूमिका एजुकेशन सिस्टम की है, जहां लोगों की सोच को बदलकर ही इस मुकाम को हासिल किया जा सकता है. - पुरुषों की सोच को बदलने में तो बहुत समय लगेगा, पर महिलाएं तो पहल करें. सालों से चले आ रहे दमन का नतीजा है कि उनकी सोच ही उनकी दुश्मन बन गई है. - उन्होंने मान लिया है कि उनके शरीर पर उनके पति का अधिकार है और जो वो कहेंगे वही होगा. जो अपने शरीर को ही अपनी प्रॉपर्टी नहीं मानती, वो भला अधिकारों के लिए संघर्ष क्या करेगी. - महिलाओं को अपनी सोच बदलनी होगी. आपका शरीर आपकी अपनी प्रॉपर्टी है, आपकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ कोई और उसके बारे में निर्णय नहीं ले सकता.- अनीता सिंह
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