कहीं अंजाने में अपने बच्चों को ग़लत आदतें तो नहीं सिखा रहे हैं? (Is Your Child Learning Bad Habits From You?)
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आपका आचरण आपके बच्चों के लिए आदर्श होता है. आप भले ही उन्हें बड़े-बड़े लेक्चर दे लें, लेकिन वो वही बातें ग्रहण करते हैं, जो आपको देखकर सीखते हैं. ऐसे में आपको उन्हें क्या सिखाना है और किन आदतों से बचाना है, यह आपको ही तय करना है, क्योंकि अक्सर अंजाने में आप अपनी ग़लत आदतें अपने बच्चों को सिखा देते हैं. बेहतर होगा, बच्चों को सही बातें सिखाने के लिए पहले ख़ुद सही आचरण करें.झूठ बोलना: कभी रिश्तेदारों के सामने, तो कभी दोस्तों के साथ या कभी बच्चों से ही हम झूठ बोलते हैं. किसी का फोन आता है, तो हम बच्चों को बोलते हैं कि कह दो पापा/मम्मी घर पर नहीं हैं... ये तमाम बातें बच्चे हमसे ही सीख लेते हैं और फिर वो उनके व्यवहार में भी शामिल होने लगती हैं. उन्हें लगता है झूठ बोलना ग़लत नहीं है. मम्मी-पापा भी तो बोलते हैं. ख़ुद को बचाने के लिए, तो कभी यूं ही बिना किसी वजह के वो टीचर से, दोस्तों से और यहां तक कि हमसे भी झूठ बोलने लगते हैं.
क्या करें?
झूठ, फरेब व निंदा से बचें. बच्चों से छोटे-मोटे झूठ न बुलवाएं. आपको भले ही यह लग रहा हो कि बच्चा अपने खेल में मग्न है, लेकिन बच्चे दरअसल बहुत बारीक़ी से हमें ऑब्ज़र्व करते हैं और ऐसी चीज़ें जल्दी सीखते हैं.
हाइजीन पर ध्यान न देना: बुलबुल की टीचर अक्सर एक बात नोटिस कर रही हैं कि बुलबुल कुछ भी खाने के बाद अपने हाथ अपनी स्कर्ट से पोंछ लेती है. उन्होंने कई बार टोका भी, पर बुलबुल यह व्यवहार दोहराती रही. एक दिन उसकी टीचर ने पूछा, तो वो दंग रह गईं कि बुलबुल की मम्मी भी अक्सर खाना बनाते समय अपने हाथ अपनी नाइटी से ही पोंछती रहती हैं. बस, उसने भी यही सीख लिया.
क्या करें?
अच्छा होगा कि सुबह का रूटीन हम बच्चों के साथ ही करें. उन्हें टाइम पर उठाएं, उनके साथ सली़के से ब्रश करें. टॉयलेट ट्रेनिंग दें.
यहां-वहां कचरा न फेंकें. डस्टबिन का ही इस्तेमाल करें. खाने से पहले हाथ धोना, खाने के बाद भी हाथ धोकर टॉवेल से पोंछना... आदि बातें उन्हें करके दिखाएं.
पंक्चुअल यानी समय का पाबंद नहीं होना: हम में से अधिकांश लोगों की सोच यही होती है कि सबसे पहले पहुंचकर अपना महत्व क्यों कम करना... आख़िर सभी लोग लेट आते हैं, तो हम क्यों जल्दी जाएं. यही आदत हमारे बच्चे भी सीख जाते हैं. उन्हें भी लगता है कि लेट जाने का मतलब है अपना महत्व बढ़ाना.
क्या करें?
बच्चों को समय का महत्व समझाने से पहले हमें ख़ुद समय को महत्व देना होगा. हम अगर अनुशासन में रहेंगे, तो बच्चों को भी अनुशासित रखना व अनुशासन व समय का महत्व समझाना आसान होगा.
अनहेल्दी डायट: कभी पूरियां खाने का मन करता है, कभी समोसे, तो कभी पिज़्ज़ा... माना आप खाने के शौक़ीन हैं, लेकिन अपने बच्चों को जंक फूड खाने से रोकना चाहते हैं, तो ये उनके साथ अन्याय ही होगा. हम इतने बड़े होकर अपने खाने की आदतों को नहीं बदल पाते, तो छोटे बच्चों से कैसे उम्मीद करते हैं कि वो हेल्दी फूड खाएंगे?
क्या करें?
हेल्दी डायट स़िर्फ बच्चों के लिए ही नहीं सभी के लिए ज़रूरी है. आप हेल्दी खाएंगे, तो बच्चों को बेहतर तरी़के से कंविन्स कर पाएंगे कि वो भी जंक फूड कम खाएं.
यह भी पढ़े: मदर्स गाइड- बच्चों के आम रोगों में उपयोगी घरेलू नुस्ख़े (Mother’s Guide- Home Remedies For Children’s Common Illnesses)आलस करना: बच्चों को कहते हैं कि अर्ली टु बेड, अर्ली टु राइज़... पर ख़ुद लेट नाइट पार्टीज़ या फिर देर तक लैपटॉप पर ऑफिस का काम करना... सोशल साइट्स पर एक्टिव रहना, सुबह जल्दी उठने में आनाकानी करना, पानी का ग्लास तक भी ख़ुद उठकर न लेना, नहाने में आलस करना... ये तमाम बातें अपने आप में विरोधी हैं.
क्या करें?
घर में जल्दी सोने व समय पर उठने का माहौल शुरू से बनाएं. अपने-अपने काम ख़ुद करने की ट्रेनिंग सबको दें. अपने पानी व दूध का ग्लास, खाने के बर्तन ख़ुद उठाकर रखना, अपने कपड़ों को सही जगह पर रखना आदि सभी को करना चाहिए. इससे एक व्यक्ति पर काम का अधिक बोझ भी नहीं होगा और सबको अपने काम करने व अनुशासन में रहने की आदत भी पड़ेगी.
एक्सरसाइज़ न करना: फिटनेस की आदत सबको होनी चाहिए. आप ख़ुद सोफे पर पड़े रहते हैं, दिनभर टीवी देखते रहते हैं और बच्चों से अपेक्षा रखते हैं कि वो एक्टिव रहें, हेल्दी रहें. कम उम्र में मोटे न हों.
क्या करें?
बच्चों को अपने साथ योग व प्राणायाम करवाएं या उन्हें योगा क्लास जॉइन करवाएं. उनके साथ स्विमिंग, साइकिलिंग या जॉगिंग भी कर सकते हैं. आपका साथ उन्हें मोटिवेट करेगा और आपका व्यवहार उनका आदर्श बनेगा.
अव्यवस्थित रहना: कपड़े कहीं पड़े हैं, आलमारी में फाइल्स अव्यवस्थित हैं, किचन में सामान यहां-वहां है... कभी घर की चाभी ढूंढ़ते रहते हैं आप, तो कभी कोई ख़ास रंग का सूट या साड़ी... बच्चे स्कूल से आते हैं, बस्ता वहीं पटककर खेलने चले जाते हैं. मोज़े कहीं, जूते कहीं और कपड़े कहीं और ही... आप उन पर बरसते हैं कि यह क्या तरीक़ा है? अपना सामान ढंग से व सही जगह पर रखा करो... क्या वो आपकी बात सुनेंगे?
क्या करें?
रोज़ अगले दिन की प्लानिंग करें, वो भी बच्चों के सामने, इससे बच्चों में यह संदेश जाएगा कि उन्हें एडवांस प्लानिंग करनी चाहिए, ताकि सुबह की भागदौड़ से बचा जा सके. कोशिश करें कि घर को व अन्य सामान को व्यवस्थित रखने में बच्चों की भी मदद लें. इससे उन्हें भी पता चलेगा कि जो सामान जहां से उठाया, वहीं रखना ज़रूरी है, ताकि ज़रूरत के व़क्त वो आसानी से मिल जाए.
रेस्पेक्ट न करना: हो सकता अपनी सास से आपकी ट्यूनिंग इतनी अच्छी न हो या हो सकता है कोई पड़ोसी आपको पसंद न हो, पर अपना आक्रोश व रोष बच्चों के सामने जताने से बचें. आप अगर दूसरों को इज़्ज़त नहीं देंगे, तो बच्चे आपको भी रेस्पेक्ट नहीं देंगे. वो भी अपनी दादी से, अपने अंकल से दूर होते जाएंगे और उनकी नज़रों में उनका सम्मान कम होता जाएगा.
क्या करें?
आपसी मतभेद कितने भी गहरे हों, एक-दूसरे को अपशब्द कहने से बचें. बच्चों के सामने अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण रखें. अपनी शिकायतें आपसी बातचीत से हल करने की कोशिश करें. बच्चों के सामने चुगली व निंदा करने से बचें.
गाली देना या ग़लत भाषा का प्रयोग: अधिकांश पुरुष न स़िर्फ ग़ुस्से में, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी व बातचीत में भी गालियों का बहुत प्रयोग करते हैं. उनके लिए यह एक सामान्य बात है, यहां तक कि वो घर पर भी इसी तरह से बात करने से परहेज़ नहीं करते. पर ध्यान रखें कि आपका बच्चा आपको गाली देते देखेगा, तो बाहर जाकर दोस्तों के बीच उसका प्रयोग भी करेगा.
क्या करें?
ज़ाहिर-सी बात है, गाली देने से बचें. मज़ाक में भी बच्चों के सामने ऐसी भाषा का प्रयोग न करें. सबको सम्मान देना, सबसे प्यार से बात करना कितना ज़रूरी है, इसका महत्व बच्चों को समझाना ज़रूरी है और वो आप ख़ुद अपने व्यवहार से ही समझा सकते हैं.
यह भी पढ़े: पैरेंटिंग गाइड- बच्चों को स्ट्रेस-फ्री रखने के स्मार्ट टिप्स (Parenting Guide- Smart Tips To Make Your Kids Stress-Free)अल्कोहल/स्मोकिंग: शिकागो में हुए अध्ययन के मुताबिक बच्चे अगर अपनी गुड़िया या खिलौनों से भी खेलते हैं, तो वो पैरेंट्स का ही अनुसरण करते हैं. वो अपने गुड्डे को भी खेल-खेल में सिगरेट और शराब ऑफर करते हैं और उसी तरह व्यवहार व बातें करते हैं, जो पैरेंट्स को दोस्तों के साथ पार्टीज़ या गेट टु गेदर में करते देखते हैं.
क्या करें?
घर पर पार्टी करें, तो इन चीज़ों से जितना हो सके, बचें. बच्चों के सामने थोड़ा सतर्क रहना ज़रूरी है. यदि संभव हो, तो ये बुरी लत छोड़ ही दें.
ईटिंग हैबिट्स और टेबल मैनर्स: ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ करके खाना, खाने के बीच में उंगलियां चाटना, जूठे चम्मच से ही खाना लेना, जल्दी-जल्दी खाना, खाते समय बहुत ज़्यादा बोलना, फोन पर रहना आदि... ये तमाम चीज़ें आप अंजाने में करते हैं और फिर बच्चों को भी यही आदतें अंजाने में ही पास ऑन कर देते हैं.
क्या करें?
ख़ुद को सुधारें, बच्चे अपने आप सही बातें आपको देखकर सीख जाएंगे.
बहुत अधिक गैजेट्स का प्रयोग करना: हमेशा मोबाइल व लैपटॉप पर रहना और बच्चों से यह कहना कि मोबाइल इतना अधिक यूज़ मत करो, कितना जायज़ है?
क्या करें?
बच्चों के साथ-साथ अपना भी टाइम फिक्स करें कि इससे अधिक न तो आपको मोबाइल का इस्तेमाल करना है और न ही सोशल साइट्स पर रहना है. सबके लिए समान नियम रहेगा, तो बच्चों के लिए उसे व्यवहार में शामिल करना आसान होगा.
हर समय शिकायत करते रहना/ईर्ष्या करना: माना आपकी ज़िंदगी वैसी नहीं, जैसी आपने सोची थी, पर हर व़क्त शिकायत करते रहना, रोते रहना न स़िर्फ आपको नकारात्मक इंसान बनाएगा, आपके बच्चे को भी सकारात्मक नहीं बनने देगा. दूसरों की कामयाबी से ईर्ष्या रखना और उन्हें बुरा साबित करने की कोशिश करना भी नकारात्मक भाव है, जो बच्चों के मन में भी ईर्ष्या व द्वेष जैसी भावनाएं पैदा करते हैं.
क्या करें?
आप पहले ख़ुद को पॉज़िटिव बनाएं, यह सोचें कि आपकी ज़िंदगी भले ही आपकी कल्पना जैसी न हो, पर बहुतों से बेहतर है. अपने बच्चों को भी यही सिखाएं कि दूसरों के पास क्या है, इससे तुलना न करें, बल्कि यह देखें कि आपके पास क्या है, जो बहुत से लोगों के पास नहीं है. सकारात्मक पैरेंट्स व माहौल ही हेल्दी बच्चे के सफल भविष्य की नींव रख सकता है.
- विजयलक्ष्मी
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