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काव्य- वो निगाह मेरी है… (Kavya- Wo Nigah Meri Hai…)
कुछ तो मिलता है सोच कर तुझको
हर उड़ान की जद में आसमां नहीं होता
दिल अगर आंख, आंख दिल होती
तो दर्द लफ़्ज़ों का कारवां नहीं होता
सदमें और हक़ीक़त का फैसला अधूरा था
वरना धड़कन में तेरा बयां नहीं होता
ख़्वाब की जागीर में पेंच थे घटाओं के
यूं ही तेरी ज़ुल्फ़ में रूहे मकां नहीं होता
फ़रिश्ते भी मांगते हैं छांव तेरे पलकों की
वो निगाह मेरी है जहां राजदां नहीं होता...
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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