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ग़ज़ल- नमी आंखों में तेरी… (Gazal- Nami Aakhon Mein Teri…)
नमी आंखों में तेरी देखकर घुटता है दम मेरा
बड़ा बेचैन करता है तेरा उतरा हुआ चेहरा
तेरी मायूसियां दिल को परेशां करती रहती हैं
खुदा के वास्ते दे दे मुझे रंज-ओ-अलम तेरा
तेरे दुख बांट कर मुझ को बड़ा आराम मिलता है
बनूं मैं राज़दां तेरा शरीके ग़म बनूं तेरा
नहीं मिलता सुकूं मुझको परेशां देख कर तुझको
यही है कशमकश मेरी इसी उलझन ने है घेरा
मिले आराम से मंज़िल बना ले हमसफ़र मुझको
बनूं मैं हमनवा तेरा तू बन जा हमनवा मेरा...
वेद प्रकाश पाहवा ‘कंवल’
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