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इसलिए ज़रूरी है मी टाइम-शी टाइम दिन-रात मेहनत करते हुए जब कुछ समय बेफिक्रे होकर अपने फ्रेंड्स के साथ बिताने का मौक़ा मिलता है, तो आप एक बार फिर से चार्जअप हो जाते हैं. इससे आपको नई ऊर्जा मिलती है और आप अपना काम और तमाम ज़िम्मेदारियां ख़ुशी-ख़ुशी पूरी कर लेते हैं. महिलाएं जब फ्रेंड्स के साथ शॉपिंग, डिनर या हॉलिडेज़ पर जाती हैं, तो उस समय उन पर किसी तरह का बोझ नहीं होता, लेकिन जब वो परिवार के साथ घूमने जाती हैं, तो उनका पूरा समय परिवार के सभी सदस्यों की सेवा-टहल में ही गुज़र जाता है और वो अपने हॉलिडेज़ को एंजॉय नहीं कर पातीं. हॉलिडेज़ पर भी परिवार के सदस्य यही उम्मीद करते हैं कि घर की महिलाएं वहां भी उनकी ज़रूरत की हर चीज़ उनके हाथ में दे. लेकिन महिलाएं जब अपनी फ्रेंड्स के साथ घूमने जाती हैं, तो वो पूरी तरह आज़ाद होती हैं और अपने हॉलिडेज़ को ज़्यादा एंजॉय कर पाती हैं. मिल रहा है परिवार का सपोर्ट कुछ समय पहले तक जब महिलाएं स़िर्फ घर और करियर के बीच ही उलझी रहती थीं, तो उनके काम के बोझ का असर उनकी सेहत और व्यवहार पर भी पड़ने लगा, जिससे कपल्स के बीच झगड़े होना, परिवार में वाद-विवाद की स्थिति बढ़ने लगी. ऐसे में सुलझे हुए परिवार के लोगों को भी ये समझ आने लगा कि उनके घर की महिलाएं ख़ुश नहीं हैं और ऐसा होना परिवार के लिए ठीक नहीं है. ऐसे में घर की महिलाओं ने जब मी-टाइम की डिमांड करनी शुरू की, तो परिवार के लोगों को भी उनकी मांग सही लगी और उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी महिलाओं को अपने इस स्पेशल टाइम को एंजॉय करने की इजाज़त देनी शुरू कर दी. बस, यहीं से एक बार फिर शुरुआत हुई महिलाओं के मी-टाइम की. अब तो महिलाएं बकायदा वीकेंड पर या महीने में एक बार अपनी फ्रेंड्स के साथ मी टाइम ज़रूर बीताती हैं. साथ ही अब महिलाएं एक साथ हॉलिडेज़ पर जाने लगी हैं और उनके परिवार भी उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी घूमने जाने देते हैं. महिलाओं में आया ये बदलाव उनकी फिज़िकल-मेंटल हेल्थ के लिए बहुत अच्छा है. रिटायर्ड बैंक ऑफिसर माधवी शर्मा ने बताया, “हमारे ज़माने में इतना ही काफ़ी था कि ससुराल वाले हमें नौकरी करने की इजाज़त दे रहे हैं. मी-टाइम के बारे में सोचने की तो कभी हिम्मत ही नहीं हुई. किसी भी महिला के लिए घर और करियर दोनों एक साथ संभलना आसान नहीं होता. सबकी इच्छाएं पूरी करते-करते महिलाएं अपने बारे में सोचना ही भूल जाती हैं. मैंने झेला है इस तकलीफ़ को इसलिए मैं अपनी बहू के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहती. वो दिन-रात हम सबके लिए इतनी मेहनत करती है, मेरे बेटे के जितना ही कमाती भी है, तो क्या ये हमारी ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि हम भी उसकी ख़ुशी के बारे में सोचें.” ट्रैवल कंपनियां देती हैं स्पेशल पैकेज महिलाओं में बढ़ते मी-टाइम और शी-टाइम को देखते हुए अब ट्रैवल कंपनियां भी लेडीज़ स्पेशल ट्रैवल पैकेज देने लगी हैं, जिसमें महिलाओं की सेफ्टी और कंफर्ट का ख़ास ध्यान रखा जाता है. महिलाएं अपनी फ्रेंड्स के साथ इन ट्रैवल पैकेज का जमकर लुत्फ़ उठा रही हैं और अपने मी-टाइम को और भी ख़ास बना रही हैं. आरती अपनी चार सहेलियों के साथ हर साल एक हफ्ते के लिए घूमने का प्लान बनाती हैं और फ्रेंडस के साथ ख़ूब एंजॉय करती हैं. आरती ने बताया, “हम पांचों सहेलियां वर्किंग हैं और दिन-रात अपने काम में बहुत बिज़ी रहती हैं, लेकिन हम सब महीने में एक दिन ज़रूर मिलते हैं और उस दिन हम स़िर्फ अपने मन की करते हैं. वो एक दिन हम सबके लिए स्ट्रेस बस्टर का काम करता है और महीनेभर मेहनत करने की ऊर्जा देता है. हम सब साल में एक बार हफ्तेभर के लिए हॉलिडेज़ पर भी जाते हैं और ये हमारा गोल्डन टाइम होता है. परिवार-ऑफिस की सभी झंझटों से दूर इस एक हफ्ते को हम जी भर के जी लेते हैं. मुझे लगता है महिलाओं का मी टाइम उनकी ख़ुशी से ज़्यादा उनके मेंटल और फिज़िकल हेल्थ के लिए ज़रूरी है. गर्लफ्रेंड के साथ घूमना इसलिए है फ़ायदेमंद साइकोलॉजिस्ट माधवी सेठ कहती हैं, “जब एक लड़का और लड़की साथ घूमने जाते हैं, तो वो घूमना एंजॉय करने के बजाय एक-दूसरे को इंप्रेस करने में लगे रहते हैं, जिससे वो खुलकर नहीं रह पाते, लेकिन जब स़िर्फ लड़कियों या स़िर्फ लड़कों का ग्रुप कहीं घूमने जाता है, तो उनके बीच कोई फॉर्मेलिटीज़ नहीं होतीं, जिससे वो अपनी ट्रीप को पूरी तरह एंजॉय कर पाते हैं. यही वजह है कि मैरिड कपल भी एक-दूसरे के बजाय अपने फ्रेंड्स ग्रुप के साथ घूमने जाना ज़्यादा पसंद करते हैं और इसमें कुछ ग़लत नहीं है.”यह भी पढ़ें: कहीं आपको भी तनाव का संक्रमण तो नहीं हुआ है?
ये हैं महिलाओं में बढ़ते मी टाइम की ख़ास वजहें * अपनी आज़ादी को महसूस करने और ख़ुशी के पल जुटाने की चाह. * कुछ समय के लिए घर-परिवार, करियर की तमाम ज़िम्मेदारियों से ख़ुद को अलग करने की चाह. * अपना मेंटल स्ट्रेस कम करने के लिए महिलाएं चाहती हैं मी टाइम. * वर्किंग वुमन को कई बार काम के कमिटमेंट के कारण बच्चों की छुट्टियों में भी मायके जाने का मौक़ा नहीं मिलता इसलिए वो फ्री टाइम में फ्रेंड्स के साथ घूमना पसंद करती हैं. * वो अपनी आर्थिक आज़ादी को महसूस करना चाहती है और ऐसा वो अपने मी टाइम में ही कर पाती है. - कमला बडोनी
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