Link Copied
ग़ज़ल- थोड़ा-सा आसमान… (Gazal- Thoda-Sa Aasman)
ग़म इतने मिले ख़ुशी से डर लगने लगा है
मौत क्या अब ज़िंदगी से डर लगने लगा है
सोचा था मिलेगी मुकद्दसे ज़मीं हमें भी
खुले आसमान में दम घुटने-सा लगा है
ख़ुशी आने को बेताब है बांहों में मेरी
ग़म है कि रास्ता रोकने लगा है
मुझे मंज़ूर था उसका न आना हर बार
दिल है कि फिर तकाज़ा करने लगा है
काश! छिन लेती सितारों से हर ख़ुशी अपनी
अब ज़मीन से पांव उखड़ने-सा लगा है
हमने की है हर दवा मकदूर तलक़
तमन्नाओं का दम-सा अब घुटने लगा है
एक बार मिलने की ख़्वाहिश थी उससे मेरी
दिल है कि अब तसल्लियां देने लगा है
ग़मे दिल को सहारा देना है मुमताज़ अब
यह टूटकर बिखरने-सा लगा है...
- मुमताज़
मेरी सहेली वेबसाइट पर मुमताज़ की भेजी गई ग़ज़ल को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…
यह भी पढ़े: Shayeri