बर्थडे स्पेशल: कोमल मन और अटल इरादे... जानें अटलजी की ये दिलचस्प बातें... (Birthday Special: Happy Birthday Atal Bihari Vajpayee)
मन से कवि और कर्म से राजनेता, जी हां, यही पहचान है अटल बिहारी वाजपेयी की. अटलजी उन चंद राजनेताओं में से एक हैं, जिन्हें अपनी पार्टी के साथ-साथ विपक्षी दल भी उतना ही प्यार करते रहे हैं. उनका क़द इतना बड़ा है कि हर कोई उन्हें अदब और सम्मान की नज़र से देखता है.
- अटलजी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था.
- उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक कवि और स्कूल मास्टर के तौर पर की थी.
- आगे चलकर वो पत्रकारिता से जुड़े और फिर राजनीति में इस सितारे का आगमन हुआ.
- 1939 में वो स्वयंसेवक की तरह आरएसएस में शामिल हुए.
- वो भारत के प्रधानमंत्री भी बने और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने काफ़ी सराहनीय काम किए.
- अटलजी और उनके पिताजी ने एक साथ लॉ की पढ़ाई की, यहां तक कि उन्होंने होस्टल का रूम भी शेयर किया.
- 1957 में उन्होंने अपना पहला लोकसभा इलेक्शन यूपी की दो सीटों से लड़ा, जहां मथुरा में उन्हें हार मिली और बलरामपुर से जीत.
- उनकी वाकशक्ति यानी बोलने की कला व तर्कशक्ति से जवाहरलाल नेहरू भी इतने प्रभावित थे कि उन्होंने बहुत पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि एक दिन अटलजी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे.
- 1977 में वो मोरारजी देसाई मिनिस्ट्री में एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्टर बने थे और जब वो ऑफिस पहुंचे, तो देखा उनके कैबिन से पंडित नेहरू की तस्वीर गायब थी. इस पर उन्होंने कहा कि उनकी तस्वीर उन्हें वापस चाहिए.
- हिंदी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान व पहचान दिलाने का श्रेय अटलजी को ही जाता है, UN में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो यूनाइटेड नेशन में हिंदी में भाषण देनेवाले पहले शख़्स बने.
- वो तीन बार भारत के प्रधामंत्री बने- पहली बार 16 मई 1996 को 13 दिनों के लिए, दूसरी बार 19 मार्च 1998 को 13 महीनों के लिए और फिर तीसरी बार 13 अक्टूबर 1999 को पूरे 5 साल के लिए.
- मेरी सहेली की ओर से अटलजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं.
- अटलजी की कविता, जो अक्सर वो गुनगुनाते हैं...
1 गीत नहीं गाता हूँ
बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ ।
गीत नही गाता हूँ ।
लगी कुछ ऐसी नज़र,
बिखरा शीशे सा शहर,
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ ।
गीत नहीं गाता हूँ ।
पीठ मे छुरी सा चाँद,
राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ ।
गीत नहीं गाता हूँ
2 मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूं,
इतनी रुखाई कभी मत देना.
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