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हमारी ज़िंदगी ऐसी ही तो हो गई है, जहां रोज़ाना क्या करें, क्या न करें की एक फेहरिस्त हमें बांधे रखती है. सुकून, शांति और नैसर्गिक सुख से हम कोसों दूर हो चुके हैं. कई बार समय की ज़रूरतें पूरी करते-करते, अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि चाहकर भी अपने लिए, अपनों के लिए व़क्त नहीं निकाल पाते, अपनी इच्छाएं पूरी नहीं कर पाते... मुझे जब भी यह महसूस होने लगता है कि मैंने ख़ुद को ज़रूरत से ज़्यादा व्यस्त कर लिया है, तो मैं समझ जाती हूं कि कहीं न कहीं मेरे जीवन में असंतुलन आ गया है, जिसे स़िर्फ और स़िर्फ मैं ही ठीक कर सकती हूं. यह मुझे मेरे अनुभवों ने सिखाया है. ऐसे में मैं कुछ क़दम पीछे हट जाती हूं और उन चीज़ों के बारे में सोचती हूं, जो मुझे सुख व पूर्णता का आभास कराती हैं... तब मैं अपने नृत्य, ध्यान, योग, साधना के लिए व़क्त निकालती हूं, अपने परिवार के साथ व़क्त बिताती हूं... ऐसा करके मैं ख़ुद में फिर से वही ऊर्जा व शक्ति महसूस करती हूं.यह भी पढ़ें: हेमा मालिनी… हां, सपने पूरे होते हैं…! देखें वीडियो
कोई भी किसी मामूली-सी वजह से भी ख़ुद को खो सकता है, चाहे वो एक अयोग्य-सा रिश्ता हो, असंतुष्ट-सी नौकरी हो, अनुचित ज़िम्मेदारियां हों या कुछ भी इसी तरह का... ऐसे में यह आपको तय करना है कि आपको ख़ुद को कैसे खोजना है. इसके कई आसान से रास्ते हैं- आप एक छोटा-सा वेकेशन ले सकते हैं, या फिर अध्यात्म-योग, डांस या ऐसी ही किसी हॉबी में मन लगा सकते हैं. ख़ुद मैंने भी यह किया है, रोज़ाना चंद मिनटों तक करती हूं, ताकि अधिक केंद्रित हो सकूं और हर दूसरे महीने कुछ दिनों तक मैं यह ज़रूर करती हूं... और यक़ीन मानिए मैंने ख़ुद को बार-बार ढूंढ़ निकाला है... ख़ुद को पाया है... पूर्णत: परिपूर्ण रूप से! मुझे ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं... ज़िंदगी को शिद्दत से जीने के लिए एडजस्टमेंट्स करने ही पड़ते हैं, आप उनसे बच नहीं सकते.यह भी पढ़ें: हेमा मालिनी… मेरी ख़ूबसूरती का राज़… देखें वीडियो
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