बच्चों में नींद न आने के 7 कारण व उपाय (7 Causes Of Sleeplessness In Children And Its Solutions)
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जिस ऱफ़्तार से व़क़्त बदल रही है, उससे भी कहीं तेज़ी से बदल रही है हमारी लाइफ़स्टाइल, जिसने न स़िर्फ बड़ों, बल्कि मासूम बच्चों को भी तनाव, अवसाद का शिकार बना दिया है और उनकी रातों की नींद तक ग़ायब कर दी है... अब बड़े ही नहीं, बच्चे भी नींद न आने की बीमारियों से जूझ रहे हैं.
मां की लोरियां सुनकर सोना तो ख़ैर अब बीते ज़माने की बात होती जा रही हैं, क्योंकि आज की कामकाजी मां के पास न तो बच्चे को लोरी सुनाने का समय है और न ही आज के बच्चों को इसमें कोई रुचि है. उनके पास चटपटे कार्यक्रम परोसता टेलीविज़न, इंटरनेट या फिर मोबाइल फ़ोन जो है... और बच्चों की इन हरकतों पर अफ़सोस करने का भी हमें कोई हक़ नहीं है, क्योंकि बच्चों को ये सारी सुख-सुविधाएं या यूं कह लें मन बहलाव के साधन हमने ही मुहैया कराए हैं. आज के कामकाजी माता-पिता के पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय तो होता नहीं, ऐसे में अपना अपराधबोध दूर करने के लिए वो बच्चों को तमाम लक्ज़री आइटम ख़रीदकर दे देते हैं, बिना ये सोचे-समझे कि इनका बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास पर क्या असर पड़ेगा. आज ख़ासकर बड़े शहरों के ज़्यादातर घरों में खाने, सोने, मनोरंजन की आदतें इतनी बेतरतीब हो गई हैं कि इसका सीधा असर परिवार के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं मासूम बच्चे. वे जाने-अनजाने नींद न आने की तमाम बीमारियों से जूझ रहे हैं.
श्वेता (परिवर्तित नाम) सातवीं कक्षा में पढ़ती है. उसके अब तक के परफॉर्मेंस से न केवल उसके माता-पिता, बल्कि टीचर भी काफ़ी ख़ुश थे. लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसका पढ़ाई में मन नहीं लग रहा. टीचर ने कई बार जब उसे स्कूल में सोते पाया, तो उसके माता-पिता से शिकायत की. माता-पिता भी जब उसकी हरकतों से परेशान हो गए तो मनोचिकित्सक को दिखाया. उन्होंने सबसे पहले उसकी दिनचर्या का अध्ययन किया, तो पाया कि श्वेता रात एक-डेढ़ बजे तक टीवी सीरियल देखती थी और फिर दूसरे दिन स्कूल जाने के लिए उसे सुबह 6 बजे उठना पड़ता था. इस तरह रूटीन बिगड़ जाने से उसमें चिड़चिड़ापन भी आ गया था और उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था. श्वेता पढ़ाई में अच्छी थी, इसलिए माता-पिता उसकी हरकतों पर ध्यान ही नहीं देते थे. माता-पिता की इसी लापरवाही ने श्वेता को देर रात तक टीवी देखने की छूट दे दी और उसका पढ़ाई में से मन हटने लगा.
ख़ैर, श्वेता के माता-पिता ने तो व़क़्त रहते उसकी आदतों, दिनचर्या में बदलाव लाकर उसे संभाल लिया, लेकिन कई माता-पिता तो जान भी नहीं पाते कि उनके बच्चे को नींद न आने का कारण क्या है? कई घरों के बच्चे नींद में बड़बड़ाते हैं, डरावने सपने देखकर चीखते-चिल्लाते हैं, नींद में ही चलने लगते हैं, लेकिन माता-पिता इसे बच्चे की आदत समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं और बच्चे का रोग बढ़ता ही चला जाता है. नतीजा- न स़िर्फ बच्चे की नींद पूरी नहीं होती, बल्कि कई बार उसका शारीरिक-मानसिक विकास तक रुक जाता है. बच्चों के लिए पर्याप्त नींद कितनी ज़रूरी है बता रहे हैं- चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. समीर दलवाई.
डॉ. दलवाई के अनुसार, “पर्याप्त नींद हमारे लिए बेहद ज़रूरी है, क्योंकि नींद से हमारे शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है. सोने से ज़्यादा हार्मोन सक्रिय होते हैं, जिससे व्यक्तिगत विकास अच्छा होता है. ख़ासकर बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास पर नींद का बहुत असर पड़ता है. नींद पूरी न होने से बच्चे का विकास धीमा या फिर रुक सकता है. उम्र के हिसाब से बच्चे को भरपूर नींद मिलनी ही चाहिए, जैसे- पैदा होने के कुछ समय तक बच्चे का 20 घंटे सोना ज़रूरी है. इसी तरह 2 साल तक 12 से 14 घंटे, 2 से 5 साल तक 12 घंटे, 6 से 12 साल तक 10 घंटे और 12 साल के बाद 9 घंटे की नींद लेनी ही चाहिए.
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नींद न आने के कारण
1. शारीरिक कारण- इसमें वातावरण, घर-परिवार के लोगों का भरपूर सहयोग होते हुए भी शारीरिक तकली़फें नींद न आने का कारण बनती हैं. ज़्यादातर मामलों में खर्राटे लेना, मुंह खोलकर सोना, सांस रुक जाना, नींद में फिट आना, टॉन्सिल आदि मेडिकल तकलीफ़ों के कारण भी बच्चों में नींद न आने की शिकायत पाई जाती है.
2. लाइफ़स्टाइल- हमारी आज की लाइफ़स्टाइल यानी एकल परिवारों की बढ़ती तादाद, जो बच्चों को अपनी तरह से बचपन जीने नहीं देती. आज ख़ासकर बड़े शहरों में मम्मी-पापा दोनों कामकाजी हैं. ऐसे में बच्चा देर रात तक माता-पिता की राह देखता है. फिर उनके साथ खेलने, भोजन करने आदि में एक-डेढ़ तो बज ही जाते हैं. उस पर स्कूल जाने के लिए सुबह जल्दी उठने के कारण उन्हें स़िर्फ 5-6 घंटे की ही नींद मिल पाती है. छोटी उम्र में इतनी कम नींद लेने से बच्चे के विकास पर इसका असर पड़ता है. जबकि यूरोप, अमेरिका आदि देश बच्चों के मामले में काफ़ी सजग हैं. यहां पर बच्चों को 7 बजे डिनर कराकर आठ-नौ बजे तक सुला दिया जाता है, ताकि बच्चों को पर्याप्त नींद मिल सके.
3. पारिवारिक माहौल- कई बार माता-पिता के बीच चलने वाले झगड़े भी बच्चों के दिमाग़ पर गहराई तक असर डालते हैं. बच्चे ऐसे माहौल में ख़ुद को असुरक्षित महसूस करते हैं. इस डर से भी वो सो नहीं पाते और स्कूल या अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय नहीं रह पाते. यानी माता-पिता के आपस के झगड़े का भी बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ता है.
4. टेलीविज़न का बढ़ता प्रभाव- नींद पूरी न होने या नींद न आने की एक और बड़ी वजह है टेलीविजन यानी मीडिया. आजकल बच्चों के चैनल भी चौबीसों घंटे चलते रहते हैं और बच्चे यदि रात में टीवी ना भी देखें, तो मांओं के सास-बहू के प्रोग्राम देर रात तक चलते रहते हैं. ऐसे में बच्चे यदि सोना भी चाहें तो घर का वातावरण उन्हें सोने नहीं देता. फिर नींद पूरी न होने के कारण इसका असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ता है. उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता और वे स्कूल में भी झपकी लेते रहते हैं.
5. डरावने सपने आना- कई बच्चे नींद में बुरे सपने देख डरकर उठ जाते हैं या चीखने-चिल्लाने लगते हैं. यदि ऐसा कभी-कभार होता है, तब तो ठीक है, लेकिन यदि ऐसा रोज़ ही होता है या एक महीने से ज़्यादा लंबे समय से हो रहा है, तो आपको सचेत हो जाना चाहिए.
6. नींद में बड़बड़ाना- अक्सर कई बच्चे दिन में उन्होंने जो क्रिकेट मैच खेला होता है या दोस्तों के साथ जो भी गतिविधियां की हैं, वैसी ही बातचीत नींद में भी करते हैं. यदि ऐसा कभी-कभार होता है, तब तो ठीक है, लेकिन यदि बच्चा रोज़ ही ऐसा करता है या नींद में डरता है तो यह खतरे का संकेत है. ऐसा तनाव, डर या फिर बुरे सपनों के कारण भी हो सकता है. अतः इसका कारण जानने की कोशिश करें और बच्चे को उस डर से बाहर निकालें.
7. खर्राटे और नींद में चलना- बच्चा यदि नींद में खर्राटे ले, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें, क्योंकि ये इनसोम्निया यानी नींद की बीमारी का लक्षण हो सकता है. इसमें बच्चे को सांस लेने में तकलीफ़ होती है और कई बार नींद में ही दम घुट जाने की भी गुंजाइश रहती है. अतः इसे हल्के से न लें और बच्चे का उचित इलाज कराएं. ज़्यादातर मामलों में ज़रूरत से ज़्यादा मोटे बच्चे नींद में खर्राटे लेते हैं.
कई बच्चों में नींद में चलने की समस्या पाई जाती है और उन्हें याद भी नहीं रहता कि वे नींद में चले थे. हालांकि कई मामलों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ ये समस्या अपने आप ठीक हो जाती है, लेकिन एहतियात के तौर पर माता-पिता को डॉक्टर से भी संपर्क कर लेना चाहिए.
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आईक्यू कम होना, तनाव, चिड़चिड़ापन, थकान, काम में ध्यान न लगना, हाइपर एक्टीविटी आदि की समस्या हो सकती है. ऐसी किसी भी स्थिति में मेडिकल ट्रीटमेंट ज़रूरी है.
कब जाएं डॉक्टर के पास
नींद न आने के ज़्यादातर मामलों में बच्चे की दिनचर्या या सोने की आदतों में बदलाव लाकर नींद की समस्या को दूर किया जा सकता है. लेकिन यदि यह शिकायत एक महीने से ज्यादा से है, तो आपको डॉक्टर से संपर्क कर लेना चाहिए. समस्या चाहे शारीरिक हो या मानसिक दोनों ही भयंकर रूप ले सकती हैं, यदि व़क़्त पर इलाज न किया जाए.
क्या करें कि नींद आ जाए-
* कोशिश करें कि आपके सोने और उठने का समय हमेशा एक ही हो.
* हो सके, तो अपना लाइफ़स्टाइल पैटर्न बदलें, जैसे- ऑफ़िस से जल्दी घर आना, जल्दी भोजन करना, जल्दी सोना और सुबह भी जल्दी ही उठना आदि.
* घर या बाहर की देर रात तक चलनेवाली गतिविधियां कम करें.
* बच्चों को भी बच्चों के कार्यक्रम देर रात तक न देखने दें और न ही माता-पिता देखें. यानी बच्चों के सोने के लिए घर का माहौल शांत रखें.
* घर में लड़ाई-झगड़े का माहौल न रखें. ऐसी कोई बात या व्यवहार न करें, जिससे बच्चा डरे और सो न सके, क्योंकि इसका भी बच्चों के विकास पर विपरीत असर पड़ता है.
* इस बात का ख़ास ख़याल रखें कि बच्चा किसी भी हाल में ख़ुद को असुरक्षित न महसूस करे.
* सोने से पहले बच्चे को स्नान करने या पुस्तक पढ़ने की आदत दिलाएं, इससे भी उसे अच्छी नींद आएगी.
* बच्चे का सोने का स्थान शांत व आरामदायक है या नहीं, इसका भी ध्यान रखें.