क्या आप जानते हैं अपने बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट्स के बारे में? (Do You Monitor Your Child’s Social Media Accounts?)
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हाइटेक हो चुके इस युग में सोशल मीडिया पर रहना ज़रूरी हो गया है. इसे मजबूरी कहें या समय की ज़रूरत, लेकिन इससे बचना नामुमकिन है. लेकिन समस्या तब खड़ी हो जाती है, जब हमारे बच्चे इसकी गिरफ़्त में आते हैं और इस कदर इसके जाल में जकड़ जाते हैं कि उनको न स़िर्फ इसकी लत लग जाती है, बल्कि वो कई तरह की मुसीबतों में भी फंस सकते हैं.
पैरेंट्स भले ही यह महसूस करते हों कि वो अपने बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट्स के बारे में सब कुछ जानते हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि बहुत कुछ ऐसा भी है, जो वो नहीं जानते. क्या हैं वो बातें, जो पैरेंट्स को जाननी ज़रूरी हैं और किस तरह से बच्चों को गाइड करना चाहिए, आइए जानें-
* सबसे पहले तो आपको यह तय करना होगा कि बच्चों को किस उम्र में किस हद तक गैजेट्स और सोशल मीडिया के इस्तेमाल की छूट देनी है.
* सबसे पहले आप ख़ुद से यह सवाल करें कि क्या आपका बच्चा तैयार है इस डिजिटल दुनिया का सामना करने के लिए?
* यदि हां, तो पहला स्टेप आपको उसके साथ उठाना होगा.
* आप उसके साथ बैठकर उसका अकाउंट ओपन करवाएं.
* यही नहीं, उसका लॉगइन आईडी और पासवर्ड भी आप याद रखें.
* उसे प्राइवेसी टूल्स और सेफ्टी टूल्स की डीटेल्स समझाएं.
* उसे सोशल साइट्स पर आप ख़ुद भी फॉलो करें, ताकि आपके लिए उस पर नज़र रखना आसान हो जाए.
* बच्चे को सोशल साइट्स से संबंधित ख़तरों से भी सावधान करें, ताकि वो किसी तरह के भ्रम में न रहे.
* बच्चे अक्सर साइबर बुली का शिकार होते हैं, तो ऐसे में आपको इस ख़तरे के बारे में भी बताना होगा.
* अक्सर ऑनलाइन दोस्ती के चक्कर में बच्चे ग़लत रास्ते पर भी भटक जाते हैं, जिसका नतीजा गंभीर हो सकता है, इस संदर्भ में आपको भी सतर्क रहना होगा.
आसान नहीं है बच्चों पर नज़र रखना
* जी हां, इतना सब कुछ करने पर भी आप धोखे में रह सकते हैं, क्योंकि बच्चे पासवर्ड्स बदलते रहते हैं.
* यही नहीं, आजकल बच्चे अक्सर ऐसी साइट्स पर अकाउंट्स ओपन करते हैं, जिनके बारे में पैरेंट्स को जानकारी ही नहीं होती.
* स्मार्ट जेनरेशन की इस हाईटेक स्पीड से मैच करने के लिए पैरेंट्स को भी स्मार्ट और हाईटेक होना होगा.
* 38 वर्षीया नीता सिंह ने इसी संदर्भ में अपना अनुभव शेयर किया- “मेरी 15 साल की बेटी शुरू से ही बहुत चंचल स्वभाव की है. उसे हैंडल करना मेरे लिए बेहद मुश्किल काम है. ऐसे में आज का माहौल भी ऐसा है कि कहां तक बच्चों पर नज़र रखी जाए. पर मेरे बहुत-से दोस्तों ने मुझे बताया कि मेरी बेटी अक्सर लेट नाइट ऑनलाइन दिखती है. अक्सर वो मेरे फोन से मेरे अकाउंट्स से उनसे चैट्स भी करती है.
* मैंने जब इस बात पर ध्यान दिया और उसे समझाया, तो कुछ समय तक तो सब ठीक रहा, लेकिन फिर कुछ टाइम बाद मुझे दूसरे बच्चों से पता चला कि उसने अपना एक अलग अकाउंट ओपन कर रखा है, जिसमें वो रिलेशनशिप्स को लेकर, पर्सनल फीलिंग्स को लेकर, कभी सुसाइडल थॉट्स, तो कभी अल्कोहल व स्मोकिंग से संबंधित मैसेजेस व स्टेटस अपडेट्स करती थी. यह सब जानकर मेरे तो होश ही उड़ गए थे. न जाने आजकल बच्चे कहां से ये सब सीखते हैं. फिर किसी की सलाह पर मैं उसे काउंसलर के पास लेकर गई, उसके स्कूल जाकर टीचर्स से बात की और अब मैं उसे लेकर थोड़ी सतर्क भी हो गई हूं.”
* नीता का यह उदाहरण व निजी अनुभव बहुत कुछ बयां करता है कि बच्चों पर स़िर्फ सख़्ती करने से ही काम नहीं चलता, आपको बच्चों के मनोविज्ञान को समझना भी ज़रूरी है.
* वो किस तरह के दोस्तों के साथ उठते-बैठते हैं, किस तरह की साइट्स पर विज़िट करते हैं, टीवी पर क्या देखते हैं, मोबाइल में क्या-क्या सर्च करते हैं आदि की जानकारी रखनी ज़रूरी है.
* उनके मन में जो भी कौतूहल है, जिज्ञासाएं हैं, उनका समाधान आप करें, वरना वो ग़लत जगह से ग़लत जानकारी इकट्ठा करेंगे.
* समय-समय पर टीचर्स से मिलें, उनके दोस्तों को घर पर बुलाएं. दोस्तों के पैरेंट्स के साथ भी संपर्क में रहें.
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* यहां आपको यह सावधानी ज़रूर बरतनी होगी कि बच्चे को यह न लगे कि आप उसकी जासूसी करते हैं, वरना बच्चा आपसे बातें छिपाने लगेगा.
* बेहतर होगा कि आप अनुशासन की परिभाषा बच्चे को भी क्लीयर कर दें. रात में कितने बजे तक लैपटॉप या फोन ऑन रखना, कब तक वाईफाई ऑन रहेगा आदि के लिए नियम बनाएं, जिसका सभी लोग पालन करें.
* आपका बच्चा जिस तकनीक का इस्तेमाल करना चाह रहा है, आप ख़ुद उसके बारे में पहले समझें व जानें.
* बच्चे से कम्यूनिकेट करना ज़रूरी है. हालांकि हर पैरेंट्स का अप्रोच अलग होता है. कुछ पैरेंट्स यह मानते हैं कि बच्चा अगर ग़लत चैटिंग कर रहा है या ग़लत लोगों के साथ संपर्क में है, तो जो सख़्ती से काबू करना होगा. जबकि कुछ मानते हैं कि बहुत ज़्यादा सख़्ती से असर उल्टा भी हो सकता है.
* लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं, जहां आपको सख़्त होना ही पड़ता है. अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए और उसे सही दिशा देने के लिए, क्योंकि बच्चे ख़ुद यह तय नहीं कर पाते कि उस व़क्त उनके लिए क्या सही है, क्या ग़लत. वो कई बार डर भी जाते हैं.
* मिस्टर वर्मा सिंगल फादर हैं और उनकी दो बेटियां है. एक की उम्र 14 साल है, दूसरी 17 साल की है. उन्होंने अपना अनुभव शेयर किया, “एक रोज़ मैं अपने बेटी के कमरे में गया, तो मुझे यह महसूस हुआ कि मेरी 14 साल की बेटी मुझसे कंप्यूटर में कुछ छिपा रही है. मैंने थोड़ा सख़्ती से पूछा, तो उसने वो साइट ओपन की, जहां वो किसी बड़ी उम्र के पुरुष के साथ ग़लत मैसेजेस एक्सचेंज कर रही थी. उसने मेरी बेटी से उसकी कुछ तस्वीरें भी भेजने को कहा था, जिससे मेरी बेटी डर गई थी और वो समझ नहीं पा रही थी कि इस परिस्थिति से वो बाहर कैसे निकले. मैंने फ़ौरन उसकी आईडी से उस आदमी को मैसेज किया कि मैं इसका फादर हूं और मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हें कैसे ढूंढ़ना है. मैंने उसे धमकी दी कि मैं अभी पुलिस को लेकर आ रहा हूं. वो आदमी डर गया और उसने अपनी आईडी ही डिलीट कर दी.
* मैंने अपनी बेटी को भी समझाया, ताकि भविष्य में वो सावधान रहे और अगर ऐसी कोई बात हो, तो मुझे बताने से हिचकिचाए नहीं.
* मुझे लगता है कि टीनएजर्स के पैरेंट होने के नाते हमें यह हक़ है कि हम जान सकें हमारे बच्चे ऑनलाइन क्या कर रहे हैं? किससे किस तरह की चैटिंग कर रहे हैं. हां, बहुत अधिक सख़्त होना भी ग़लत है, लेकिन अगर आप पूरी तरह आंख बंद कर लेंगे, तो आपके अपने ही बच्चे मुश्किल में फंस सकते हैं. हां, जब बच्चे बालिग हो जाएं और अपने पैरों पर खड़े हो जाएं, तो उनकी अपनी राह होती है, वो ख़ुद अपने निर्णय लेने में सक्षम होते हैं, तब हम उन्हें पूरी छूट दे सकते हैं, लेकिन तब भी यह विश्वास उनमें जगाए रखना ज़रूरी है कि चाहे जितनी भी गंभीर बात हो, अगर कोई मुसीबत आती है, तो हम हैं, उनका साथ देने के लिए, इसलिए हम से डरें नहीं, बल्कि खुलकर अपनी फीलिंग्स शेयर करें.
* मैं इस बात में विश्वास रखता हूं कि अगर आपके अपने बच्चों के साथ अच्छे संबंध हैं, तो घबराने की ज़रूरत नहीं.
* अपने बच्चों पर भरोसा करें, उन्हें इस दुनिया को फेस करने दें, लेकिन कहीं न कहीं उनके पीछे ज़रूर खड़े रहें.”
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* जहां तक एक्सपर्ट्स का सवाल है, तो उनमें से बहुत-से यह मानते हैं कि आज के युग के बच्चे अपेक्षाकृत अधिक ख़तरों से जूझ रहे हैं. वैसे देखा जाए, तो बच्चे आजकल खेल के मैदानों व सड़कों पर कम और बंद कमरों में कंप्यूटर्स के सामने अधिक नज़र आते हैं, लेकिन यह बात पक्की है कि सड़कों और गलियों में उन्हें उतना ख़तरा नहीं है, जितना इस डिजिटल दुनिया में है. वो रोज़ एक नए रिस्क का सामना कर रहे हैं. यहां तो सामनेवाला पुरुष 50 साल का होकर भी नक़ली फोटो व आईडी से ख़ुद को 18 साल का नौजवान बताता है. इस नक़ली दुनिया में बहुत से ख़तरे हैं, जिन्हें आज की जेनरेशन झेल रही है.
* इन तमाम ख़तरों के बीच भी रास्ता एक ही है- कम्यूनिकेशन. बच्चों के साथ कम्यूनिकेट करें, उनका विश्वास जीतें और उन पर विश्वास करें, क्योंकि सुरक्षा के नाम पर आप उन पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा दें, यह तो कोई उपाय नहीं है. आप उन्हें बांधकर नहीं रख सकते.
* आपको उनके साथ बात करनी होगी, ताकि जब कभी भी ज़रूरत हो, वो बेझिझक आपसे मदद मांग सकें.
* अगर आपको कुछ साइट्स पर बच्चों ने ब्लॉक भी कर रखा है, तब भी नाराज़ होने की बजाय कोई दूसरा तरीक़ा खोजें उन पर नज़र बनाए रखने का. आप अपने दोस्तों से या उनके दोस्तों से पता कर सकते हैं या फिर आप भी अपनी दूसरी आईडी का सहारा लें, ताकि आप की नज़र उन पर रहे, लेकिन साथ ही यह सावधानी बरतें कि उन्हें यह पता न चले, वरना वो ग़लत समझ बैठेंगे.
* बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए उन पर नज़र रखना ग़लत नहीं, लेकिन बच्चों को यह जासूसी नहीं लगनी चाहिए. इसलिए बेहतर यही है कि आप पकड़े न जाएं.